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Friday, November 8, 2024, 5:44 pm

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नाचीज बीकानेरी की कविता

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आम आदमी की सोच

अब तो ख्वाहिश यही है।
मशहूर हो जाएं हम ।।
जमाना हमें ही पहचाने।
किसी को चाहें न चाहे हम ।।
लोग तारीफ के पुल बांधे।
बस, इसी ख्वाहिश में हैं हम ।।
कोई अच्छा कहे कोई बुरा ।
चर्चा में ही सदा रहें हम।।
हाँ, जिसको भी हमारी जरूरत हो।
वो सदा हमारे इर्द- गिर्द रहे।।
जिंदगी का यही फलसफा है।
दिन-साल चाहत में ही गुजरते रहें ।।
दिल में तमन्ना रहती है हरदम।
जिंदगी की दौड़ में अव्वल सदा रहें।।
जीत – हार दोनों में अक्सर ।
कुछ छूट रहे हैं, कुछ जुड़ रहे ।।
जिन्हें मिट्टी से भी बूह आए।
वो अपनी औकात भूल जाते हैं ।।
चुप रहना लोगों की आदत नहीं ।
हल्दी का गाँठिया ले पंसारी बन जाते हैं।।
अब तो ऐब में डूबे लोग भी ।
फरेब देने से भी कतराते नहीं ।।
दोस्त बदलने की रफ्तार में ।
स्वार्थ ज्यादा मोहब्बत नहीं ।।
सौ- बरस जीने की ख्वाहिश में ।
जरूरतों की खातिर भटकते हैं लोग।।
ख्वाहिश ही ख्वाहिश में आदमी ।
न जाने कितने तनाव झेलते हैं लोग ।।
मोल कुछ नहीं, अनमोल की चाहत ।
आज के सांचे में ढल जाते हैं लोग।।
सुकून की बात अब कहाँ हैं “नाचीज”।
जीवन की भाग दौड़ में रंगत खो देते है लोग।।
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Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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