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Wednesday, January 8, 2025, 12:29 pm

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ऊंट उत्सव पर नाचीज बीकानेरी की कविता

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ऊंट

धोरां री इय्यै मुलकती धरा रो ।
जीणै रो आधार ओ ‘ लाडेसर ऊंट ।।

ऊंट नै ‘राज-पशु’ सरकार बणायो ।
माण बधण सूं लाखिणो हुयो ऊंट ।।

ऊंटा सूं सजै जद राज – दरबार ।
चोपायां में सिरै घणों हुवै है ऊंट ।।

ऊंट नै गदीदार पग कुदरत दिया ।
धोरां में खातो घणौ चालै ओ ‘ ऊंट ।।

घणै दिनां तक भूख – तिस सै लेवै ।
ओ’ “रेगिस्तान रो जहाज” बाजै ऊंट ।।

मेला – मगरियां अर तीज-उत्स्वां में ।
गोरब्ंध – गैणा सूं सजधज चालै ऊंट ।।

ब्याव -सादी ऊंट नै बाराती सजावै ।
सेना – फौज में घणा उपयोगी हुवै ऊंट ।।

ऊंट घर-समाज रो माण-सम्मान बधावै ।
मरूधर में रोजी-यातायात रो साधन ऊंट ।।

उंठां रा टोला रा टोला पालै है राईका ।
सीमां माथै आगै-आगै गश्त करै ऊंट ।।

धोरां री धरा रा चावा-ठावा रईस- लोग ।
सवारी री ठसकाई करण सारु राखै ऊंट ।।

जिनावरां में सगलां सूं सिरै घणों हुवै ।
मोरी रै इसारै सू ‘करतब’ दिखावै ऊंट ।।

धोरां री धरा में सैलानयां नै रिझावंण ।
सालो- साल “ऊंट-उत्सव” नै सजै ऊंट ।।

ऊंट उत्सव पे ऊंट प्रजाति रो बचाव कराँ ।
” नाचीज़”मरूधरा री आन-बान है ओ ‘ऊंट ।।

नाचीज बीकानेरी मो-9680868028
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Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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