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Monday, November 10, 2025, 4:41 pm

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‘द रेड साड़ी’…क्या सोनिया भारत की सत्ता के गलियारों में मान्यता मिली, उनकी उपेक्षा, उनसे अपेक्षा…जीवन की सांझ में क्या होगा कोई चमत्कार…?

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भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी का किरदार बड़ा ही रहस्यमयी रहा है, शांत-गंभीर तो कोई उसे शातिर कहता है…पति राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया युग आया भी और नहीं भी, क्योंकि सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बनी पर सत्ता की चाबी सदा उनके हाथ रही…आज से हम ‘द रेड साड़ी’ पुस्तक जो जेवियर मोरो ने लिखी है उसके माध्यम से सोनिया गांधी की बातें करेंगेआज पहली कड़ी…

डीके पुरोहित. नई दिल्ली, diliprakhai@gmail.com

“द रेड साड़ी” की शुरुआत सोनिया गांधी के भारतीय राजनीति में प्रवेश से नहीं, बल्कि 24 मई, 1991 की भीषण त्रासदी से होती है — वह दिन जब पूरा भारत राजीव गांधी के शोक में डूबा हुआ था। पुस्तक का प्रोलॉग और पहला अध्याय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अंतिम संस्कार का एक भावनात्मक और गहराई से वर्णित चित्र प्रस्तुत करता है। राजीव की हत्या एक चुनावी अभियान के दौरान हुए आतंकवादी विस्फोट में कर दी गई थी।

मुख्य विषयवस्तु और विवरण:
1. व्यक्तिगत क्षति और शोक:

कहानी की शुरुआत सोनिया गांधी की गहरी पीड़ा के साथ होती है। वह एक शोकसंतप्त पत्नी के रूप में चित्रित की जाती हैं — एक विदेशी महिला (जन्म इटली की सोनिया माइनो) जिसने भारत को अपना घर बना लिया था और अब उसे उस व्यक्ति की मौत का सामना करना पड़ रहा है जिसे वह बेहद प्रेम करती थीं।

“वह उन्हें खुद से ज़्यादा प्यार करती थीं।”

पुस्तक का वर्णन प्रेम और त्रासदी दोनों से परिपूर्ण है। इसमें हिंदू अंतिम संस्कार की रस्मों का भी सजीव चित्रण है — खोपड़ी की चटक, शरीर को जलती चिता, गंगा जल का छिड़काव — यह सब जीवन, मृत्यु और आध्यात्मिकता का प्रतीक बन जाता है।

2. सोनिया की भारतीयता और उनका संबल:

हालांकि सोनिया का जन्म इटली में हुआ था, लेकिन वह भारतीय परंपराओं को पूरी तरह आत्मसात कर चुकी थीं — उन्होंने सफेद साड़ी पहनी, अपने पति के शव को प्रणाम किया, अंतिम संस्कार की रस्मों की सांस्कृतिक गंभीरता को समझा और कुछ परंपरावादियों के विरोध के बावजूद चिता में भाग लिया

वह सिर्फ एक विधवा नहीं बल्कि संयम और संकल्प की प्रतिमूर्ति बनकर उभरीं। उनकी प्रतिक्रिया में इंदिरा गांधी जैसी शक्ति दिखाई देती है।

“उन्होंने वैसी ही प्रतिक्रिया दी, जैसी उनकी सास इंदिरा गांधी देतीं।”

3. नेहरू-गांधी परिवार की विरासत:

इस अंतिम यात्रा के माध्यम से, लेखक नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत की भी चर्चा करता है। इस परिवार को सिर्फ नेता नहीं बल्कि आधुनिक भारत की भावनात्मक पहचान के रूप में दर्शाया गया है।

सोनिया अब तीसरी ऐसी गांधी विधवा हैं (इंदिरा और संजय के बाद), जो निजी शोक और राष्ट्रीय अपेक्षा के मोड़ पर खड़ी हैं।

राजीव की अस्थियां लेकर चलने वाली “हार्टब्रेक एक्सप्रेस”, भीड़ का जनसैलाब, विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति — यह सब इस बात को रेखांकित करता है कि यह केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की सांझी पीड़ा थी।

4. राजनीतिक संकेत और सवाल:

कहानी में कुछ राजनीतिक टिप्पणी भी छिपी है। सवाल उठते हैं कि राजीव गांधी की SPG सुरक्षा क्यों हटाई गई? क्या यह एक लापरवाही थी, या फिर एक राजनीतिक साज़िश?

“क्या इसे टाला जा सकता था?… क्योंकि यह तथाकथित ‘लापरवाही’ उनके विरोधियों के इरादों से मेल खाती थी?”

इस बिंदु पर सोनिया की आंतरिक उलझन भी सामने आती है — प्रेम और न्याय के बीच, निजी दुःख और राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी के बीच।

5. आध्यात्मिकता और प्रतीकात्मकता:

वेद मंत्रों की गूंज, “अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो” जैसी प्रार्थनाएँ, और शव को जलाती अग्नि — यह अध्याय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों से भरपूर है।

सोनिया की आंखों से हम भारतीय जीवन, मृत्यु, पुनर्जन्म और आत्मा की मुक्ति के गहरे अर्थों को महसूस करते हैं।

शैली और स्वर:

जेवियर मोरो की लेखनी सिनेमाई, वर्णनात्मक और गहराई से भावनात्मक है। वह न केवल घटनाओं को बल्कि उनके अनुभव को भी शब्दों में ढालते हैं — पसीने का स्वाद, जलते शरीर की गंध, चिता जलाते हाथ का कंपन।

लेखन में यूरोपीय रोमांटिकता और पत्रकारिता की सूक्ष्मता दोनों की झलक मिलती है, जिससे कहानी व्यक्तिगत भी लगती है और ऐतिहासिक भी।

स्वर शोकपूर्ण है — एक खोए हुए प्रेम और टूटे सपनों की श्रद्धांजलि। लेकिन साथ ही एक भविष्यवाणी भी — यह केवल अंत नहीं, एक नई शुरुआत का संकेत है।

यह राजनीतिक इतिहास और आत्म-परिवर्तन की कथा का आरंभ है:

“द रेड सारी” का पहला अध्याय केवल व्यक्तिगत दुःख की कहानी नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक इतिहास और आत्म-परिवर्तन की कथा का आरंभ है। यह उस महिला की कहानी है, जिसने कभी राजनीति की लालसा नहीं की, लेकिन इतिहास और त्रासदी ने उसे राष्ट्र के केंद्र में ला खड़ा किया।

जब सोनिया गांधी राख और अग्नि के बीच स्थिर खड़ी होती हैं, तो पाठक समझ जाता है — यह केवल अंत नहीं, बल्कि उस देश की भी एक नई शुरुआत है, जिसे वह अब अपना घर कहती हैं।

(द रेड सारी पर आधारित खोजी रिपोर्ट की दूसरी कड़ी कल, साभार- जेवियर मोरो…)
Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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