(इस दौर के शब्द शिल्पियों में प्रमोद कुमार शर्मा सशक्त रचनाधर्मी है। एक आदमी को जब चारों तरफ से घेरने की कोशिश होती है। उसका मनोबल गिराने की कोशिश होती है। उसकी हत्या करने की कोशिश होती है तब कोई ऐसी कविता पैदा होती है जो समाज के नकाबपोश और साहित्यिक आतंकवादियों के चेहरों से नकाब उतर पड़ता है। मैं प्रमोद कुमार शर्मा को बेहद करीब से जानता हूं और उनकी गरिमा को देखते हुए उन्हें विषय दिया था- ‘कविता जिंदा है’ इस पर उन्हें कविता लिखनी थी। मेरे आग्रह को उन्हें स्वीकारा इसके लिए मैं उनका आभारी हूं। यहां पांच शब्द चित्र पाठकों के लिए पेश है।-संपादक)
कविता ज़िदा है
1..
कविता ज़िंदा है
यह ख़बर मैंने ही खुद को दी
क्योंकि ज़िंदा था मैं अब तक
यह कविता ही का करिश्मा है
पता नहीं
कविता से कितने ही लोग ज़िंदा हैं।।
2.
कल कविता मिली
चहकती हुई
खुश हो कर बोली:
“देखो कितने सारे नये युवा कवि
लिख रहे हैं लगातार कविता
और पुराने भी
मरते हुए लिख रहे हैं कविताएं।।
3.
हर चीज का बाजार था
बस कविता का नहीं
हालांकि कई सारे कवि-अकवि
पेशे की तरह लिखते हुए कविताएं
बाजार को न्यौता देते रहते थे
तब मंच के ठीक सामने
बैठे श्रोताओं में से कोई एक उठता
कहते हुए
“यहां तो कविता नहीं,बस कवि हैं
और कविता उसके साथ ही
गंभीरता से पांडाल के बाहर चली आती।।
4.
कविता नहीं मर सकती
हालांकि उसे मारने का हर उपाय हो चुका है
मगर कविता है कि कमबख्त मरती ही नहीं
उधर थक जाता था रोज़
पोस्टमार्टम करने वाला
इस महामृत्यु की प्रतीक्षा में।।
5.
डाकी, चोर, गिरहकट और हत्यारे
रोज़ निकलते थे कविता का वध करने
मगर उन्हें हर दफ़े मायूस हो कर लौटना पड़ता अपना खंजर छुपाए हुए।
आखिरकार वे चीख पड़ते
कविता नहीं मर सकती
पर कवि तो मर सकते हैं
और वे तब से अब तक मार चुके हैं
बहुत सारे कवि
जो दिखते तो ज़िंदा हैं
मगर भीतर से मरे हुए।।
-प्रमोद कुमार शर्मा