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Monday, December 9, 2024, 12:07 pm

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नवरात्रा पर नीलम व्यास स्वयंसिद्धा की कविताएं

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हे मां कल्याणी

हे मां कल्याणी
मधुरम वाणी,
ओज तेज वान अब करो।।

रोग शोक मिटना,
हर दुख कटना,
जगत के संकट तुम हरो।।

अमर लेखन बने,
वचन प्रीती सने ,
पग वंदन मैं नित करती।।

हे भव भय हारी,
तन मन वारी,
चित्त चरणों सदा धरती ।।

हे जग की माता ,
मुक्ति प्रदाता,
नवरात्रि पूजन पावनी।।

भोग खीर मेवा,
फलती सेवा,
सूरत लगे मन भावनी।।

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माता स्तुति

पधारो हमारे लिए मां भवानी,
करें रोज पूजा चढ़े फूल मेवा।
संवारों सभी काज मेरे हमेशा,
जले दीप घी का करूं रोज सेवा।।

सहारा मिले आप का हाथ जोड़ूं,
करूं आरती फूल माला चढ़ाऊं।
हरो रोग पीड़ा कटे पाप मेरा,
रचूं गीत माता सदा ही सुनाऊं।।

करूं साधना भाव से तार लेना,
मिटा दो निराशा जगे आस प्यारी।
रहे मांग मेरी सदा ही भरी ये,
खिले प्रीत लाली दिखे मात न्यारी।।

करें काव्य मेरा सदा ही उजाला,
दया नेह प्रीती बने चाह मेरी।
हमारे दुखों को निवारो भवानी,
चुने नेक राहें बने आज चेरी।।

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नवरात पूजन

नैन बिछाकर द्वार सजाकर मातु करे नवरात तिहारे।
भक्त खडे कर जोड़ सुनो मन पीर मिटा कर जीवन तारे।
हे जग मातु करें नित पूजन पावन भाव रखे तन वारे।
दीनन की सुध लो नव रूप सजे मनमोहक भक्त निहारे।।

मां महिषा सुर नाश किया भव तारण हार सदा उर छाई।
भोग लगे हलवा मधु मोदक ज्योत जलाकर आरत गाई।
पुष्प गुलाब सजी उर माल झुका नित शीश पधार दुहाई।
रोग कटे मन शुद्ध करो हम पातक याचक मां सुखदाई।।

काव्य रचे नव छंद सजाकर गीत सुनो मन घाव दिखाते।
जीवन सौंप दिया चरणों तुम भक्त पुकार सुनो अब माते।
मातु पधार करो घऱ पावन खीर बना नित भोग लगाते।
हे जग मातु करो करुणा नित नीलम के उर में बस जाते।।

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Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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