शिव वर्मा. जोधपुर
कमला नेहरू नगर प्रथम विस्तार, आचार्य श्री नानेश मार्ग स्थित समता भवन में पर्युषण के आठवें दिवस संवत्सरी महापर्व पर पर्यायज्येष्ठा साध्वी चन्द्रकला ने फरमाया कि आज का दिवस हमारे बीच क्षमा दिवस के रूप में उपस्थित हुआ है। हमें क्षमा रूपी आभूषण अपनाकर अपनी आत्मा को मुक्त करना है। संवत्सरी महापर्व हमें भवसागर से तिराने आया है। यह पर्व हमारे लिए प्रेम, शान्ति का सन्देश लेकर आया है। दूसरों की गलतियां ढूंढने की बजाय हम खुद को टटोलें। हम आज इस पावन पर्व के अवसर पर क्षमा रूपी साबुन से हमारी मैली पड़ी आत्मा को धोने का प्रयास करें। कहा भी गया है ‘क्षमा वीरस्य भूषणम ‘ क्षमा याचना करना या क्षमा दान देना बहुत ही साहसिक कार्य है। वे लोग बिरले ही होते हैं जो सच्चे मन से क्षमा याचना भी करते हैं और क्षमा प्रदान भी करते हैं। हमें दुर्लभ मनुष्य जन्म मिला है, अगर इस बार हम चूक गए तो न जाने हमें हमारी गलतियों का प्रायशचित करने का जन्म जन्मांतर तक मौका न मिले। हमारी आत्मा न जाने इस बैर की गांठ का बोझ लिए कई जन्मों तक भटकती रहेगी । हमने अपनी बैर की गांठों को खोल दिया और क्षमा का आदान प्रदान सभी जीवों से कर लिया तो ही हमारा भव सुधर सकता है और हम मोक्ष मार्ग के गामी बनने में सफल हो पायेंगे। क्रोध, मान,माया, लोभ आदि कसायों के उदय से हमसे जाने, अनजाने गलतियां हो जाती है। हमसे अगर कोई गलती हो जाय तो हम उस गलती को सुधारें और इस बात का ध्यान रखें कि उस गलती की पुनरावृति न हो। हम किसी का भी बुरा न सोचें। हम सभी के सुखी और सफल जीवन की कामना करें। हम अपने अहंकार को छोडें और नमना सीखें। भगवान की वाणी हमें बार बार आईना दिखा रही है कि जिसके प्रति द्वेष है उनसे शुद्ध हृदय से क्षमा याचना करें। आज हम अपने भीतर के सारे मैल के बहाव को बहा दे और मैत्री रूपी स्वच्छ, निर्मल भावों को अपने अन्दर स्थान दे पायेंगे तो संवत्सरी पर्व का मनाना सार्थक होगा। पावटा बी रोड स्थित राजपूत सभा भवन में आज पर्वाधिराज पर्युषण के अष्टम् दिवस संवत्सरी महापर्व के अवसर पर श्री साधुमार्गी जैन परम्परा के आचार्य श्री रामेश की आज्ञानुवर्त्ती पर्यायज्येष्ठा प्रभातश्री ने फरमाया कि क्षमा करने वाले ही इतिहास बनाया करते हैं। क्षमा सर्वश्रेष्ठ मंत्र है, क्षमा साधना का यंत्र है। धन्य है प्रभु महावीर को जिनके गुणों की महिमा सर्वस्व है। पर्युषण यानी चारों ओर से हटकर स्व -भाव में लीन होने को पर्युषण कहते हैं और जो व्यक्ति पर्युषण की सच्चे अर्थों में उपासना कर अपने क्रोध और कसाय रूपी अग्नि को तिलांजलि देकर हृदय में जल की तरह शीतलता धारण कर क्षमा को धारण करता है वह अपना जीवन धन्य बना लेता है इसलिये कहा भी गया है ‘‘ज्वाला जल बन गयी। पर्युषण कसायों का क्षमण करता है। हमारी कथनी और करनी में कभी फर्क नहीं होना चाहिये। हमने अपने शरीर का ध्यान रखा परन्तु आत्मा का ध्यान कभी नहीं रख पाये। हमें दूसरे के विचारों को नहीं सुनकर खुद के विचारों का परिमार्जन करना है कि हमने कितनी गलितयां की है। हमें अपनी भूलों को सुधारना है एवं किसी के प्रति कोई भूल या गलती हुई है तो सच्चे दिल से क्षमा मांगना है। क्षमा करना भी उतना ही आवश्यक है जितना क्षमा मांगना। आज का दिन तन से नहीं मन से मिलने का दिन है। हम अपनी गलती को खोजें और उसका एहसास करें। पर्वाधिराज पर्युषण का यह अन्तिम दिवस संवत्सरी अंतर्ह्दय की अंतर्वेदना, कसायों से बोझिल आत्मा का स्वच्छ करने का दिन है। हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन मिला है, जब तक अन्तर की शुद्धि नहीं होगी। हमें वह दिव्य गति प्राप्त नहीं हो सकती। क्षमा में दिव्यता है, क्रोध में पशुता है। हम अपने अन्दर क्षमा, सहिष्णुता और गम्भीरता लायें ताकि आज की यह संवत्सरी हमारे अन्दर रहे हुए कसायों को खत्म करें। आज क्षमापना दिवस के अवसर पर श्री साधुमार्गी जैन संघ के अध्यक्ष बहादुरचन्द मणोत,पूर्व राष्ट्रीय मंत्री गुलाब चौपड़ा, महामंत्री सुरेश सांखला, उपाध्यक्ष सुबोध मिन्नी , समता युवा संघ के अध्यक्ष रमेश मालू आदि ने सभी से क्षमायाचना करते हुए अपने भाव रखे। उक्त अवसर पर आगामी 7 अक्टूबर, 2024 को आचार्य रामेश के सान्निध्य में भीलवाड़ा में दीक्षा लेने जा रही मुमुक्षु काजल गुलेच्छा ने कहा कि संसार में सबसे बड़ी शक्ति मात्र संयम में है। बैराग जीवन जितना मजबूत होता है, संयम उतना ही मजबूत होता है। संयम के संकल्प से भयानक से भयानक रोग भी चले जाते हैं। करुणा ने विराजित सभी साध्वीजनों से एवं श्रावक, श्राविकाओं से क्षमा याचना भी की। आचार्य श्री नानेश मार्ग स्थित समता भवन में विराजित पर्यायज्येष्ठा चन्द्रकला शासन दीपिका काव्ययशाश्री साध्वी जयामिश्री साध्वी शाश्वतश्री साध्वी श्रुतिप्रज्ञा आदि ठाणा, पावटा बी रोड स्थित राजपूत सभा भवन में पर्यायज्येष्ठा प्रभातश्री शासन दीपिका वरणश्री साध्वी खुशालश्री ,साध्वी शुभदाश्री आदि ठाणा सभी साध्वीजनों ने भी प्रवचन के दौरान श्रावक श्राविकाओं से सामुहिक क्षमायाचना की। सभा का संचालन गुलाब चौपड़ा द्वारा किया गया। साध्वी जयामिश्री ने साधुमार्गी जैन परम्परा के नवम आचार्य वर्तमान आचार्य रामलाल का जीवन परिचय बताया । साध्वी शाश्वतश्री ने प्रवचन के प्रारम्भ में अन्तगढ़ सूत्र का वाचन किया। त्याग प्रत्याख्यान में जितेन्द्र छाजेड, अशोक पारख , कविता सांखला, दिव्या मुथा, हिमांशी गुलेच्छा ने 9 उपवास, रमेश मालू, जसराज गुलेच्छा, दिलीप चौरडिया, शर्मिला चौरडिया, आशीष मिन्नी, रमेश मुथा, मानसी भण्डारी, प्रियल सांखला, पलक सांखला,अनिता गुलेच्छा,नरेश सांखला, रिषभ कोठारी आदि ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । लीलादेवी चौपड़ा के 8 दिन तक मौन व्रत के प्रत्याख्यान गतिमान है। सौरभ बुरड़ का 8 दिवसीय नीवि तप गतिमान है। 6, 7 और 8, 9, 36 उपवास आदि कई प्रत्याख्यान गुप्त रूप से भी चल रहे हैं। दोनों ही स्थलों पर आज संवत्सरी महापर्व समारोहपूर्वक रूप से मनाया गया। संचालन गुलाब चौपड़ा द्वारा किया गया।