डॉ. एल.पी.टैस्सीटोरी की 137वीं जयन्ती पर सृजनधर्मियों ने पुष्पांजलि अर्पित की
राखी पुरोहित. बीकानेर
प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ के संयुक्त तत्वाधान में महान इटालियन विद्वान राजस्थानी पुरोधा लुईजि पिओ टैस्सीटोरी की 137वीं जयंती के अवसर पर तीन दिवसीय ‘सिरजण उछब का समापन आज प्रातः डॉ. टैस्सीटोरी समाधि-स्थल पर शब्दांजलि-पुष्पांजलि अर्पण के साथ हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजस्थानी मान्यता आन्दोलन के प्रवर्त्तक कमल रंगा ने कहा कि टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे। उन्होंने राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण 1914 में ही कर दिया था एवं उन्होंने ही राजस्थानी भाषा को गुजराती से अलग एवं स्वतंत्र बताया था। परन्तु दुःखद पहलू यह है कि आज भी इतनी समृद्ध एवं प्राचीन भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलना साथ ही प्रदेश की दूसरी राजभाषा न बनना करोड़ो लोगों कि जनभावना को आहत करना है। ऐसे में राजस्थानी को दोनों तरह की मान्यताएं शीघ्र मिलनी चाहिए। जिन्होंने कई महत्वपूर्ण किताबें लिख कर राजस्थानी साहित्य को समृद्ध किया एवं शोध-पुरातत्व के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों को विस्तार से सामने रखा। रंगा ने आगे कहा कि उन्होंने साहित्य, शिक्षा, शोध एवं पुरातत्व के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण कार्य करके हमारी संस्कृति एवं विरासत को पूरे विश्व में मशहूर कर दिया। परन्तु हमारी भाषा को मान्यता न मिलना दुखद पहलू है। अब इस पर शीघ्र निर्णय होना चाहिए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ रचनाकार एवं एडवोकेट इसरार हसन कादरी ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा साहित्य-संस्कृति कला आदि को सच्चे अर्थों में जीते थे। वे अपनी मातृभाषा इटालियन से अधिक प्यार राजस्थानी को देते थे। उनके द्वारा राजस्थानी मान्यता का देखा गया सपना अब सच होना चाहिए। तभी उन्हें सच्ची श्रृंद्धाजलि होगी। आपने अपना छोटा सा जीवन हमारी मातृभाषा राजस्थानी के लिए समर्पित कर दिया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ महिला कवयित्री मधुरिमा सिंह ने अपनी शाब्दिक श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. एल.पी. टैस्सीटोरी जनमानस में राजस्थानी भाषा की अलख जगाने वाले महान साहित्यिक सेनानी थे। संस्कृतिकर्मी डॉ. फारुक चौहान ने उनके द्वारा किए गए कार्यों पर रोशनी डालते हुए कहा कि ये हमारी भाषा के लिए गौरव की बात है कि इटली से आकर एक विद्वान साहित्यकार ने हमारी भाषा के लिए महत्वपूर्ण काम किया।
वरिष्ठ रचनाकार एवं राजस्थानी अकादमी पूर्व सचिव जानकी नारायण श्रीमाली ने उन्हें शब्दांजलि अर्पित करते हुए कहा कि टैस्सीटोरी राजस्थानी मान्यता के प्रबल समर्थक थे, वे राजस्थानी के महान् विद्वान के साथ-साथ बहुत बडे भाषा वैज्ञानिक भी थे। श्रीमाली ने आगे बताया कि राव जैतसी के छंद के माध्यम से डॉ. टैस्सीटोरी ने राती-घाती के महत्वपूर्ण युद्ध के सम्बन्ध में भी सम्पादन कार्य कर घटना एवं रचना को प्रकाश में लाए। इस अवसर पर अपनी काव्यांजलि अर्पित करते हुए वरिष्ठ रचनाकार एवं शिक्षाविद् डॉ. नृसिंह बिन्नाणी ने डॉ. टैस्सीटोरी पर केन्द्रित हाइकू के माध्यम से उनके जीवन को उकेरा। तीन दिवसीय “सिरजण उछब” के संयोजक युवा कवि गिरीराज पारीक ने उन्हें नमन किया एवं आयोजन के बारे में बताया कि प्रज्ञालय संस्थान और राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा पिछले साढे चार दशकों से भी अधिक समय से उनकी पुण्यतिथि और जयंति पर डॉ. टैस्सीटोरी पर केन्द्रित साहित्यिक एवं सृजनात्मक आयोजन आयोजित कर उनके द्वारा किए गए कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने का पुनीत कार्य किया जा रहा है।
तीन दिवसीय “सृजन उछब” समारोह के तहत आयोजनों का केन्द्रीय भाव राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता एवं प्रदेश की दूसरी राजभाषा बने उसी पर केन्द्रित रहा। तीनों दिन के आयोजनों में सहभागी रहने वाले सैकड़ों राजस्थानी समर्थकों ने इस बात का पुरजोर शब्दों में समर्थन किया। शब्दांजलि एवं पुष्पांजलि कार्यक्रम में अशोक शर्मा, भवानी सिंह, कार्तिक मोदी, तोलाराम सारण, हरि नारायण आचार्य एवं घनश्याम ओझा सहित अनेक प्रबुद्ध-जन उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन कवि गिरीराज पारीक ने किया। अंत में सभी का आभार वरिष्ठ इतिहासविद् डॉ. फारूख चौहान ने ज्ञापित किया