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Friday, January 3, 2025, 11:19 am

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गजेंंद्रसिंह शेखावत मान हानि मामले में अशोक गहलोत को दो साल की हो सकती है सजा, विधानसभा सदस्यता निलंबित हो सकती है और पांच साल चुनाव पर लग सकती है रोक

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(फाइल फोटो)

समाचार विश्लेषण राइजिंग भास्कर डॉट कॉम. जयपुर

राजनीति में नेता एक-दूसरे पर अनर्गल आरोप लगाते रहे हैं। कभी किसी कि जुबान फिसल जाती है तो कोई हताशा और कुंठा में कुछ भी कह देता है। राहुल गांधी की वाणी पर जब संयम नहीं रहा तो अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई और पांच साल चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई। साथ ही संसद सदस्यता गई वो अलग। यही हाल अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के होने वाले हैंं। समाचार विश्लेषणों पर एक नजर डालें तो अशोक गहलोत पिछले कई दिनों से अपनी जुबान पर कंट्रोल नहीं रख रहे हैं। वे हताशा में आपा खो रहे हैं। कभी सचिन को गद्दार, देशद्रोही और कोरोना और नालायक तक कह चुके हैं। वे तो उनकी पार्टी का मामला है। दूसरा सचिन का बड़ा दिल है कि सबकुछ सहन किया। मगर ताजा मामला अशोक गहलोत और जलशक्ति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत से जुड़ा है। गहलोत ने संजीवनी मामले में शेखावत, उनके पिता, माता और पत्नी सहित परिवार के सदस्याें को अपराधी घोषित कर दिया था। जबकि मामला कोर्ट में है। नियमानुसार जब तक कोर्ट किसी को दोषित नहीं घोषित कर देता उस व्यक्ति विशेष के सम्मान, उसकी मर्यादा की आप धज्जियां नहीं उड़ा सकते। लेकिन अशोक गहलोत ने ऐसा ही किया। ऐसे में हमने कुछ कानून विदों से बात की और पूछा कि क्या अशोक गहलोत का गजेंद्रसिंह शेखावत और उसके परिवार के सदस्यों पर आरोप लगाना मान हानि की श्रेणी में आता है?

जोधपुर की युवा एडवोकेट शांति चौधरी से जब हमने सवाल किया कि क्या किसी व्यक्ति को अदालत ने दोषी सिद्ध नहीं किया हो  और सजा नहीं सुनाई हो तो क्या उस व्यक्ति के बारे में अनर्गल आरोप लगाना मान हानि की श्रेणी में आता है? इस पर शांति चौधरी ने कहा कि यह इस बात पर डिपेंड करता है कि आरोप जिस पर लगाए जा रह हैं, वह कितना बड़ा आदमी है और उसकी प्रतिष्ठा कितनी है। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राहुल गांधी ने टिप्पणियां की तो उन्हें सजा हुई। उसी तरह गजेंद्रसिंह शेखावत संसद सदस्य हैं और जलशक्ति मंत्री जैसी बड़ी पोस्ट पर हैं। उनकी अपनी सामाजिक और देश के प्रति गरिमा है। इसलिए प्रथम दृष्टया अशोक गहलोत का कृत्य मान हानि की श्रेणी में आता है और अगर अदालत चाहे तो अशोक गहलोत को कम से कम दो साल की सजा, राजस्थान विधानसभा सदस्यता से निलंबन और पांच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जा सकती है।

यही सवाल जब हमने एडवोकेट गोविंद से पूछा तो उनका भी यही कहना है कि आरोप लगाना हर आदमी का अधिकार है? मगर उनके आरोपों में कितना दम है और अदालत यह भी देखेगी कि जिस आदमी ने आरोप लगाए हैं और जिस पर आरोप लगाए गए हैं उसमें कितनी सच्चाई है। सबकुछ अदालत के मूड पर निर्भर है।

कुल मिलाकर समाचार का विश्लेषण करें तो मालूम होगा कि नेतागण बिना सोचे समझते अनर्गल आरोप लगाते रहते हैं। प्रसिद्ध पत्रकार आलोक मेहता हमेशा अपने रिपोर्टरों को निर्देश देते थे कि नेताओं के अनर्गल बयानों को खबरों में हवा न दें। खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में नेता आए दिन एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाते आए हैं। ऐसे में पत्रकारों को नेताओं की गंदगी को अखबार में स्थान नहीं देना चाहिए। लेकिन राजस्थान में सारी मीडिया जिस तरह अशोक गहलोत को अपना आका समझकर उनके हर बयानों को छाप रहे हैं, वे उनकी खुद की प्रतिष्ठा को गिराने वाले हैं। दैनिक भास्कर ने कुछ समय पहले अपने रिपोर्टरों को हिदायत दी थी कि नेताओं के अनर्गल बयानों को ना छापा जाए, मगर इस पर अखबार कभी कायम नहीं रहा। आलोक मेहता की पुस्तक पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा अगर आप पढ़ें तो पता चलेगा कि पत्रकारिता की अपनी लक्ष्मण रेखा है। मगर आज की मीडिया खुद अपने लिए आचार संहिता तय नहीं कर पाई है। बायस होकर खबरें चलाना, बिना तथ्याें की पड़ताल किए हड़बड़ी में खबरें छाप देना और सस्ती लोकप्रियता के लिए अखबार और चैनल कुछ भी चला देते हैं। यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। हमने जो समाचार विश्लेषण में मुद्दे उठाए हैं, उसके बाद इतना तय है कि जब तक गजेंद्रसिंह शेखावत कोर्ट से दोषी सिद्ध नहीं होते उन पर अशोक गहलोत द्वारा लगाए गए घटिया आरोप के लिए उन्हें अदालत से सजा मिल सकती है।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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