कांग्रेस में अपनी कलह रुक नहीं रही, गहलोत ने विधायकों को खरीदने और सरकार गिराने का मामला उठा फिर पाइलट को छेड़ दिया है… ऐसे में कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं है… इसलिए भजनलाल सरकार फिलहाल सेफ है… फिर भी अगर भजनलाल को हटाया जाता है तो इसका मतलब होगा नरेंद्र मोदी की पार्टी पर पकड़ कमजोर हो गई है और खुद उनके फैसले गलत साबित होंगे.
डी के पुरोहित. जोधपुर
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों उथल-पुथल का माहौल है। सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, हर खेमे में हलचलें तेज़ हैं। लेकिन इन तमाम अटकलों और साजिशों की आंधी के बीच, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित मानी जा रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अप्रत्यक्ष समर्थन। राजनीतिक गलियारों में यह साफ माना जा रहा है कि यदि भजनलाल शर्मा को हटाया गया, तो वह सीधे तौर पर मोदी के चयन पर प्रश्नचिह्न होगा, जिसे भाजपा नेतृत्व स्वीकार नहीं करेगा।
मोदी की पसंद हैं भजनलाल शर्मा
2023 के विधानसभा चुनावों के बाद जब भाजपा ने राजस्थान में सत्ता में वापसी की, तो सभी की निगाहें इस पर टिकी थीं कि पार्टी किसे मुख्यमंत्री बनाएगी। उस समय भजनलाल शर्मा का नाम एक सरप्राइज़ के तौर पर सामने आया। वे अपेक्षाकृत नया चेहरा थे, और उनका नाम भाजपा के पारंपरिक पावर सर्कल से बाहर का था।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भजनलाल शर्मा की ताजपोशी सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की पसंद पर आधारित थी। शर्मा संघ से जुड़े हुए हैं और एक अनुशासित, संगठनवादी नेता माने जाते हैं। उनकी नियुक्ति ने यह संकेत दिया था कि भाजपा राजस्थान में ‘फेस-सेंटरिक’ राजनीति से हटकर ‘संघ और संगठन आधारित’ मॉडल की ओर बढ़ना चाहती है।
सवाल उठाने का मतलब मोदी पर उंगली उठाना
भाजपा के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि पार्टी के भीतर कुछ विधायक और वरिष्ठ नेता भजनलाल शर्मा की कार्यशैली से असंतुष्ट हैं। कई बार उनके प्रशासनिक निर्णयों और नियुक्तियों को लेकर नाराज़गी भी जाहिर की गई है। लेकिन, दिल्ली दरबार से अब तक कोई असंतोष नहीं दिखा है। जानकारों का मानना है कि यदि अभी शर्मा को हटाया गया, तो पार्टी की एकता और नेतृत्व की साख पर असर पड़ेगा।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “भजनलाल शर्मा को हटाने का अर्थ होगा कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव परिणाम के बाद गलत निर्णय लिया। ऐसे में मोदी और शाह की रणनीतिक समझ पर सवाल उठ सकते हैं, जो भाजपा कतई नहीं चाहती।”
गहलोत का दावा और जोधपुर की हलचल
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने हाल ही में अपने जोधपुर प्रवास के दौरान एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि “भजनलाल सरकार के खिलाफ एक संगठित साजिश चल रही है और कुछ ताकतें उन्हें हटाने का प्रयास कर रही हैं।” यह बयान सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया।
गहलोत के इस बयान के कई मायने निकाले गए—क्या कांग्रेस के पास कोई पुख्ता जानकारी है? क्या भाजपा के भीतर सत्ता संघर्ष तेज हो गया है? हालांकि बाद में यह स्पष्ट होता गया कि यह बयान कांग्रेस की रणनीतिक चाल का हिस्सा था, ताकि भाजपा में भ्रम और अस्थिरता का माहौल बनाया जा सके।
सचिन पायलट बनाम गहलोत: कांग्रेस में फिर से संघर्ष
कांग्रेस पार्टी, जो खुद अभी सत्ता में नहीं है, उसके भीतर भी शांति नहीं है। एक ओर जहाँ भाजपा में नेतृत्व पर सवाल खड़े हो रहे थे, वहीं कांग्रेस के दो प्रमुख चेहरे—सचिन पायलट और अशोक गहलोत—एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं। यह टकराव एक बार फिर पार्टी के अंदरूनी असंतुलन को दर्शाता है।
राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि जब विपक्ष खुद ही अस्थिरता से जूझ रहा हो, तब सत्ता पक्ष को सहज रूप से राहत मिलती है। कांग्रेस की यह आंतरिक खींचतान भजनलाल शर्मा के लिए अप्रत्यक्ष रूप से फायदेमंद साबित हो रही है।
अफवाहों पर विराम, संदेश साफ
राजनीतिक गलियारों में भले ही चर्चाएँ होती रहीं कि शर्मा को हटाया जा सकता है या उनका विकल्प तैयार किया जा रहा है, लेकिन हालिया घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि उनकी कुर्सी फिलहाल खतरे में नहीं है। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कोई नाराज़गी जाहिर नहीं की गई है, और दिल्ली से आए नेताओं ने भी भजनलाल शर्मा को पूरा समर्थन दिया है।
राजस्थान भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अभी जो भी चर्चा है, वह अफवाह से ज्यादा कुछ नहीं है। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर एक संदेश दिया है और उसे बदला नहीं जाएगा, कम से कम निकट भविष्य में तो नहीं।”
भजनलाल शर्मा की चुनौतियाँ
हालांकि कुर्सी सुरक्षित है, मगर भजनलाल शर्मा के सामने कई प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौतियाँ हैं:
- गुटबाज़ी: पार्टी के कुछ पुराने नेताओं को शर्मा की कार्यशैली रास नहीं आ रही है।
- जनता की अपेक्षाएँ: महंगाई, बेरोजगारी और कृषि संकट जैसे मुद्दे अभी भी कायम हैं।
- संगठन के साथ सामंजस्य: मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें पार्टी संगठन के साथ तालमेल बनाना जरूरी है।
- संघ की अपेक्षाएँ: संघ चाहता है कि सरकार ‘जनसंघर्ष’ की जगह ‘जनसेवा’ पर जोर दे।
इन सभी पहलुओं पर यदि वे सफल रहते हैं, तो न केवल उनका कार्यकाल सुरक्षित रहेगा, बल्कि आगामी चुनावों में भी यह मॉडल भाजपा के लिए मददगार हो सकता है।
भाजपा की रणनीति: ‘स्थायित्व’ का संदेश
भाजपा नेतृत्व अब यह संदेश देना चाहता है कि पार्टी में स्थायित्व है। पार्टी यह संकेत देना चाहती है कि उसने जो निर्णय लिया है, उस पर अडिग रहेगी।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “अगर बार-बार मुख्यमंत्री बदलते रहेंगे, तो आम जनता में यह धारणा बन सकती है कि भाजपा नेतृत्व भी भ्रमित है। यही कारण है कि भजनलाल शर्मा को हटाना फिलहाल पार्टी के हित में नहीं है।”
विपक्ष की रणनीति विफल
कांग्रेस ने शुरू में यह मान लिया था कि भाजपा के अंदर टकराव बढ़ेगा और इससे उन्हें राजनीतिक फायदा मिलेगा। मगर अब जब यह साफ हो गया है कि मोदी और शाह के समर्थन से भजनलाल शर्मा की स्थिति मजबूत है, तो कांग्रेस की रणनीति भी कमजोर पड़ती दिख रही है।
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच बढ़ती तल्ख़ी ने भी कांग्रेस को आंतरिक रूप से कमजोर किया है। प्रदेश कांग्रेस में कोई स्पष्ट रणनीति नज़र नहीं आ रही है, और नेतृत्व संकट भी बरकरार है।
आगे क्या?
भविष्य में भजनलाल शर्मा के सामने दो स्तरों पर काम करने की चुनौती है:
- प्रशासनिक मोर्चा: आम जनता के मुद्दों को समयबद्ध हल कर जनता का भरोसा जीतना।
- राजनीतिक मोर्चा: पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को साथ लेकर चलना और संगठन के प्रति जवाबदेह रहना।
यदि वे इन दोनों मोर्चों पर संतुलन बनाए रखते हैं, तो उनका कार्यकाल न सिर्फ सुरक्षित रहेगा, बल्कि भाजपा का “राजस्थान मॉडल” भी उभर सकता है।
भजनलाल की कुर्सी को फिलहाल खतरा नहीं:
राजस्थान की राजनीति में भले ही हलचल मची हो, लेकिन मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कुर्सी पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीतिक सोच और निर्णायक नेतृत्व के चलते यह संदेश दिया गया है कि भाजपा अपने निर्णयों पर कायम है। कांग्रेस की आंतरिक खींचतान और विपक्ष की बिखरी रणनीति ने भी भाजपा को राहत दी है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भजनलाल शर्मा इस स्थायित्व को विकास और जनहित में कैसे बदलते हैं।





