स्तम्भ : नकेल, हर रविवार
प्रमोद. बीकानेर
इन दिनों संपूर्ण भारतवर्ष में एक नई समस्या, एक नए रूप में हमारे सामने खड़ी हो रही है,
जो हमारे सामने एक विकट रुप से उत्पन्न कर रही है।
वस्तुतः कोई भी अंततः समस्या मुक्त और सरल जीवन ही जीना चाहता है। लेकिन जीवन का जो यांत्रिक स्वभाव हुआ,वह दुखद और उलझन भरा है।
हर कोई उसे निकलने का रास्ता तलाश करता रहता है ।कुछ इस के लिए योग और ज्ञान का सहारा लेते हैं । कुछ खुश भक्ति का सहारा लेते हैं। कुछ लोग कर्म का सहारा लेते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते जो इन में से कुछ भी नहीं कर पाते। वे हर चीज तत्काल चाहते हैं। इसके लिए इन दिनों वे रील्स देखते हैं। अंधविश्वास से भरी हुई। कोई टोटके बता रहा होता है । कोई लकवा ठीक कर रहा होता है । कोई हवा में भविष्य बता रहा होता है। कोई गुमशुदा वस्तु की तलाश बता रहा होता तो कोई कैंसर का इलाज बता रहा था । जनसंख्या दिनभर इसी काम में उलझी रहती है। उनकी प्रतिष्ठा का देव इतना बड़ा कारण नहीं होते जितना की सरकारें और सत्ताएं होती है ।वहां जाकर के ये लोग बैठे रहते हैं ।और बाबाओ के चमत्कारों के प्रतीक्षा में अपने आप को लुटाते रहते हैं। इस सबके बीच उनकी साहसिक मानसिकता, पुरुषार्थ और भारतीय मनीषा की वह जिज्ञासा खत्म हो जाती है,जो ईश्वर की खोज के लिए जरूरी है। इसलिए हम अगर भारतवर्ष को साक्षी और जागरूक करना चाहते हैं तो हमें धार्मिक पाखंडवाद का, जिन पर माता आती है ,जिन पर तरह-तरह के देवता उतरते हैं ,वे पर्चा पढ़ कर बताते हैं। उनसे बचना चाहिए और अपने आप को शुद्ध भक्ति में डालकर भारतवर्ष का ज्ञान खोजते हुए मोक्ष और मुक्ति की प्राप्ति करनी चाहिए।
इसमें ही भारत की प्रतिष्ठा है।
-राम.




