प्यासी धरती मुरझा मधुवन
प्यासी धरती तुझे पुकारे,
प्यासी नदिया तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।
बादल नील गगन पर छाते,
संग आंधियों को ले आते,
तेरे राजदूत बनकर वे,
झूठे आश्वासन दे जाते।
सूखी पोखर तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।
कोयल सूखी अमराई में,
विरह गीत गाती रहती है,
और मोरनी खुली चोंच से,
अंबर को देखा करती है।
प्यासा चातक तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।
बूंदों की गगरी सिर पर रख,
मानसून की दासी आतीं,
मधुबन के मुरझाये मुख पर,
आकर छींटे से दे जातीं।
झुलसी कोंपल तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।
प्यासी धरती तुझे पुकारे,
प्यासी नदिया तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।
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गीतकार : अनिल भारद्वाज,
एडवोकेट, हाईकोर्ट, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)।
