शिव वर्मा. जोधपुर
शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में खेजड़ी का आर्थिक एवं धार्मिक महत्व है। सांगरी पंचकुटा सब्जी का प्रमुख घटक है । अच्छी बारिश होने से थार शोभा खेजड़ी पर सांगरी की भरपुर लताऐं लगी है । थार रेगिस्तान में अच्छा उत्पादन हुआ है । अभी मरुप्रदेश के बाशिंदे हरी सांगरी की सब्जी का जायका ले रहे हैं ।
काजरी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. अर्चना वर्मा ने बताया कि इस क्षेत्र में वर्षों से पाई जाने वाली देशी खेजड़ी पर कलम लगाकर संस्थान में कलमी खेजड़ी के पौधे तैयार किये जाते हैं, जिसमें रूटस्टॉक देशी खेजड़ी का ही होता है तथा कलिकायन विधि द्वारा कलमी खेजड़ी के पौधे तैयार किये जाते हैं । ये पोधे तीन-चार सालों में ही सांगरी का उत्पादन देना शुरू कर देते हैं । यह प्रजाति कांटे रहित होती है एवं इसकी उंचाई लगभग पांच से आठ फीट तक होती है जिस कारण सांगरी की तुड़ाई करने में आसानी रहती है । इसकी पत्तियो का चारा बहुत पौष्टिक होता है । बकरी गाय भेड़ आदि पशु इसे चाव से खाते हैं । इससे शरीर स्वस्थ रहता है तथा दुग्ध उत्पादन भी बढता है ।
सांगरी में विटामिन, प्रोटीन एन्टीओक्सीडेंट होते हैं
काजरी विभागाध्यक्ष डाॅ.धीरज सिंह ने बताया कि सांगरी में विटामीन मिनरल प्रोटीन एन्टीओक्सीडेन्ट होते है जो मानव स्वास्थय के लिए अच्छे है । पांच सितारा होटलों में भी पंचकुटा सब्जी का बहुत चलन है। काजरी निदेशक डाॅ. ओपी यादव ने बताया कि शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों के लिए खेजड़ी एक अनुकूलित वृक्ष है । गावों में महिलाऐं सांगरी में मूल्य संवर्धन कर अचार एवं सांगरी सुखा कर विक्रय करती है जिसकी बाजार में पूरे साल मांग रहती है । कलमी खेजड़ी के सांगरी एवं चारा उत्पादन से किसान को अच्छी आय प्राप्त हो रही है । इसके आर्थिक महत्व को देखते हुए किसानों में कलमी खेजड़ी के वृक्षारोपण का रूझान बढा है। काजरी की केन्द्रीय पौधशाला में अच्छे गुणवत्तायुक्त, स्वस्थ पौधे तैयार कर उचित दर पर किसानों को उपलब्ध करवाये जाते हैं ।
