डॉ. अनुराधा श्रीवास्तव ने छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन किया
पारस शर्मा. जोधपुर
सूरसागर गेंवा स्थित राजकीय महाविद्यालय में आयोजित “सूचना अधिकार की जानकारी” कार्यक्रम में महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. परवीन ने बताया कि महाविद्यालय में सूचना के अधिकार के बारे में विद्यार्थियों को विस्तृत जानकारी दी गई। महाविद्यालय में आरटीआई प्रभारी अधिकारी डॉ. हेमू चौधरी ने बताया कि इस कार्यक्रम में डॉ. अनुराधा श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए कहा कि यह विधिक अधिकार है जो प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्राप्त है। विश्व स्तर पर इस अधिकार की आवश्यकता पर चर्चा होने के कारण तथा भारत में सुशासन के लिए भारत में भी इस अधिकार की मांग होने लगी। राजनीतिक घटनाक्रम तथा जन आन्दोलन मुख्य रूप से अरूणा राय तथा निखिल डे द्वारा चलाए गए आन्दोलन ने इसकी आवश्यकता को बल प्रदान किया। सूचना प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन तथा ऑफलाइन निर्धारित शुल्क के साथ आवेदन किया जा सकता है। देश की सुरक्षा से संबंधित जानकारी के अतिरिक्त समस्त प्रकार की जानकारी सरकारी विभाग तथा सरकार से अनुदानित निजी विभाग से सूचना प्राप्त की जा सकती है।
डॉ. प्रियंका यादव ने सूचना के अधिकार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इसे 12 मई 2005 को संसद में पारित किया गया तथा 12 अक्टूबर 2005 को इसे कानून बनाया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(१) में दिए गए मौलिक अधिकार “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” को मजबूत बनाने के लिए, उसके अंतर्गत शामिल किया गया। इसीलिए सूचना का अधिकार एक “अंतर्निहित मौलिक अधिकार” है, जिसका उद्देश्य देश में भ्रष्टाचार को रोकना, सरकार के कामकाज में पारदर्शिता बनाए रखना तथा सरकार की जवाबदेही बढ़ाने के साथ ही देश के नागरिकों को सशक्त बनाना है। 1976 में राज नारायण बनाम यूपी राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और आरटीआई को अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अंतर्निहित मौलिक अधिकार बनाया जाए। कोर्ट के अनुसार लोकतंत्र में जनता सर्वेसर्वा है, मालिक है, उसे सरकार के कामकाज के बारे में जानने तथा सवाल उठाने का पूरा अधिकार है। सूचना का अधिकार किसी भी सरकारी संगठन तथा सरकार द्वारा वित्तपोषित संगठनों, विभागों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है। इसके अंतर्गत भारत की संप्रभुता एवं अखंडता को प्रभावित करने वाले विषय जैसे देश के आंतरिक सुरक्षा, विदेशी संबंध, कैबिनेट चर्चा आदि से संबंधित सूचना नहीं मांगी जा सकती।
प्रत्येक सरकारी विभाग में “पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफिसर” नियुक्त किए जाते हैं, जो देश के नागरिक द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिन के अंतर्गत देने हेतु प्रतिबद्ध होते हैं। लेकिन किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता के मामले में सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गई सूचना 48 घंटे के अंतर्गत देनी होती है। कोई भी नागरिक ₹10 का भुगतान कर ऑफलाइन या ऑनलाइन नामित अधिकारी को आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। आवेदक पहली अपील से संतुष्ट न होने पर 90 दिन के भीतर सूचना आयोग को तथा सूचना आयोग द्वारा दी गए जानकारी से भी संतुष्ट न होने पर कोर्ट में अपील कर सकता है। आरटीआई में मांगी गई सूचना PIO के विभाग से संबंधित ना होने पर यह PIO की जिम्मेदारी है कि वह आवेदन को 5 दिनों के अंतर्गत संबंधित विभाग को भेजें तथा आवेदक को इसकी सूचना दें। ऐसी स्थिति में नागरिक को सूचना 30 के बजाय 35 दिनों में दी जा सकती है। सूचना के अधिकार के अंतर्गत आवेदन नहीं लेने, गलत सूचना प्रदान करने, सूचना न देने पर पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफिसर के खिलाफ सूचना आयोग को शिकायत की जा सकती है, जिसके अंतर्गत PIO पर 250 रुपए प्रतिदिन और अधिकतम 25000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अलका बोहरा ने किया तथा डॉ. सुनीता चावड़ा द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर डॉ. कन्हैयालाल सारण, डॉ. प्रकाश दान तथा बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।