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Wednesday, October 30, 2024, 6:53 am

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रक्षाबंधन पर देश के प्रमुख दो कवियों की कविताएं

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तीन कविताएं- पूर्व जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास

शहीद की राखी

रक्षाबंधन के पावन दिन
शहीद का शव घर पहुंचा।
देख-देख राखी का धागा,
बहन का मन बेहाल हुआ।
माता-पिता के जीवन में
पहाड़ दु:खों का टूट पड़ा,
पीड़ा का सैलाब हृदय का
आंखों से निकलकर बह चला।

आया था कुछ दिन पहले भाई
दिखा गया था वीर कलाई।
किया राखी पर आने का वादा,
तिरंगे में लिपटकर आ गया।
चलकर वो नही आया फिर भी
वादा तो निभाकर चला गया।

राखी लेकर उठी बहन फिर
सजा दी कलाई भैया की
लेकर तिरंगा हाथ में अपने
सिर ढंककर बहन बोली
कितना अच्छा उपहार दिया
शहीद होकर बहन को तुमने
कितना बड़ा सम्मान दिया।

रक्षक बनकर राखी पर तुमने
बहनों का गौरव बढ़ा दिया
कुर्बानी देखकर वीर आपकी
में वादा यह दिल से करती हूं
तिरंगे को तोहफा समझकर
में जीवन भर ओढकर रखूंगी
याद आपकी हृदय में रखकर
मैं राखी का त्योहार मनाऊंगी।
000

प्रेम रो धागो राखी रो 

जामण जाया भाई
में उडीक करूं हूं थारी,
राखड़ी पूनम माथै
कद लेवण आसी भाई,
देरणीया जेठानियां
पिवरिये पहुंची रे भाई,
थारी बाट जोवता
सासरिये में कळपुं भाई,
बाख़ल में सुण खटको
बाखल में दौड़ कर आई
भाई सा ने देखतां ही
आंसू सु आंख्यां भर आईं
बोली क्यूं मोड़ा आया
भागती दौड़ती घर माएं गई
सामान सागे लेती आई
बोली बहन अब जल्दी चालो
जीव कोनी लागे भाई,
घर आंगन में सावण हिंडा री
ओलयूं घणी आवै भाई,
राखडी माथै दो सुत रा धागा
पक्की गांठ प्रेम री बांधे,
भाई बहन रे हिवड़े रो हेत
राखी में समायो जावै,
धरती रां सगळा रिश्ता में
राखी ही प्रेम जगावै,
राखी त्योहार भाई बहन रो
हिवड़े में हरख जगावै।

000

राखी का पवित्र धागा

राखी के सूती धागों में
संस्कार प्रेम का होता है,
भाई बहन के रिश्ते का
कोमल प्रेम झलकता है,

पराई कहलाने वाली को
दिल का शुकुन मिलता है,
राखी पर पीहर आने पर
अपनों का प्यार मिलता है,

जब बहना पीहर आती है
बचपन भी साथ में लाती है,
कोने कोने में घूम घूमकर
अतीत का अनुभव करती है,

भैया के घर जब आती है
यादों का पिटारा खोलती है,
कोने कोने में घूम घूमकर
बचपन को ढूंढती फिरती है,

अपनी नटखट लड़ाई को
विगत वार बतलाती है,
बचपन की अठखेलियां से
हंस हंसकर बहलाती है,

राखी पर्व की पवित्रता
रिश्तों को निर्मल रखती है,
बहन के स्वाभिमान को
धागों से पल्लवित रखती है,

सनातन धर्म की मर्यादाएं
इस त्योहार में झलकती है,
राखी के धागों की निर्मलता
हर बहन की रक्षा करती है।

000

एडवोकेट अनिल भारद्वाज की एक कविता

शहीद का रक्षाबंधन

कुर्बान हो मां भारती हम तुझ पे शान से,
हर जन्म में कांधे लगे हिंदुस्तान के।

छाती पर गोली खाई है मां पीठ पर नहीं,
प्राणों को निछावर किया है सीना तान के।

मां मेरे शव के साथ मेरे गांव तू चलना,
आंसू तू पोंछना मेरे रोते मकान के।

दो जोड़ी वृद्ध पथराई सी पलकों से कहना,
घर लौटा है बेटा तुम्हारा स्वाभिमान से।

रोए जो छोटी बहन तो मां उसको ये कहना,
बांधे वह तिरंगे को राखी भाई मान के।

कह देना माता तू ये अपनी पुत्रवधू से,
तेरा सुहाग जिंदा है भारत के नाम से।

श्रद्धा सुमन पिरो रहा था गीत मैं’अनिल’
आंसू बरसने लग गए थे आसमान से।

 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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