-हिन्दी के विकास में राजस्थान का योगदान’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
राखी पुरोहित. जोधपुर
राजस्थान का साहित्य सदैव राष्ट्रीय परिदृश्य के समक्ष समृद्ध रहा है। हिंदी के प्रादुर्भाव के साथ ही राजस्थान का भी इसमें सहयोग शुरू हो गया था। यह कहना है साहित्यकार डॉ. फतेह सिंह भाटी का। भाटी रविवार को जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के बृहस्पति सभागार में हिंदी विभाग की ओर से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने साहित्य सृजन पर बात करते हुए कहा कि बिना अनुभव व यथार्थ को जिए मर्म तक नहीं पहुंचा जा सकता है केवल सतही लेखन किया जा सकता है। हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. महीपाल सिंह राठौड़ ने स्वागत उद्बोधन के माध्यम से अतिथियों का स्वागत किया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. कैलाश कौशल ने भक्त संत कवयित्रियों व कवियों के साहित्य पर प्रकाश डाला। सत्र की विशिष्ट अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर की डॉ. नीतू परिहार ने कहा कि राजस्थान की भाषा में वीरता के साथ मधुरिमा पूर्ण लावण्यता रही है। परिहार ने राजस्थान के संतो एवं गुरुपरंपरा पर भी प्रकाश डाला। डॉ. प्रेम सिंह ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। संगोष्ठी के सह सचिव डॉ. महेंद्र सिंह ने समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन और संयोजन प्रवीण कुमार मकवाना ने किया।
इससे पहले रविवार सुबह हुए तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. राजेंद्र सिंघवी ने कहा कि राजस्थान का लिखा हुआ साहित्य ही हिंदी का साहित्य है। डॉ. जगदीश गिरी ने कहा कि दुरसा आढ़ा द्वारा रचित ‘विरुद छिहतरी’ राष्ट्रीयता का बोध कराता है। तकनीकी सत्र में मुख्य वक्ता डॉ. कालूराम परिहार ने रासो साहित्य पर प्रकाश डालते हुए आलोचना के इतिहास को अपने विचारों के माध्यम से व्यक्त किया। उन्होंने आधुनिक काल के हिंदी साहित्य में राजस्थान के योगदान को लेकर विमर्श करने पर बल दिया। तकनीकी सत्र में विशिष्ट अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के डॉ. आशीष सिसोदिया ने राजनैतिक विचारधारा से ऊपर उठकर राजस्थान के हिंदी साहित्य विमर्श पर जोर दिया। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के डॉ. कुलदीप सिंह मीना ने राजस्थान के साहित्यकारों की रचनाओं को हिंदी के पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। तकनीकी सत्र में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. भरत कुमार और संयोजन हनुमान परिहार ने किया।
दो दिन में हुए चार सत्र
गौरतलब है कि पीएम उषा योजना के तहत ‘हिंदी के विकास में राजस्थान का योगदान’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी में उद्घाटन व समापन सत्र के अतिरिक्त दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। संगोष्ठी में राजस्थानी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. कल्याण सिंह शेखावत, प्रो. छोटा राम कुम्हार, डॉ. सद्दीक मोहम्मद, प्रो. लक्ष्मी अय्यर, प्रो. चंद्रा सदायत, प्रो. सरोज कौशल, प्रो. राम सिंह आढ़ा, डॉ. भगवान सिंह शेखावत, डॉ. दिनेश राठी, डॉ. केआर मेघवाल, डॉ. देवकरण सहित हिन्दी विभाग के शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
150 शिक्षाविदों व शोधार्थियों ने करवाया पंजीकरण
संगोष्ठी में देश-प्रदेश से आए 150 शिक्षाविदों व शोधार्थियों ने पंजीकरण करवाया और अपने शोध पत्रों का वाचन किया। इसमें मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, वनस्थली विद्यापीठ, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय किशनगढ़, कोटा विश्वविद्यालय, महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर सहित अन्य राजकीय व निजी महाविद्यालयों से आए विद्वानों व शोधार्थियों ने सहभागिता की।