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Saturday, January 18, 2025, 12:05 pm

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सोने की नगरी पर गंदगी का सुहागा, सीवरेज फेल, नालियां गंदगी से अटी, सड़कों-गलियों से निकलना हुआ दूभर

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हर साल 500 करोड़ का बजट, पैसा कहां जाता है? शहर को स्वच्छ तक नहीं रख पाए हमारे जनप्रतिनिधि, विधायक, सांसद हल्ला तो खूब करते हैं काम के नाम पर जीरो…

50 साल बाद भी जैसलमेर सफाई के नाम पर शून्य, प्रशासनिक अधिकारी जैसलमेर को लूटते रहे, जनप्रतिनिधि उनका साथ देते रहे और आजादी के बाद शहर का दोहन होता रहा, दुश्वारियां दूर नहीं हुई

डीके पुरोहित. आनंद एम. वासु. जैसलमेर

सात समंदर पार जिस सुनहरे शहर जैसलमेर का डंका बजता है वह पिछले 50 सालों में भी उपेक्षित है। यहां के जनप्रतिनिधि और विधायक-एमपी उन्हें स्वच्छ नहीं रख पाए। चाहे नगर पालिका हो, चाहे नगर परिषद हो किसी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और नतीजा यह हुआ कि करीब हर साल 500 रुपए का बजट होने के बाद भी शहर को साफ-सुथरा तक नहीं कर पाए। सैलानियों को यहां का स्थापत्य और सोने की चमक-दमक जरूर लुभाती है, मगर गंदगी देखकर वे बुरा अनुभव लेकर ही जाते हैं।

नगर पालिका इतने साल क्या करती रही। अब नगर परिषद हो गई मगर कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आया। जैसे बच्चा प्रमोट होता है शहर भी प्रमोट होता रहा। बस लेबल बदला अंदर का माल वही पुराना और घिसापिटा है। गंदगी तक नहीं दूर कर पाए हमारे जनप्रतिनिधि और अफसर। विधायक और सांसद हो हल्ला ज्यादा करते हैं मगर काम के नाम पर जीरो है। चाहे किसी की सरकार रही हो, किसी दल की लोकल सरकार रही हो, सबने बजट का चूरमा किया, दोनों हाथों से शहर को लूटते रहे। पूर्व नगरपालिका चेयरमैन गोपीकिशन मेहरा जब चेयरमैन बने थे तो उन्होंने एक पत्रकार को बताया कि किस तरह उन्होंने चेयरमैन बनने के लिए पार्षदों को पैसे बांटे थे। जब वे अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पीट रहे थे तो यह रिपोर्टर भी वहां मौजूद था। उन्होंने कहा कि फलां पार्षद को 7 पैसे दिए, उसे 5 पैसे दिए, उसे 3 पैसा दिया…यहां पैसों का मतलब लाख रुपए से है।

अब जब पार्षदों को खरीदना पड़े तो फिर उन रुपयों की वसूली भी तो करनी होती है। नगरपालिका और नगर परिषद दरअसल लूट का अड्‌डा बन गए हैं। जनप्रतिनिधियों ने शहर को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। करोड़ों का बजट खर्च कहां हुआ इसका रिकॉर्ड तो होगा, मगर पैसा खर्च किया नहीं किया कोई नहीं जानता। पार्षदों ने बहती गंगा में हाथ धो लिए। अधिकतर पार्षदों की संपत्ति की जांच करवाई जाए तो उनके आर्थिक स्टेटस का पता चल जाएगा। पार्षद बनने से पहले और बाद में उनकी संपत्ति बढ़ती गई।

सीवरेज प्रणाली पर करोड़ों खर्च, मगर सक्सेस नहीं :

जैसलमेर में कुछ साल पहले सीवरेज लाइनें बिछाई गई। मगर ठेकेदारों ने काम अच्छा करने की बजाय काम के नाम पर खानापूर्ति की। तकनीकी रूप से सीवरेज लाइनें फेल ही रही। सीवरेज का गंदा पानी सड़कों पर ही बिखरा रहता है। तंग गलियों में नालियां ओवरफ्लो होकर बहती रहती है। सुबह-सुबह सड़कों और गलियों से निकलना मुश्किल हो जाता है। हर तरफ गंदगी का आलम है।

कांग्रेस हो या भाजपा सबने शहर को लूटा, शहर पर गंदगी का ग्रहण :

कांग्रेस हो या भाजपा…हर दल ने शहर को लूटा। पैसों की बर्बादी होती रही। जनप्रतिनिधियों के घर भरते रहे। लोग ठगे रहे। शहर कोने में दुबका रहा। अफसर मजे करते रहे। चेक कटते रहे, कमिशन आपस में बंटता रहा। चपरासी-ड्राइवर से लेकर अफसर तक मजे करते रहे। लॉगबुक भरते रहे। डीजल-पेट्रोल से लेकर ठेके के बिल उठते रहे। सब पैसे बंटते रहे। इतना सारा बजट खर्च हुआ तो फिर शहर के ये हाल क्यों है? जैसलमेर के पत्रकारों ने कभी इसमें झांकने की कोशिश नहीं की।

 

 

 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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