लेखिका : अनीता मेहता, पूर्व प्राचार्य एवं डायरेक्टर दी संस्कृति फाउंडेशन
प्रकृति हमारे जीवन का मूल है। प्रकृति के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। हमारी आधारभूत ज़रूरतें प्रकृति द्वारा ही प्राप्त होती है । जैसे हवा, पानी, भोजन सब कुछ तो हमे प्रकृति देती है। प्रकृति हमारी जननी है। हमें जीवन देती है। हमें पालती है। प्रकृति की सेवा हमें उस प्रकार करनी चाहिए, जिस प्रकार से प्रकृति हमारी सेवा करती है। प्रकृति को हरा-भरा व स्वच्छ रखना हमारा दायित्व है। हमें उसके लिए अधिक से अधिक पौधे लगाने होंगे। पानी का दुरुपयोग करने से बचना होगा । जिससे हम ग्लोबल वार्मिंग पर भी नियंत्रण रख सकेंगे। धरती पर जीवन जीने के लिए भगवान ने हमें बहुमूल्य और कीमती खजाने के रूप में प्रकृति को दिया है । दैनिक जीवन के लिए उपलब्ध सभी साधनों के द्वारा प्रकृति हमारे जीवन को आसान बना देती है। हमारे जीविकोपार्जन का साधन है, अपने अस्तित्व को बनाने में हमारी पूरी मदद करती है। एक मां की तरह हमारा लालन-पालन मदद और ध्यान देने के लिए हमें प्रकृति का धन्यवाद देना चाहिए। प्रकृति के बिना हम कुछ भी नहीं है। वास्तव में प्रकृति हमारी मां है सुबह जल्दी प्रकृति की गोद में टहलने से हम स्वस्थ और मजबूत बनते हैं। हमारी कई सारी घातक बीमारियाें जैसे डायबिटीज, हृदयाघात, उच्च रक्तचाप, लिवर संबंधी बीमारियों, पाचन संबंधी समस्यों, संक्रमण, दिमाग की संबंध समस्याओं को दूर करने में प्रकृति की एक अहम भूमिका है। प्रकृति एक प्राकृतिक पर्यावरण है जो हमारे आसपास से हर पल पालन पोषण करती है। हमारे लिए एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है। बढ़ती भीड़ में प्रकृति का सुख लेना और अपने को स्वस्थ रखना भूल गए हैं।
तकनीकी उन्नति के कारण हमारी प्रकृति का लगातार हृास हो रहा है
हम आज हम शरीर को फिट रखने के लिए तकनीक का प्रयोग करते हैं जो की बिल्कुल सत्य है कि प्रकृति हमारा ध्यान रखती है। मानव जाति के जीवन में तकनीकी उन्नति के कारण हमारी प्रकृति का लगातार हृास हो रहा है, जिससे संतुलित और उसके प्राकृतिक संपदा को सुरक्षित रखने के लिए उच्च स्तर पर जागरूकता की आवश्यकता है। हम छुट्टियों में अपना अपना सारा दिन टीवी, कंप्यूटर न्यूज़पेपर, खेलों में खराब कर देते हैं और भूल जाते हैं प्रकृति की गोद में भी बहुत कुछ रोचक है। हम घर की सारी लाइटों को जलाकर रखते हैं। बेमतलब बिजली का इस्तेमाल करते हैं। ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देते हैं। दूसरी गतिविधियों जैसे पेड़ों जंगलों की कटाई से CO2 गैस की मात्रा में वृद्धि होती है और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती है। हमारे स्वार्थ के कारण हम प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। पारिस्थितिक किए तंत्र को संतुलित करने के लिए हमें पेड़ और जंगलों की कटाई रोकनी होगी। ऊर्जा और जल का संरक्षण करना होगा। अन्य प्रकृति के असली उपभोक्ता हमें और हमें इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। कुदरत अथवा प्रकृति अंकित रंगों से भरिए जिसे अपनी गोद में सजीव निर्जीव सभी समाहित रहते हैं। इस कुदरत के पास कुछ परिवर्तनकारी शक्तियां जो हमारे स्वभाव के अनुरूप बदलते हैं, दूसरी गतिविधियां जिन परिस्थितिगत प्रकृति को नष्ट कर रही है उस पर विचार करना हमारा नैतिक कर्तव्य होना चाहिए।
प्रकृति देता है अनमोल खजाना
मेरा यह प्रयास है की पौधरोपण के माध्यम से ही प्रकृति को हरा भरा रखकर प्रकृति के द्वारा अनमोल खजाना हमें प्राप्त हो सकता है। मैं बचपन से ही प्रकृति प्रेमी थी, क्योंकि मैं जब 9वीं कक्षा में पढ़ती थी तो मैंने मेहंदी के पेड़ों को लगाना शुरू किया, क्योंकि मैं सोचती थी जब यह पेड़ बड़े होंगे तो इनकी पत्तियों से हम हाथों में मेहंदी लगाएंगे। घर पर हम देखते थे कि किस प्रकार से तुलसी के पौधे पर पानी दिया जाता है। रक्षा सूत्र बांधा जाता है और आशा की जाती है कि वह हमारी रक्षा करेगी और साथ में हमारे परिवार को भी सुरक्षित और सुखी रखेगी। अतः बचपन से ही हमने पौधों के महत्व को समझ लिया था और जान लिया था। कुछ समय बाद हमने जाना कि पौधे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण है और एक महिला ने तो अपना बलिदान ही दे दिया । उसका बलिदान देखकर हमें प्रेरणा मिली कि किस प्रकार पेड़ों की हमें रक्षा करनी चाहिए। जोधपुर में एक जिले का एक गांव है खेजड़ली। इस गांव का नाम खेजड़ी वृक्ष से लिया गया है, जिनकी संख्या इस गांव में बेहद अधिक है। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में इसी स्थान से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसे आज भारत के पर्यावरण आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस आंदोलन के पहले एक महिला अमृता देवी और उसकी तीन बेटियों ने की थी उसके बाद ही पूरा बिश्नोई समाज जुड़ा और पेड़ों को गले लगा कर उन्हें बचाने लगा। खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है । खेजड़ी का पेड़ रेगिस्तान परिस्थितियों के लिए बेहद अनुकूल है इसकी जडे पानी तक पहुंचाने के लिए जमीन में कुछ 100 फीट नीचे तक जाती है।
पेड़ पर खाने लायक सांगरी की फलियां भी होती है
पेड़ पर खाने लायक मशहूर सांगरी की फलियां होती है, इसकी पत्तियों का इस्तेमाल चेहरे के लिए किया जाता है। खेजड़ी के पेड़ से गोंद प्राप्त होता है। लोग खाने और लड्डू बनाने के काम में इस्तेमाल करते हैं। इसका उपयोग औषधि प्रयोजन के लिए भी किया जाता है । स्थानीय लोग इस पेड़ का बहुत आदर करते हैं। विशेष कर विश्नोई समाज के लोग जिनके 29 सिद्धांत में से एक सिद्धांत है हरे पेड़ों को मत काटो पर्यावरण को बचाओ। जोधपुर के खेजड़ी गांव की कहानी जो कि मुझे बहुत ही प्रेरित करने वाली लगी है, और उसके बाद ही मेरा जो लगाव था। पौधरोपण के प्रति भी लगाव बढ़ा। एक महिला ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पेड़ को बचाने का कार्य किया। उससे मुझे प्रेरणा मिली। मैं अभिप्रेरित हुई और मैंने भी वचन लिया और संकल्प लिया कि मैं भी वृक्षों का इतना अधिक ध्यान रखूंगी। अमृता देवी जैसा तो नहीं कर सकती हूं परंतु फिर भी मैं जो भी कर सकती हूं पेड़ पौधे लगाकर ही कर सकती हूं। पर्यावरण को बचा सकती हूं और वातावरण को प्रदूषित न होने के उपाय कर सकती हूं। इसी आशय से मैंने अमृता देवी के खेजड़ी अभियान को अपनाया और मैंने भी जगह-जगह पौधरोपण किया। मैं यहां पर एक छोटी सी कहानी उनकी बताना चाहती हूं किस प्रकार से एक महिला ने अपनी जान की परवाह न करते हुए बलिदान दिया।
खेजड़ली गांव पर्यावरण संरक्षण की मिसाल
पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व में खेजड़ली गांव मिसाल बन गया है। गिस्तान के बिश्नोई प्रधान इस गांव में बहुत ही हरियाली थी। खेजड़ी के पेड़ बहुत अधिक मात्रा में थे। 1730 में भद्र महीने में अमृता देवी तीन बेटियों आंसू, रति और भागों के साथ घर पर थी। तभी अचानक उन्हें पता चला कि मारवाड़ जोधपुर के महाराज देवी सिंह ने सैनिकों को उनके गांव खेजड़ी के पेड़ों को काटने भेजा हैं। खेजड़ी की पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल महाराज अपने नए महल के निर्माण में करना चाहते थे। खेजड़ी की लकड़ी बहुत ही बेहतर जलती थी। इसीलिए महाराज ने अपने आदमियों को खेजड़ी के पेड़ों को लकड़ियों के काटने का आदेश दिया। चूंकि पेड़ों को काटना विशेष रूप से खेजड़ी बिश्नोई धर्म के खिलाफ था। इसलिए अमृता देवी ने राज्य के आदमियों का विरोध किया। जब उन्होंने देखा कि कुछ नहीं हो रहा है तो उन्होंने एक पेड़ को गले लगा लिया और घोषणा की सिरसांठे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण… यानी यदि किसी व्यक्ति की जान की कीमत पर भी एक पेड़ बचाया जा सकता है तो वह सस्त है। अड़ियल आदमियों ने पेड़ को काटने के लिए उनके शरीर को काट डाला। उनकी तीन बेटियां भी उनके नक्शे कदम पर बहादुरी से चलीं और पेड़ों को गले लगाया। यह खबर जब फैली तो 83 गांव में बिश्नोई खेजड़ली में एकत्रित हो गए। उन्होंने बैठक आयोजित की निर्णय किया कि प्रत्येक जीवित पेड़ को काटने के लिए विश्नोई स्वयंसेवक अपने और अपने जीवन का त्याग करेंगे। इस प्रकार से 363 बिश्नोई शहीद हुए। पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन को पहले चिपको आंदोलन माना जाता है। आज हम बिश्नोई को भारत का प्रथम पर्यावरण विद् कहते हैं।
अमृता देवी का बलिदान कई आंदोलनों की प्रेरणा बना
18वीं शताब्दी में अमृता देवी का बलिदान कई आंदोलनों की प्रेरणा बना। राजस्थान और मध्य प्रदेश की सरकारों ने वन्य जीव को सुरक्षा संरक्षण में योगदान के लिए राज्य स्तरीय अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार शुरू किया। बाद में 2013 में पर्यावरण मंत्रालय ने अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की। प्रबंध जीव संरक्षण में शामिल व्यक्तियों और संस्थाओं को यह पुरस्कार दिया जाता है। हिमालय के एक सुदूर गांव चंपल चमोली में भी आंदोलन हुआ। इस प्रकार से अमृता देवी के बलिदान की कहानी सुनकर मुझे बहुत कुछ प्रेरणा मिली। प्रश्न उठता है हमें प्रकृति को कैसे बचाना चाहिए? सबसे पहले मेरा प्रयास रहता है कि विशेष अवसरों पर, महापुरुषों की जयंतियों, जन्मदिवस पर या वैवाहिक दिवस पर एवं आयोजन और समारोह में मैं हमेशा पेड़ पौधे का वितरण करती हूं और पौधे लगाने का कार्य करती हूं। ग्रामीण क्षेत्र में जहां पर सार्वजनिक स्थल हैं, मंदिर हैं, खेलकूद के मैदान हैं। वहां पर हमने पौधे छायादार लगाएं क्योंकि वहां पर छाया की जरूरत थी। इसलिए हमने नीम के पौधे, अशोक ट्री, पीपल के पौधे लगाए। सालावास गांव, नांदडी गांव, लूणी गांव, कुड़ी गांव, तनावड़ा गांव में हमने काफी पौधे लगाए। कई जगह ट्री गार्ड भी दिए गए। कुल मिलाकर 200 पौधे हमने वहां पर गांव में लगा दिए हैं। अनार के पेड़, यूकेलिप्टस का पेड़, तुलसी के पौधे, गुड़हल के पौधे, कचनार के पेड़ ,बेर के पेड़ यह हमने गांव में विशेष रूप से लगाए। हमारी संस्था के द्वारा कई समारोह में अधिवेशन में भी हमने सौ सौ पौधे वितरित किए। सभी आमंत्रित सदस्यों को पौधों से सम्मानित कर संकल्प दिलाया कि वह यह पौधा बड़े होने तक सींचे। इसके अतिरिक्त मंदिरों में भी हमने कई पौधे लगाए। कल्पवृक्ष पौधा लगाया एवं पीपल का पौधा एवं आकड़े का पौधा भी लगाया । बिल्व के पौधे भी लगे। इस प्रकार से कुल मिलकर कई मंदिरों में हमने यह पौधे वितरित भी किए और स्वयं ने भी लगा स्कूलों में कॉलेज में हमने पौधे सभी शिक्षकगण को एवं गमले में भी लगाकर को विद्यालय प्रांगण को हरा भरा करने की कोशिश की। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है। वर्तमान परिवेश में विभिन्न प्रजातियों के जीव जंतु, प्राकृतिक स्रोत वनस्पति, विलुप्त होते जा रहे हैं। उन सब का कारण हमें मानव जाति है। इसलिए हमें सभी को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। उनकी वजह जो कि पर्यावरण का दोहन कर रही है उन्हें दूर करने के कारण दूर करना होगा।
अति प्रकृति दोहन विनाश का कारण बन सकता है
जनसंख्या बढ़ रही है। प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। प्रकृति का अति दोहन विनाश का कारण बन सकता है। जिसकी वजह से धरती पर जीवन को खतरा उत्पन्न हो रहा है। आपदाएं बढ़ रही हैं। प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी और जवाब देही की प्रति जागरूकता करने के उद्देश्य से हर साल हम विश्व प्रकृति संरक्षण को तो मानते हैं, पर कभी सोचा है इस दिशा में हमें कितनी सफलता प्राप्त हुई है और इसी के लिए मैं यह प्रार्थना करती हूं कि जल संरक्षण करें। पानी का दुरुपयोग करना बंद करें, जहां भी पानी बर्बाद हो रहा है उसे रोकने की कोशिश करें। सफाई के लिए गाड़ी धोने के लिए ,नहाने के लिए बहुत ज्यादा पानी का इस्तेमाल न करें । ऊर्जा संरक्षण के लिए बिजली की बचत करें। काम होते ही बिजली बंद करें, गर्मी के दिनों में रात में कमरा ठंडा हो जाने पर एसी भी बंद करें। बिजली के साथ बिजली बिल भी कम होगा। पेड़ पौधे हमारे जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह बात हम सभी जानते हैं। इसलिए घरों और सार्वजनिक जगहों पर पेड़ जरूर लगाएं। उपहार स्वरूप पौधा भेंट करने की परंपरा शुरू करें । लोग ऐसी शुरुआत भी कर चुके हैं बड़े पैमाने में अपनाने की जरूरत है तब जाकर किसी भी तरह से पर्यावरण का संरक्षण हो सकेगा। बागवानी करें, खुद सब्जियां लगाएं। बाजार से मिल रही सब्जियों में कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। अर्थात पर्यावरण के लिए ऐसी सब्जियां घातक है तो स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक होती है। इसलिए इन रसायनों से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने की आवश्यकता है। ऐसी चीजें खरीदें जिसका कि दोबारा इस्तेमाल किया जा सके ।
पॉलीथिन की जगह कागज को अपनाएं
पॉलीथिन की जगह कागज को अपनाएं । गंदगी ना फैलाएं। इधर-उधर कूड़ा फेंकने की वजह कूड़ेदान में फेेंकें। संभव हो तो खुद ही जैविकीय खाद, कचरे को कंपोस्टिंग करे । गंदगी ना होने दें बीमारियां न फैलने दें । कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल करें, खेतों में व बागवानी में इसका इस्तेमाल करें। इसके साथ-साथ कुछ विशेष कार्य भी करने होंगे। जो लोग अधिक धूम्रपान करते हैं उनको बंद करें। उनके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है और उसके आसपास बैठने वालों के लिए भी हानिकारक होता है। पर्यावरण के लिए यह कार्य करना बहुत ही आवश्यक है। वायु प्रदूषण कम से कम हो, इसके लिए वाहनों का कम से कम इस्तेमाल किया जाए। कम दूरी के लिए साइकिलिंग का प्रयोग करें। यही आदत बना लें। सबसे जरूरी बातें लोगों को प्रकृति पर्यावरण ऊर्जा संरक्षण के बारे में बताएं। सेमिनार के माध्यम से, संगोष्ठियों के माध्यम से और कॉलेज स्कूलों में निबंध प्रतियोगिता के माध्यम से बच्चों में बिजली बचत, जल संरक्षण, वायु संरक्षण इत्यादि की जानकारी दें । पेड़ पौधे लगाओ और पर्यावरण बचाओ की जानकारी देते हुए उन्हें बार-बार जागरूकता का कार्य करें, जिससे कि पर्यावरण का संरक्षण हो सकें। प्रकृति हरी भरी हो सकें। जो प्रकृति से हमें जो अनमोल खजाना मिल रहा है वह वैसे ही बरकरार रहने दें और वातावरण दूषित ना रहें। हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारा राष्ट्र भी स्वस्थ रहेगा। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ किसी उद्देश्य और विश्वास के साथ आज मैं हर छोटे-मोटे फंक्शन में एवं हर क्षेत्र में पौधे ही भेंट करना पसंद करती हूं। आज तक करती आ रही हूं। आज तक 4000 पौधे अपने जीवन में भेट और वितरण कर चुकी हूं। महाराष्ट्र के समस्त महाजन परिवार के द्वारा विशाल पौधरोपण के क्षेत्र में मुझे सम्मानित किया गया है। मुझे पर्यावरण के क्षेत्र में कई प्रकार के प्रशस्ति पत्र प्राप्त हो चुके हैं। मैंने कई रैलियां में भाग लिया है। इसके साथ-साथ कई संगोष्ठी और सेमिनारों को आयोजित कर कर स्वयं भी भाग लिया है और स्वयं के द्वारा भी कराया है और इस प्रकार से कार्य में निरंतर करती आ रही हूं और आजीवन करती रहूंगी। खेजड़ली की अमृता देवी के बलिदान की चमक कम नहीं होने दूंगी। आज हमें इस उद्देश्य से पेड़ों की रक्षा करते हुए जगह-जगह पेड़ों को लगाने का नैतिक कार्य और दायित्व निभाना होगा। हमें अपने स्तर पर व्यक्तिगत रूप से अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखना होगा। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तभी प्रकृति की ओर लौट सकेंगे। आज हर व्यक्ति को दौड़ भरी जिंदगी से दूर होकर प्रकृति के करीब रहना होगा। लोग आज हिल स्टेशनों पर जाते हैं और वहां का आनंद लेते हैं और इसी के साथ मन में यह भावना भी उत्पन्न हो जाती है कि हमें प्रकृति का दोहन नहीं हो और उसका संवर्धन करना चाहिए और इस प्रकार से वही कार्य आज हम भी करते आ रहे हैं। इसी उद्देश्य को लेते हैं जो वायु को शुद्ध करने के लिए हमें पेड़ पौधे लगाना होगा, जिससे कि हमें शुद्ध ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा से ज्यादा मिल सकें। हम लोगों को पेड़ काटने से सबको रोकना होगा। पेड़ लगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रेरित करना होगा। इसके साथ-साथ हमें घरों से निकलने वाले दूषित जल को भी साफ करने के लिए जगह-जगह प्लांट लगाना चाहिए। फैक्ट्री कलकारखानों को नदियों से दूर करना होगा सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा। हमें पेड़ पौधे लगाने चाहिए। अपने आसपास रखे कूड़ेदान का प्रयोग करने के लिए लोगों को बताएं। कार्टून चित्र के जरिए लोगों को स्वच्छता के मायने को समझाएं । प्लास्टिक की चीजों का काम से कम इस्तेमाल करें। पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए हम और भी प्रभावशाली कदम उठा सकते हैं। एकल उपयोग वाली वस्तुओं का त्याग करना। भोजन के अपशिष्ट से खाद बनाना चाहिए। आज मैं इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं। हरित डिजिटल क्रांति में अपना पूरा सहयोग देती आ रही हूं। जगह-जगह पर हम अभी भी पौधों को भेंट करते हैं और हमारा उद्देश्य यही रहता है बड़े-बड़े फंक्शन में जाना बड़े-बड़े अतिथि गणों को एक-एक पौधा भेंट में देकर अपनी जिम्मेदारियां निभाएं। आज जरूरत है प्रकृति की ओर लौटने की। क्योंकि प्रकृति ही हमें सब कुछ देता है। हमें भी उन्हें कुछ देना चाहिए।
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