हर साल करीब 20 लाख पौधे लगाने का दावा करने वाला वन विभाग गत 10 सालों में 2 करोड़ पौधे लगाने का दावा करता है. इन दावो की हकीकत बयां करती ये रिपोर्ट…
डी के पुरोहित. जोधपुर. फलोदी
राजस्थान का मरुस्थलीय इलाका, जहां जल संकट और पर्यावरणीय असंतुलन की समस्याएं पहले से ही विकराल रूप में मौजूद हैं, वहां हरियाली लाना एक महत्त्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा प्रतिवर्ष लाखों पौधे लगाने का दावा किया जाता है। गत वर्ष जोधपुर और फलोदी क्षेत्रों में विभाग ने 24 लाख पौधे लगाने की बात कही थी, और इस वर्ष यह आंकड़ा और बढ़ाकर 31.79 लाख पौधों का लक्ष्य तय किया गया है।
लेकिन जब इन आंकड़ों के पीछे की सच्चाई को टटोलने की कोशिश की जाती है, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं। वन विभाग के पिछले दस वर्षों के रेकॉर्ड्स पर नजर डालें, तो विभाग दो करोड़ से अधिक पौधे लगाने का दावा कर चुका है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इतने विशाल पैमाने पर लगाए गए पौधे आखिर गए कहां?
दावों की हकीकत: जमीन पर कुछ और, फाइलों में कुछ और
वन विभाग की फाइलों में जो आंकड़े दर्ज हैं, वे भले ही लाखों पौधों की गवाही देते हों, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है। अरण्य और गोचर भूमि, जो परंपरागत रूप से सामुदायिक चरागाह और जंगल की भूमियों के रूप में चिन्हित होती थी, अब अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी हैं। कहीं आवासीय योजनाएं बन गईं, कहीं सड़कें और अन्य अधोसंरचनाएं खड़ी कर दी गईं।
इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि जब भूमि ही उपलब्ध नहीं, तो इतने पौधे कहां लगाए गए?
कट चुके हैं पुराने पेड़, नए पौधे गायब
राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में हर पेड़ का महत्व जीवन से कम नहीं होता। लेकिन विडंबना यह है कि विकास के नाम पर पहले से मौजूद वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की गई। चाहे वो सड़क चौड़ीकरण हो, या शहरों का विस्तार – पेड़ काटे जाते रहे, और बदले में लगाए गए पौधों की निगरानी का कोई प्रभावी तंत्र विकसित नहीं किया गया।
वन विभाग का दावा है कि दो करोड़ से ज्यादा पौधे पिछले दस वर्षों में लगाए गए हैं, लेकिन इनसे कितने पेड़ बने और उनमें से कितने आज भी जीवित हैं – इस पर विभाग के पास कोई ठोस आंकड़ा नहीं है। न ही कोई ऐसा डिजिटली ट्रैकिंग सिस्टम है जो यह दिखा सके कि पौधे किस लोकेशन पर लगाए गए, उनकी देखभाल की जिम्मेदारी किसकी है और उनकी वर्तमान स्थिति क्या है।
करोड़ों रुपये खर्च, लेकिन परिणाम शून्य
पौधारोपण अभियान कोई सस्ता कार्य नहीं होता। गड्ढे खुदवाने से लेकर पौधों की खरीद, ट्रांसपोर्टेशन, श्रमिकों की मजदूरी और बाद की देखरेख – हर चरण में सरकारी धन खर्च होता है। जानकारी के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में पौधारोपण पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन क्या इस निवेश का कोई प्रतिफल मिला? क्या हरियाली बढ़ी? क्या गर्मी और सूखे का असर कम हुआ?
जवाब है – नहीं। क्योंकि विभाग के पास यह बताने के लिए कोई पारदर्शी डेटा नहीं है कि पौधों का अस्तित्व आज भी है या नहीं। ये पैसे कहां खर्च हुए, किसने लगाए, कितने पौधे जीवित रहे – सबकुछ जवाबदेही से दूर महज़ कागज़ी खेल बनकर रह गया है।
पौधारोपण का कोई वैज्ञानिक या व्यावहारिक खाका नहीं
इतने बड़े लक्ष्य की योजना बनाते समय यह आवश्यक होता है कि एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाए – जैसे कि कौन-सी भूमि पर पौधे लगाए जाएंगे, किस प्रजाति के पौधे होंगे, उनकी देखभाल कौन करेगा, जल व्यवस्था कैसे होगी, और क्या जीव-जंतुओं से सुरक्षा के उपाय किए गए हैं।
लेकिन दुर्भाग्यवश, इस साल जो 31.79 लाख पौधों का लक्ष्य रखा गया है, उसकी भी कोई स्पष्ट कार्य योजना वन विभाग के पास नहीं है। सवाल यह है कि अगर भूमि चिन्हित नहीं है, देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं है और सर्वेक्षण नहीं किया गया, तो क्या फिर से करोड़ों रुपये सिर्फ कागज़ों में खर्च नहीं हो जाएंगे?
ग्रामीणों की नाराजगी और स्थानीय अनुभव
फलोदी के पास बसे एक गाँव के किसान रामस्वरूप कहते हैं, “हर साल ट्रक में पौधे आते हैं, गाँव के स्कूल के बच्चों से लगाए जाते हैं, पर बारिश नहीं होती, देखरेख नहीं होती और 1 महीने में सारे सूख जाते हैं। अगले साल फिर वही प्रक्रिया।”
कई अन्य ग्रामीण भी बताते हैं कि वन विभाग केवल गिनती पूरी करने के लिए कभी-कभी स्कूलों, पंचायत भवनों, या खाली मैदानों में पौधे लगवाता है। इन पौधों को कोई पानी नहीं देता, न ही उनकी घेराबंदी होती है जिससे पशु उन्हें खा जाते हैं। यह पूरा अभियान प्रतीकात्मक बनकर रह गया है।
पर्यावरणविदों की चिंता
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में पौधारोपण अत्यंत आवश्यक है, लेकिन इसके लिए केवल पौधे लगाना ही पर्याप्त नहीं है। वृक्षारोपण तभी सार्थक है जब वह दीर्घकालिक योजना का हिस्सा हो – जिसमें पानी, संरक्षण, देखरेख और सामुदायिक भागीदारी शामिल हो।
वन विशेषज्ञ कहते हैं, “राजस्थान में पौधे लगाना आधी लड़ाई है। असली चुनौती है उन्हें जीवित रखना। जब तक पानी की व्यवस्था, पशुओं से सुरक्षा और स्थानीय लोगों की भागीदारी नहीं होगी, तब तक यह महज़ एक दिखावा रहेगा।”
समाधान क्या है?
वन विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने की आवश्यकता है। यदि सच में हरियाली लानी है, तो निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
- डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम: हर लगाए गए पौधे को GPS लोकेशन के साथ दर्ज किया जाए ताकि उसका ट्रैक रखा जा सके।
- स्थानीय समुदाय की भागीदारी: गांवों के स्कूल, पंचायतें और स्वयंसेवी संस्थाओं को जिम्मेदारी दी जाए कि वे इन पौधों की देखभाल करें।
- वृक्षारोपण की बजाय वृक्ष-संरक्षण: जहां पेड़ हैं, पहले उन्हें बचाया जाए। विकास योजनाओं में वृक्ष संरक्षण को अनिवार्य बनाया जाए।
- रोग-प्रतिरोधी और स्थानीय प्रजातियां: स्थानीय जलवायु के अनुरूप प्रजातियों का चयन किया जाए जो कम पानी में जीवित रह सकें।
- वार्षिक ऑडिट: हर साल स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा पौधारोपण का मूल्यांकन कराया जाए और रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
- पब्लिक रिपोर्टिंग सिस्टम: आम जनता यह जान सके कि उनके क्षेत्र में कितने पौधे लगाए गए और उनका हाल क्या है।
केवल आंकड़ों से नहीं होगा हरियाली का सपना पूरा
पौधारोपण एक बेहद ज़रूरी और नेक कार्य है, लेकिन जब यह दिखावे और आंकड़ों की दौड़ में तब्दील हो जाता है, तो उसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। राजस्थान जैसे राज्य को जहां हर एक पेड़ जीवन देता है, वहां यदि दो करोड़ पौधों का कोई हिसाब न हो, तो यह न केवल सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर भी।
इस बार जब 31.79 लाख पौधों के लगाए जाने का दावा किया जा रहा है, तो यह ज़रूरी है कि जन प्रतिनिधि, मीडिया और नागरिक समाज इस पर निगरानी रखें। क्योंकि यदि यह अभियान भी केवल कागज़ों में रह गया, तो फिर भविष्य में हरियाली केवल तस्वीरों और स्लोगनों में ही रह जाएगी।



