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Wednesday, January 8, 2025, 2:48 am

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बाबूजी : कलाकार को जिंदा रखते-रखते पत्नी, बेटा, मित्र व समाज के लोग हाथ से निकलने का शानदार मंचन

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मिथिलेश्वर लिखित और विभांशु वैभव द्वारा नाट्य रूपांतरित, राजेश सिंह के निर्देशन में टाउन हॉल में मंचित नाटक ने दर्शकों को दिल जीत लिया

रंग षष्ठि के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव में ‘बंद गली के आखिरी मकान’ और ‘माई री मैं का से कहूं’ ने भी मचाई थी धूम

शिव वर्मा. जोधपुर 

रंग षष्ठि के उपलक्ष्य में जोधपुर के टाउन हॉल में मंचित तीन नाटकों ने दर्शकों का दिल जीत लिया। लंबे समय बाद जोधपुर के सुधि दर्शकों को नाटकों ने बांधे रखा। बंद गली के आखिरी मकान और माई री मैं का से कहूं के बाद अंतिम प्रस्तुति बाबूजी ने दर्शकों की उम्मीद को जिंदा रखा।

जोधपुर के जयनारायण व्यास स्मृति भवन प्रेक्षागृह पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल का नाट्य उत्सव का समापन
रंगमंडल के अभिषेक मुद्गल द्वारा स्टेज मैनेजमेंट पर मास्टरक्लास का आयोजन ‘मिथिलेश्वर द्वारा लिखित और विभांशु वैभव द्वारा नाट्य रूपांतरित, राजेश सिंह द्वारा निर्देशित ‘बाबूजी’ का मंचन आला दर्जे का रहा। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल की 60वीं वर्षगांठ (रंग षष्ठिः) के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव का समापन जोधपुर के राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के परिसर स्थित जयनारायण व्यास स्मृति भवन प्रेक्षागृह में ‘बाबूजी’ नाटक के मंचन के साथ हुआ।

‘मिथिलेश्वर के लघु कहानी के ऊपर आधारित और विभांशु वैभव के द्वारा नाट्य रूपांतरित और राजेश सिंह द्वारा निर्देशित नाटक ‘बाबूजी’ की प्रस्तुति ‘नौटंकी’ लोक कला शैली से प्रेरित होकर प्रदर्शन किया गया था, जिसमें मशहूर लोक गीतों का बड़े सुंदरता के साथ उपयोग किया गया है। महोत्सव के समापन दिवस पर एनएसडी रिपर्टरी ने जोधपुर के नाट्य कलाकार और उसमें खास रुचि रखने वाले लोगों के लिए स्टेज मैनेजमेंट पर एक मास्टरक्लास भी प्रस्तुत किया, जिसे अभिषेक मुद्गल द्वारा संचालित किया गया, जो वर्तमान में एनएसडी रिपर्टरी के स्टेज मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं।

जिंदगी को अपनी स्वतंत्रता व शर्तों के साथ जीने का दस्तावेज है बाबूजी

महोत्सव के दौरान, एनएसडी रिपर्टरी ने जोधपुर के दर्शकों के लिए विभिन्न शैलियों और प्रस्तुति पद्धति के तीन नाटकों का प्रदर्शन किया। समापन दिवस के अलावा, अन्य दो नाटक थे – बंद गली के आखिरी मकान और माई री मैं का से कहूं, और बायन। नाटकों के मंचन के अलावा, रंगमंडल ने स्थानीय नाट्य प्रतिभाओं को उनके नाट्य यात्रा में सहायता के लिए मास्टरक्लास और कार्यशालाओं का आयोजन किया। अंतिम दिन का नाटक, ‘बाबूजी’ एक तरह से समाज के हर उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जो जिंदगी को अपनी स्वतंत्रता व शर्तों के साथ जीना चाहता है। नाटक का नायक बाबूजी एक ऐसा नायक है जो अपनी जिंदगी में सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपने अंदर के कलाकार को भी जीवित रखना चाहता है। नौटंकी जैसी लोकनाट्य में उसका मन रमता है, पर उसकी इसी नौटंकी के प्रति प्रेम के कारण उसका अपना पारिवारिक जीवन भी बिखर जाता है। पत्नी, बेटा, उसके अपने साथी व समाज के लोग उसका साथ नहीं देते। उसे अपने ही घर से बाहर कर दिया जाता है।

कलाकार की जिंदगी का द्वंद्व है बाबूजी

इन सबके बावजूद उसका कला के प्रति समर्पण व प्रेम कम नहीं होता। तबले की थाप और हारमोनियम की गूंज आखिरी सांस तक उसके साथ रहती है। नाटक का हर एक पात्र हमारे समाज के अलग-अलग व्यक्तियों व तबके की सोच का प्रतिनिधित्व करता है। समाज में आज भी एक कलाकार को अपनी जिंदगी में बहुत ही संघर्ष व द्वंद से गुजरना पड़ता है।

ये है कलाकार

बाबूजी नाटक के कलाकार, जिन्होंने अपनी अदाकारी से नाटक को अनोखा और सफल बनाया है। राजेश सिंह ने बाबूजी की भूमिका निभाई है, शिल्पा भारती ने कौशल्या का अभिनय किया, मजीबुर रहमान ने बड़काऊ का किरदार निभाया है, और सत्येंद्र मलिक ने छोटकू का किरदार निभाया है। नवीन सिंह ठाकुर ने जगेसर का अभिनय किया है। पोटशंगबम रीता देवी (सुरसती), शिव प्रसाद गोंड (काका और धनपत), बिक्रम लेपचा (लच्छू), उत्सव (कालिदीन), ताबिश खान (दरोगा), मधुरीमा तराफदर (बसंती), प्रतीक बदेरा (फरेबी) और अन्य ग्रामीणों की भूमिकाएं निभाने वाले मोतीलाल खरे, सतीश कुमार, नारायण रमेश पवार, समीर जीवन रामटेके, और अनंत शर्मा।

ग्वालियर, देहरादून, शिमला, पानीपत में भी मचाई धूम

दिल्ली में अगस्त 2024 में आयोजित अपनी 60वीं वर्षगांठ के उद्घाटन नाट्य उत्सव के बाद से, एनएसडी रिपर्टरी ने देश के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों में प्रदर्शन किया है, जिनमें ग्वालियर, देहरादून, शिमला, पानीपत, ईटानगर और जयपुर शामिल हैं। विभिन्न शहरों के दौरे के दौरान, एनएसडी रिपर्टरी का ध्यान नाट्य कलाओं में स्थानीय युवाओं को समृद्ध करने पर है, जबकि पौधारोपण अभियानों के माध्यम से सामाजिक प्रतिबद्धता को जारी रखा जा रहा है। इन यात्राओं के दौरान रंगमंडल स्थानीय विशिष्ट रंगकर्मियों को नाटक और कला में किए गए उनके योगदान के लिए सम्मानित भी करता है।

एनएसडी रंगमंडल के 60 साल का उत्सव (रंग षष्ठि) के बारे में

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के 60 साल पूरे होने पर भारतीय रंगमंच के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। सन 1964 में स्थापित, रंगमंडल ने नाट्य कला में प्रतिभा को बढ़ावा देने और प्रदर्शित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और अनेक कलाकारों, निर्देशकों और नाटककारों को अपनी कला को निखारने के लिए एक मंच प्रदान किया है। दशकों से, इसने क्लासिकल भारतीय नाटकों से लेकर समकालीन नाटकों तक का एक विशाल रेंज का मंचन किया है, जो भारत की समृद्ध विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। 60वां उत्सव इसके विरासत को सम्मानित करने, इसके प्रदर्शन कला में योगदान को मनाने और रंगमंच के भविष्य की दिशा की ओर देखने का एक अवसर है। 3 दिवसीय समाहरो के समापन के अवसर पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा रंगमण्ड के चीफ राजेश सिंह  द्वारा श्रीमती सरिता फिड़ौदा सचिव राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, रमेश कंदोई, राहुल बोडा एवं हीरालाल का सम्मान किया गया।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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