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Wednesday, April 9, 2025, 11:07 am

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आध्यात्मिक मनीषी शिवप्रकाश अरोड़ा की पुस्तक स्व-प्रबंधन की शृंखला में आज पहली कड़ी पढिए-

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निवेदन

मनुष्य शरीर एक अलौकिक, अद्भुत एवं अमूल्यांकन-योग्य यंत्र है। इस यंत्र की रचना सर्वोच्च शक्तिशाली, बुद्धिमान एवं दिव्य पुरुष द्वारा की गई है। इसी कारण इस शरीर रूपी यंत्र में ऐसी शक्तियां हैं, जिसके उदय हो जाने पर मनुष्य शक्तिशाली व्यक्ति बनकर दिव्य पुरुष बन सकता है। प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है। जीवन में सुख-शांति प्राप्त कर आत्मानुभव कर सकता है। विभिन्न आध्यात्मिक एवं भौतिक ऐतिहासिक अविष्कारकर्ताओं एवं प्रयत्नों से ऐसा प्रमाणित हो रहा है कि अधिकांश व्यक्तियों द्वारा कभी भी इस यंत्र की अधिकतम शक्ति का उपयोग नहीं हो पाया। इस संबंध में समय-समय पर शोध किए गए। जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सामान्य रूप से आधुनिक मानव अपने यंत्र की 2 प्रतिशत से 8 प्रतिशत की ही क्षमता का उपयोग कर पाता है, जबकि जिस व्यक्ति ने भी सही रूप से कुछ भी अधिक उपयोग किया, उसको अनुभूति हुई एवं उसने विश्व को नई वस्तु प्रदान की। यही कारण है कि आज हम पाषाण युग को त्याग कर सैटेलाइट युग में पहुंच गए हैं। कंप्यूटर प्रयोग ने इंटरनेट के माध्यम से विश्व को एक कर दिया है। समय एवं श्रम की बचत के साथ-साथ प्रगति की चाल भी अद्वितीय हो गई है। इस अद्वितीय प्रगति का कारण एक ही है- वह है – प्रगति की चाह…। इस प्रगति की चाह की भावना पूर्ति दृढ़ संकल्प एवं नियमित निरंतर अनुशासित परिश्रम से साकार होती है। विश्व हर क्षेत्र में विकास कर रहा है। विकास अथवा प्रगति तभी संभव हो पाती है, जब व्यक्ति वर्तमान में उपलब्ध सामग्री को त्याग कर नई वस्तु प्राप्त करने की तमन्ना करता है। यानी पहले कुछ खोता है फिर कुछ पाता है।

बहुत कम व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें बिना प्रयत्न के बहुत सी अकस्मात सफलताएं एवं आंतरिक शांति मिल जाती है। उन्हें अपवाद स्वरूप ही माना जाएगा। अधिकाशं व्यक्तियों के  लिए सफलता एक सीढ़ी है जिस पर सतत प्रयास व अच्छे मार्गदर्शक के साथ, अपनी बुद्धिमता के प्रयोग करते हुए, सीखने की भावना नम्रता के साथ रखते हुए, ऊपर चढ़ना होता है। जो छलांगे लगाना चाहते हैं, वे अक्सर गिर जाते हैं। यह पुस्तक स्व-प्रबंधन उन्हीं व्यक्तियों के लिए है-

  • जो अपना विकास स्व-प्रबंधन द्वारा करना चाहते हैं।
  • जो अपनी आदतों, भावनाओं या पूर्व निश्चित धारणाओं को संतुष्ट होने पर बदलने के लिए तैयार हैं।
  • जो नई आदतों को अपनाने के लिए निरंतर वैज्ञानिक रूप से प्रयास करने हेतु दृढ़ संकल्पित हैं एवं
  • जब तक अपने उद्देश्य प्राप्त नहीं कर लेते तब तक संघर्ष करते रहने एवं मार्ग की असफलताओं से नहीं घबराने का संकल्प लेते हैं। इस पुस्तक में परम पूज्य गुरु महाराज जी एवं अन्य महापुरुषों के आवश्यक निर्देश व उनकी भावनाओं को यथा स्थान उल्लेखित किया गया है। जिनको पढ़ कर मनन कर अपने जीवन की धारणा करना जरूरी है। यह पुस्तक आपके जीवन के उद्देश्य को निश्चित करने तथा उसको परिपूर्ण करने के लिए व्यवहारिक सहयोग सलाह दे सकता है। इसलिए इसमें उल्लेखित हर शब्द एवं वाक्य को धीरे-धीरे पढ़ना, मनन करना एवं चिंतन कर अपने परिवर्तन करने का दृढ़ संकल्प करना आवश्यक है। इस बात को सदैव याद रखिए कि निर्णय की क्रियान्विति कल से नहीं, बल्कि आज से नहीं बल्कि अभी से होती है।
  • Tomorrow never comes. Kindly Don’t defer your decision. Start it just now and step to the success. अभी से संकल्प कीजिए एवं अपनी सफलता की ओर कदम बढ़ाइए। जो स्वयं की मदद करते हैं, उनको प्रकृति भी सहयोग करती है। वो इतना समर्थ हो जाता है कि कार्यालय व परिवार में अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं निकाल लेता है। अत: सर्वप्रथम आप अपने आपके मित्र बनिए। क्योंकि आप स्वयं ही अपने आप को बदल सकते हैं। दूसरों को बदलना आपके आधिपत्य में नहीं है। आप स्वयं का उत्थान कर अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आप इस पुस्तक को पढ़ रहे हैं। इसका अर्थ है कि आपकी इच्छा है कि आपका जीवन सुंदर, आध्यात्मिक एवं प्रेममय हो। जिससे आप समाज व देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की सेवा कर सकें। एवं अपने जीवन लक्ष्य प्राप्त कर सकें। परम पूज्य गुरुजी महाराज सदैव उनके साथ रहते हैं, जाे उनकी याद में उनको अपने साथ समझकर व उनके दिव्य प्रकाश में प्रयत्न करते हैं। उनसे प्रार्थना है कि उनके आशीर्वाद से आप अपने उद्देश्य की परिपूर्णता निश्चित समय में योजनाबद्ध रूप से करते हुए सदैव प्रगति पथ पर बढ़ते रहें। एक और निवेदन है आपसे कि यह लेखन का कार्य पूर्ण से परमपूज्य गुरु महाराज जी की कृपा और प्रेरणा से संभव हो पाया है। लेकिन जो कुछ त्रुटियां लेखन या भाव में कमी नजर आए तो इस देहधारी दास द्वारा हुई है, कृपया अल्पज्ञ व छोटा भाई समझकर क्षमा करें।
Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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