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Friday, May 16, 2025, 9:37 am

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गीत : अनिल भारद्वाज

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प्यासी धरती मुरझा मधुवन

प्यासी धरती तुझे पुकारे,
प्यासी नदिया तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।

बादल नील गगन पर छाते,
संग आंधियों को ले आते,
तेरे राजदूत बनकर वे,
झूठे आश्वासन दे जाते।

सूखी पोखर तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।

कोयल सूखी अमराई में,
विरह गीत गाती रहती है,
और मोरनी खुली चोंच से,
अंबर को देखा करती है।

प्यासा चातक तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।

बूंदों की गगरी सिर पर रख,
मानसून की दासी आतीं,
मधुबन के मुरझाये मुख पर,
आकर छींटे से दे जातीं।

झुलसी कोंपल तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।

प्यासी धरती तुझे पुकारे,
प्यासी नदिया तुझे पुकारे,
आ रे मेघा अब तो आ रे।
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गीतकार : अनिल भारद्वाज,

एडवोकेट, हाईकोर्ट, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)।
Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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