पिछले दिनाें राज्य स्तर पर सम्मानित जोधपुर पुलिस कमिश्नर राजेंद्रसिंह के नाम राइजिंग भास्कर के ग्रुप एडिटर डीके पुरोहित का खुला पत्र…
नदियां छलनी हो गई, बजरी के गढ़ तार-तार हो गए, बजरी माफियाओं के आतंक से त्राण नहीं मिला, अब तो शहर को त्राण दिलाएं…ये शहर आपको भुला नहीं पाएगा कमिश्नर साहब, अन्यथा आप भी आयाराम-गयाराम बनकर रह जाओगे…
प्रिय राजेंद्रसिंह जी,
पुलिस कमिश्नर, जोधपुर।
आपको हाल ही में राज्य स्तर पर सम्मान मिला। यह सम्मान आपको आपकी बहादुरी के लिए मिला है। आप वाकई बहादुर और तेजतर्रार आईपीएस हैं। एक आईपीएस देश के लिए जीता है और देश के लिए सर्वस्व कुर्बान करने को तैयार रहता है। आपने कई मौकों पर अपनी काबिलियत साबित की है। मगर एक मुद्दा ऐसा है जिस पर आप ही नहीं पुलिस कमिश्नरेट लागू होने के 15 सालों में सारे आईपीएस नाकाम साबित हुए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि पुलिस कमिश्नरेट कई मुद्दों पर अपनी योग्यता साबित नहीं कर पाया है। उन ‘कुछ’ मुद्दों में फिलहाल एक ही मुद्दे पर आज बात करेंगे। वो मुद्दा है ‘बजरी माफिया…।’
जी, हां, कमिश्नर साहब। बजरी माफिया। पिछले दिनों मैं जोधपुर के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे पर था। मैंने देखा कि बजरी माफियाओं ने नदी क्षेत्रों की बजरी को तार-तार कर दिया है। जगह-जगह बजरी खोद कर नदियों को खोखला कर दिया है। यह आज और कल की बात नहीं है। अगर पुलिस कमिश्नरेट लागू होने यानी जनवरी 2011 से ही सिलसिलेबार शुरू करें तो जितने भी आईपीएस अधिकारी पुलिस कमिश्नर बनकर आए किसी ने बजरी माफियाओं पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की। पुलिस कमिश्नरेट से पहले एसपी हुआ करते थे। एसपी में एक कुछ कर गुजरने का जज्बा होता था। मगर पुलिस कमिश्नर आरामदायक पोस्ट है। उसके नीचे अफसरों की लंबी फेहरिस्त होती है। अब तो जोनवार काम और बांट दिए। पुलिस कमिश्नर के नीचे भी दर्जनों अफसर हैं। लेकिन इतनी फौज होने के बाद भी बजरी माफिया हाथ नहीं आ रहे। बजरी का नाजायज खनन बेलगाम जारी है। यही नहीं एक सामान्य सी बात है कि रोज देर रात और अलसुबह तक सड़कों पर और कई बार तो दिन में भी बजरी के ट्रक और डंपर फर्राटे से दौड़ते हुए निकल जाते हैं। नाके पर पुलिस खड़ी देखती रह जाती है। कई बार तो घटना स्थल के आसपास पुलिस थाने भी होते हैं मगर पुलिस कुछ भी नहीं कर पाती। अब बात करते हैं शनिवार देर रात की घटना की। एक वीडियो भी सामने आया है। राइजिंग भास्कर के पास भी यह वीडियो उपलब्ध है, जिसे एक जागरूक पाठक ने भेजा है। तो इस वीडियो में एक डंपर झालामंड क्षेत्र में सड़क पर बजरी खाली कर भाग जाता है। पुलिस नाका 50 मीटर की दूरी पर है। 200 मीटर पर झालामंड चौहारा पुलिस चौकी है और दो किलोमीटर की दूरी पर पुलिस थाना है। यह डंपर सड़क पर बजरी खाली कर भाग जाता है और अपनी चपेट में बिजली के पोल को भी ले लेता है। गनीमत रही कि क्षेत्र में करंट नहीं फैला।
इन तथ्यों पर गौर करें सीपी साहब, 15 साल में पुलिस कहां गई?
2011 में 22 बार बजरी के ट्रक और डंपर सड़कों पर खाली कर चालक भागे, 2012 में 18 बार, 2013 में 13 बार, 2014 में 19 बार, 2015 में 25 बार, 2016 में 14 बार, 2017 में 19 बार, 2018 में 21 बार, 2019 में 13 बार, 2020 में 20 बार, 2021 में 27 बार, 2022 में 23 बार, 2024 में 12 बार और इस साल 2025 में अब तक 9 बार सड़कों पर बजरी खाली कर चालक भाग गए। इन सिलसिलेबार घटनाओं में अधिकांश न अखबारों की सुर्खियां बनीं और न ही अधिकांश मामलों में पुलिस में एफआईआर दर्ज हुई। कई मामलों में खनन विभाग भी मूक दर्शक बना रहा।
शहर में कैसे आ जाते हैं अवैध बजरी डंपर?
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बजरी माफिया समानांतर सरकार चलाते हैं?
दरअसल बजरी माफियाओं के हाथ बड़े लंबे हैं। यह कहानी इतनी आसान नहीं है कि एक पुलिस कमिश्नर चाहे तो एक ही रात में सबकुछ ठीक हो जाए। अगर ऐसा होता तो पिछले 15 साल में जब से पुलिस कमिश्नरेट जोधपुर में लागू हुआ बजरी माफिया के खिलाफ कार्रवाई हो ही जाती। मगर ऐसा नहीं होता। ना होता नजर आ रहा। चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो चाहे भाजपा की। बजरी माफिया के तार सभी सरकारों से और सभी भ्रष्ट अफसरों से जुड़े रहे हैं। दरअसल बजरी माफिया अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं। बजरी माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए छत्तीस इंच का सीना चाहिए। अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से भी बड़ा सीना। क्योंकि बजरी माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने का अर्थ है अपनी जान की कीमत लगाना। एक डंपर को बजरी खाली करने में जितना वक्त लगता है उतना ही वक्त एक पुलिस कर्मी को उड़ाने में लगती है। सड़कों पर सरपट दौड़ती मौत कब किसको अपनी चपेट में ले ले कोई नहीं जानता। तो पुलिस कमिश्नर साहब आपको सम्मान मिला। आपने सम्मान ले भी लिया। हम बहुत खुश हैं। आप ऐसे ही सम्मान लेते रहें। मगर यह सम्मान आपको विभाग ने दिया है। आपको असली सम्मान तब मिलेगा जब जनता देगी। जनता ने अभी आपको सम्मान नहीं दिया है। विभाग ने आपको सम्मान दिया है। सरकार ने आपको सम्मान दिया है। उस विभाग ने और उस सरकार ने आपको सम्मान दिया है जो बजरी माफिया की चरण चाकरी करता है। पुलिस कमिश्नरेट आज-कल में नहीं बना है। पूरे 15 साल हो गए हैं। इन 15 साल में जोधपुर के आसपास बजरी के गढ़ के गढ़ खत्म हो गए। नदियां खोखली हो गई। लूणी नदी छलनी हो गई। छलनी हो गए सारे ठिकाने। मगर पुलिस कमिश्नर साहब आपने अपने अब तक के कार्यकाल में बजरी माफियाओं के खिलाफ क्या कर लिया? आप अपने दिल पर हाथ रख कर देखें आपकी बहादुरी कहां जनता के सामने आई? अब झालामंड क्षेत्र में बजरी का डंपर खाली होने को दो दिन होने को आए हैं अभी तक ड्राइवर तक नहीं पकड़ा गया। एक डंपर तेजी से आता है और बजरी सड़क पर खाली कर भाग जाता है और अपनी चपेट में बिजली के खंभे को भी ले लेता है। बिजली का खंभा टूट जाता है और पुलिस कुछ नहीं कर पाती। इस संबंध में मीडिया न्यूज छाप कर रह जाता है और पुलिस अफसोस तक नहीं जताती। दरअसल आपके वश की बात नहीं है पुलिस कमिश्नर साहब। अगर होती तो आप बहादुर आईपीएस है जरूर करते। मगर बजरी माफियाओं की पहुंच ऊपर तक है और आप अपनी नौकरी से बंधे हुए हैं। अगर बजरी माफियाओं की फाइल खोली तो आपका भी बजरी माफिया जीना हराम कर देंगे। अब सवाल यह है कि आप ऐसे ही सम्मान लेकर आराम की नौकरी करना चाहते हैं या अपनी जिंदगी में भूचाल लाना चाहते हैं। बजरी माफियाओं की अगर आप फाइल खोलेंगे तो इसमें कई धन्ना सेठ होंगे। कई तो राजनीतिज्ञों के राइट हैंड होंगे जो नेताओं को चुनाव जिताते हैं। नेताओं के करीब ये लोग काफी पहुंच वाले हैं। इनकी हिस्ट्रीशीट की फाइलें भी काफी लंबी हैं। आपसे नहीं होगा पुलिस कमिश्नर साहब…ना…ना…नहीं होगा…रहने दीजिए…। अगर आप कुछ कर सकते हैं तो हम तो चाहते हैं कि आप कुछ कीजिए, इस शहर के दामन से बजरी माफियाओं का दाग मिटा दीजिए। मौत सड़कों पर सरपट भागती है। लोग कुचलते रहेंगे। पुलिस के सिपाही डरते रहेंगे ना ही पुलिस बजरी माफियाओं का कुछ कर पाएगी और ना ही शहर को सुकून मिलेगा।
झालामंड व्यापार मंडल भी कुंभकरणी नींद में सोया हुआ है?
झालामंड के गढ़ में इस प्रकार बजरी माफिया का आतंक जो कि रात दिन दहशत फैलाए हुए हैं, लेकिन झालामंड व्यापार मंडल कुंभकरणी नींद में सोया हुआ है और मौन बना बैठा है। घटना को गुजरे हुए 48 घंटे होने वाले हैं लेकिन अभी तक व्यापार मंडल व्यापारी समिति और उनके कार्यकारिणी पदाधिकारी के साथ-साथ किसी भी प्रकार का कोई जनप्रतिनिधि इस मामले को लेकर आगे नहीं आया है। आखिर क्या कारण है? भाजपा के नेता बड़ी बड़ी बातें करते हैं मगर भाजपा के एमएलए राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक बातें करके जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं। बेकार के मुद्दों को हौवा बनाते हैं और जनता के असली मुद्दों को गौण कर जाते हैं। मंदिर-मस्जिद के मुद्दों पर तनाव पैदा करने की बजाय भाजपा के नेताओं को बजरी माफियाओं पर लगाम लगानी चाहिए। मगर ऐसा नहीं हो रहा। जैसा कि हमने पहले ही कहा- यह मुद्दा किसी पार्टी की सरकार की पहुंच से बाहर निकल गया है। क्योंकि बजरी माफियाओं के कांग्रेस और भाजपा सभी पार्टियों के लोगों से सांठगांठ है। यही नहीं दोनों की पार्टियों से जुड़े हैं बजरी माफिया। ऐसे में इनके खिलाफ कार्रवाई होना आसान नहीं है। बीजेपी राज में भी बजरी माफियाओं का गुंडाराज चल रहा है। झालामंड चौराहा व्यापार संगठन और पुलिस प्रशासन क्या किसी की मौत का इंतजार कर रहा है या मौत होने के बाद नींद से जागेगा? शनिवार देर रात बजरी का डंपर खाली होने के बाद पुलिस अभी तक कुछ नहीं कर पाई है।
खनन विभाग तो गरीबदास बना हुआ है, न हथियार है और न हौसला…?
इधर खनन विभाग की बात करें तो वह तो गरीबदास बना हुआ है। न पूरे कर्मचारी है और न ही हथियार। न इतना हौसला। खनन विभाग के अफसर और कर्मचारी हमेशा नाकारा ही साबित होते आए हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें मालूम नहीं है। दरअसल आरोप तो यह लग रहे हैं कि खनन माफियाओं की भी बजरी माफियाओं से सांठगांठ है। पिछले 15 सालों में पुलिस कमिश्नरेट कुछ नहीं कर पाया तो पिछले तीन दशक में खनन विभाग भी कुछ नहीं कर पाया। पुलिस कमिश्नरेट से भी पहले खनन विभाग गरीब की दासी बनकर रहता आया है और अब भी यही हाल है। बजरी माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने का हौसला न खनन विभाग के अफसरों में है और न ही पुलिस अफसरों के पास। यही कारण है कि बजरी माफियाओं का आतंक बढ़ता गया और नासूर बन गया। अब नदियों में बचा ही क्या है? सारे ठिकाने तार-तार तो कर दिए। अब जो बचा है उसे तो बचा लो।…मगर किससे कहें? कौन सुने? बजरी माफियाओं के आगे सबने हथियार फेंक दिए हैं।
