मिल कभी
तेरे अल्फाज़ किसी रोज़ तुझे ही सुनाऊं,
सुकून से तेरे शाने पे सिर रख गुनगुनाऊं
मिल कभी।
पी कर तुम्हारी नशीली आंखों से
यार तुझ पर प्यार भरी नज़्में लुटाऊं
मिल कभी।
एक पल में सदियों को जीना किसे कहते
बैठ कर तेरे पहलू में मैं तुझको बताऊं
मिल कभी।
मुहब्बत सुर सजाती है तू जब जब लब खोले
तेरे लबों पर मैं अपनी ग़ज़ल सजाऊं
मिल कभी।
हाथों का तेरे हाथों से लिपट जाने को जी करे
धड़कनों की धड़कती महफिल फिर सजाऊं
मिल कभी।
लबालब भरे है नैन, न आराम है इन्हें न चैन
कितनी बेचैनियां है इधर तुझे दिखाऊं
मिल कभी।
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खूबसूरत है तेरा आना
है उतना ही खूबसूरत मेरी ज़िंदगी में तेरा आना
शिव की जटाओं से ज्यों गंगा का निकल आना
प्यासे हलक को ज्यों जीभर अमृत मिल जाना
है उतना ही खूबसूरत मेरी ज़िंदगी में तेरा आना
गौधूली बेला में ज्यों बछड़े का रंभाना
मधुबन में मुग्ध कन्हैया का ज्यों बांसूरी बजाना
है उतना ही खूबसूरत मेरी ज़िंदगी में तेरा आना
छटपटाती मछली का ज्यों सागर से मिल जाना
भटके परिंदे का सलामत घौंसले में आ जाना
है उतना ही खूबसूरत मेरी ज़िंदगी में तेरा आना
ग़म के गहरे गहवर में आस किरण दिख जाना
पाकर तुझे मेहसूस ये हुआ मुझे कि
कितना सुखद है मन के मीत को पा जाना
ये सुख ही सच्चा सुख है, बाकी सब दिखावे है
जिस सुख की उम्मीद में मैं उम्रभर तरसती रही
उस सुख की उम्र बढ़ा जाता हर बार तेरा आना
रेखा भाटिया
लेखिका और उद्घोषिका आकाशवाणी, जोधपुर
गांव – गोयलों की ढाणी,
पोस्ट – कालीबेरी
ज़िला – जोधपुर
राजस्थान
