हे प्रभो! हम तेरे आंगन का
हे प्रभो! हम तेरे आंगन का
नन्हा सा कोई फूल हैं
तेरी बनाई बगिया में
कहीं खुशबू कहीं शूल हैं
सुख और दुख जीवन के
सदा जुड़े दो रूप हैं
एक ढलती छांव समान
दूसरी दुपहरी की धूप है
तेरी मर्जी अटल सत्य
तू हर निर्णय का मूल है
हे प्रभो! हम तेरे आंगन का
नन्हा सा कोई फूल हैं
दुनिया में जब से आए
काया-माया में फंसे रहे
काजल की कोठरी में
ये दोनों हाथ पूरे धंसे रहे
अंत समय आया करीब
समझ में आई अपनी भूल है
हे प्रभो! हम तेरे आंगन का
नन्हा सा कोई फूल हैं
इतना उपकार करना नाथ
भटक ना पाएं तेरे पथ से
जीवन के इस कुरुक्षेत्र में
जुड़े रहें तेरे गर्वित रथ से
जीत का न गर्व हो
हारें तो ऐसे पैर तले धूल है
हे प्रभो! हम तेरे आंगन का
नन्हा सा कोई फूल हैं
जाने कितने युग बीते
जब मिली यह मानव देही
इस पर लगे न दाग कोई
जीवन ऐसा हो सरल-स्नेही
तू ही गाॅड-वाहे गुरु
और तू ही राम-रसूल है
हे प्रभो! हम तेरे आंगन का
नन्हा सा कोई फूल हैं।
