यह रिपोर्ट इस शहर की सभी सम्मानित महिलाओं और इस शहर के बुद्धिजीवियों को समर्पित है…
डीके पुरोहित की विशेष रिपोर्ट. जोधपुर
मैं आज तक धींगा गवर मेले में नहीं गया। मगर इसका मतलब यह कतई नहीं कि मैं जोधपुर के महान धींगा गवर मेले या कहें उत्सव के रंग से अनभिज्ञ हूं। धींगा गवर का जो ज्वार यहां की गलियों में जिसे हम भीतरी शहर के रूप में कहते हैं देखने को मिलता है। अखबारों की हर साल हैडिंग होती है- आज की रात लुगाइयों को राज…। मैं जोधपुर में करीब-करीब 22 साल से हूं और जब कुंआरे के रूप में यहां आया था तो मेरे साथी कहते थे कि मेळे में चला जा, बेंत पड़ेगी तो ब्याह हो जाएगा। यह बात अलग है कि मैं कभी मेले में नहीं गया। मेरे कभी बेंत भी नहीं पड़ी। परंतु मुझे जरा भी शंका नहीं है इस परंपरा की और मान्यता की कि बेंत पड़ने से ब्याह नहीं होता। यह हर युवा मन की उत्कंठा रहती है कि वह इस मेले में आए और पूरी शिद्दत के साथ ऍन्जॉय करे। जोधपुर का यही तो अद्भुत मेला है जिसकी ख्याती सात समंदर पार है। देश भर में इस मेले की विशिष्ट पहचान है। जब भी बात जोधपुर के लोक उत्सवों और मेलों की आती है जोधपुर अपने धींगा गवर मेले पर गर्व करता है। पर आज कुछ ऐसा हुआ कि यह विशेष आलेख लिखना पड़ रहा है। पिछले कुछ दिनों से शहर के मीडियो ग्रुपों और अखबारों में एक बहस सी चल पड़ी थी। युवाओं के साथ-साथ बुजुर्गों ने भी इस बहस में दिलचस्पी दिखाई। हालांकि मैं इस बहस का हिस्सा तब नहीं पड़ा था और दृष्टा था। पर अब वक्त आ गया है कि हम चिंतन करें। हम कत्तई एकपक्षीय रिपोर्ट प्रकाशित करने के पक्ष में नहीं हैं। क्योंकि हमें ना तो मेले में स्टेज लगाने के लिए पुलिस की स्वीकृति चाहिए और स्वीकृति नहीं मिलने पर हम पुलिस के खिलाफ लिखने को भी तैयार नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि अच्छा खासा मेला पुलिस राज में बदल जाए। हर पहलू के दो पक्ष होते हैं। राइजिंग भास्कर कभी भी पुलिस की आलोचना अपनी ताकत दिखाने के लिए नहीं करता और न ही पुलिस को नीचा दिखाना चाहता। आज पुलिस दिवस पर जोधपुर के दर्जनों पुलिसकर्मी सम्मानित हुए, हम उन्हें सबसे पहले बधाई देते हैं। हम बधाई देते हैं पुलिस कमिश्नर राजेंद्रसिंह को जो इस बार इस मेले को लेकर विशेष सतर्क रहे। उन्होंने मेले में महिला कांस्टेबल अच्छी खासी संख्या में लगाए और यह उनकी सजगता थी। पर कुछ बातें हैं जो कहनी पड़ेगी। बिलकुल निष्पक्ष रूप से। चाहे कोई नाराज हो या रूठे। हमारा राइजिंग भास्कर बिलकुल अलग लिखता है। जब सारी मीडिया रिपोर्ट सामने आती है उसके बाद हमारा विश्लेषण शुरू होता है। हम पुलिस से दिलजले नहीं है कि हमें मेले में स्टेज की स्वीकृति नहीं मिले तो पुलिस की धज्जियां उड़ाने लगे जाएं। अंदरखाने कई प्लेटफार्म अपनी ताकत दिखाते भी हैं। क्योंकि जहां धुआं होता है वहां आग जरूर होती है। और जहां आग होती है वहां धुआं जरूर होता है। हमें पता चला कि इस बार कुछ मीडिया घरानों को स्टेज लगाने की स्वीकृति नहीं मिली तो उन्होंने ठान लिया था कि पुलिस की चिंदियां बिखेरनी है। पुलिस भी डरपोक ही होती है। पुलिस बड़े मीडिया घरानों से लंबी लड़ाई नहीं लड़ सकती। हो सकता है कल वो हथियार डाल दे। पर हमारा यह विषय नहीं है। हम साफ-साफ लिखने के आदि हैं और कई बार हमारी टकराहट भी हो जाती है। बहरहाल…मुद्दा यह है कि धींगा गवर मेला किसका है? क्या यह मेला एक वर्ग विशेष का है? क्या यह मेला एक क्षेत्र विशेष का है? क्या यह मेला अपनी सार्थकता खो रहा है? विश्लेषण करते हैं पिछले कुछ सालों का।
मैं अपने पिछले 22 साल के अनुभव से बताता हूं कि यहां कई अखबार अपनी ओर से स्टेज लगाते आ रहे हैं और अपनी आय के साथ-साथ अपनी सामाजिक भागीदारी भी निभाते आ रहे हैं। पहली बार मीडिया घरानों को पुलिस ने स्टेज लगाने की स्वीकृति नहीं दी। पुलिस कभी भी मीडिया से दुश्मनी नहीं लेती। लेकिन इस बार मीडिया धड़ों में बंट गया। कुछ मीडिया जिसमें छोटे छोटे अखबार और चैनल अलग मोड़ पर चले गए और बड़े मीडिया घराने अपनी ताकत पर भरोसा करते रहे। हुआ यह कि पुलिस ने स्टेज लगाने की स्वीकृति किसी को नहीं दी। और वही हुआ जिसका आभास था। मीडिया में पुलिस की किरकिरी होनी तय थी। राइजिंग भास्कर के पास भी कुछ वीडियो आए हैं। लेकिन इन वीडियो में जो लेडीज कांस्टेबल दिखाई दे रहे हैं, वे कोई खास एग्रेसिव व्यवहार ना कर सामान्य व्यवहार कर रहे हैं और हो सकता है वो किसी को गलत रोक-टोक भी रहे हो। जैसा कि हम बता रहे हैं इस बार धींगा गवर मेले को लेकर सबकी नजरें थीं। युवा-बड़े-बुजुर्ग और एक खास प्रकार के वर्ग की विशेष दृष्टि थी। कुछ लोगों का मानना था कि परंपरा के साथ चोट हो रही है। जो महिलाएं पूजा नहीं करती, जो तीजणियां नहीं होती वे भी छड़ी लेकर युवकों की पिटाई शुरू कर देती है। कहना सही है- तीजणियों का हक पहला है। लेकिन बदलाव की गुंजाइश हमेशा होती है। हमारे समाज में कई बहन-बेटियां धींगा गवर का व्रत भलेहीं ना रखती हो लेकिन धींगा गवर मेले को लेकर उनमें उत्साह रहता है। ऐसे में अगर उत्साह वश वे हाथ में छड़ी लेले और स्वांग रच ले तो क्या हम बुजुर्ग महिलाओं और घर की बड़ी महिलाओं को बड़ा दिल रख कर उन्हें इजाजत नहीं देनी चाहिए। परंपरा और नियम अपनी जगह है। समाज में धीरे-धीरे हम अपनी बेटियों और बहनों को नियम-कायदे समझाएंगे तो उनकी समझ में आ जाएगा और वे भी पूजन-व्रत रखेंगी। पर उनके उत्साह को देखते हुए क्या उन्हें धींगा गवर मेले में भाग लेने से रोक कर क्या हम उनके साथ अन्याय नहीं कर रहे। जहां तक मेरा मानना है कि सभ्य समाज में बदलाव भी जरूरी है। परंपराए हमीं बनाते हैं। नियम भी हमीं बनाते हैं। ऐसे में बहन-बेटियों को थोड़ा लाड़ प्यार में रियायत देकर उनका इस महान पर्व के प्रति इनवोलमेंट होने दें तो उसमें जहां तक मैं समझता हूं हर्ज नहीं है। फिर चाहे वे बिना पूजन-व्रत किए ही छड़ी उठा लें और स्वांग रच लें।
अब सवाल है कि क्या समय के साथ यह मेला हुडदंग का शिकार तो नहीं हो रहा। पिछले कुछ वर्षों के मेले पर हम नजर डालते हैं। अभी तक छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शहर में बड़ा हादसा फिलहाल नहीं हुआ है। यह ऐसा मेला है जहां महिलाएं रात भर सड़कों पर रहती हैं और गवर माता के बडी मात्रा में ज्वैलरी पहने हुए होती है। फिर भी ना तो किसी व्यक्ति की नीयत डोली और ना ही कोई बड़ा हादसा हुआ। क्योंकि इसका मूलमंत्र ही अपणायत है। जब वैसे तो हम बात-बात पर अपणायत पर जोर देते हैं। हम अपनी अपणायत पर अभिमान करते हैं फिर ऐसा एक-दो साल में क्या हो गया कि हम इस अपणायत को भूल गए और मेले में पुलिस को आई कार्ड और आधार कार्ड आदि पूछने पर जोर देने लगे। भला मेले के लोक रंग में ऐसा संभव है? वो भी तब जब अपना शहर अपणायत का शहर हो? अपणायत के शहर में तो हम दुश्मन को भी समझाकर अपना बना लेते हैं। यहां हिंदू-मुस्लिम भी प्रेम से रहते आए हैं। भीतरी शहर में अपणायत की चर्चा कुछ ज्यादा ही होती है। अगर हमारी अपणायत में कुछ व्यवधान आया है तो उसका कारण आम आदमी ना होकर पॉलिटिकल पार्टियां ही है जो इस सागर के पानी को भी नदी से भी ज्यादा बदरंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। पॉलिटिकल पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए कोई गेम खेल सकती है। फिलहाल इस पर अधिक नहीं लिखना चाहते। क्योंकि यह हम पाठकों पर ही छोड़ देते हैं।
हमारा मुद्दा यह है कि धींगा गवर 2025 में आज के वाकये के बाद कुछ बातों पर चिंतन करना जरूरी है। सबसे पहला कि हम धींगा गवर का स्वरूप क्या रखना चाहते हैं? क्या हम चाहते हैं कि यह मेला भीतरी शहर का मेला बनकर रह जाए और बाहरी शहर और बाहरी लोगों का प्रवेश एक दम वर्जित कर दिया जाए? अगर ऐसा होता है तो उस परंपरा का क्या होगा जो देश भर में प्रसिद्ध है? देश भर से लोग इस मेले को देखने आते हैं। सरकार चाहे तो इस धींगा गवर मेले को पर्यटन की दृष्टि से भुना सकती है। मगर हम इसके स्वरूप को संकरा करते रहे तो फिर यह मेला भीतरी शहर का मेला बनकर रह जाएगा। यही नहीं कुछ कम्युनिटी अगर कहने लगे कि यह हमारा मेला है तो फिर क्षेत्रवाद से भी सिमटते हुए जातिवाद तक मेला सिमट जाएगा। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। धींगा गवर मेला महिलाओं का लोकपर्व है। इसे शहर के लोग एक ऐसे मेले के रूप में जीते आए हैं जो सैकड़ों साल से हमारे परिवेश का हिस्सा बन गया है। मीडिया में जिस प्रकार मेले की कवरेज एक महीना पहले शुरू हो जाती है उसको देखते हुए यदि इस बार के घटनाक्रम को ध्यान में रखा जाए तो इस बार यह मेला काफी अलग रहा। सुबह कुछ अखबार इस मेले का कवरेज किस रूप में करते हैं यह साफ हो जाएगा। हमारे सामने चुनौती थी सचाई सामने लाने की। हम कभी भी एकतरफा रिपोर्ट नहीं लिखते। चाहे हमें कितना ही बड़ा नुकसान क्यों ना उठाना पड़े। इस मेले में हमने एक सबक सीखा है। वो यह कि मेले को लेकर कई तरह की बातें सामने आई। कुछ लोगों ने कोर्ट के नियम बताए। कुछ लोग बहस में बिना सोचे समझे कूछ पड़े। पुलिस की भूमिका इस बार हटकर रही। पुलिस कमिश्नर राजेंद्रसिंह पहली बार बिना किसी दबाव में रहे और उन्होंने अपने को विवाद से बचाए रखा। लेडीज कांस्टेबल लगाए। पुलिस भी लगी रही। हो सकता है कुछ सख्ती हुई हो। हो सकता है कुछ जगह कार्यकर्ताओं के नाम पर लोगों ने सख्ती कर दी हो। हो सकता है कुछ जगह लोग स्वयंभू इस मेले के ठेकेदार बन गए हों। जितने मुंह उतनी बातें। लेकिन रिपोर्ट कभी एकतरफा नहीं होनी चाहिए। आज हमें तय करना होगा कि मेले को लेकर कुछ संकल्प लें। क्योंकि धींगा गवर मेला हर साल आएगा। इस लोक पर्व में, इस लोक उत्सव में महिलाओं के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। इस मेले का मुख्य किरदार युवा है उनकी भावनाओं को भी चोट ना लगे। ऐसे नियम कत्तई ना बनाएं जो अव्यवहारिक हों और जिनसे मेले की खुशियां काफूर हो जाएं। इस रिपोर्ट का एक-एक शब्द हम सोच समझ कर लिख रहे हैं। हमें यह भी पता है कि इस रिपोर्ट से कौन कितना नाराज हो सकता हैं। लेकिन मीडिया में सच सामने लाना ही हमारा अंतिम लक्ष्य है। इसलिए धींगा गवर माता से विनती है कि इस शहर की अपणायत को सद्बुद्धि दे और इस धींगा गवर माता से अर्ज है कि इस मेले को अगले साल जब तीजणियां मनाएं तो उनका उल्लास चरम पर हो। किसी तरह का बंधन ना हो। मैं पुलिस कमिश्नर राजेंद्रसिंह को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने इस बार अपनी भूमिका हटकर रखी। हो सकता है इसके लिए उनकी आलोचना भी हो। पुलिस की भी खिंचाई हो रही हो। पर यह पार्ट ऑफ जॉब है। पुलिस को हर तरह से तैयार रहना चाहिए। हम इस शहर के लोगों से आग्रह करते हैं कि अगले धींगा गवर मेले पर फिर से तीजणियों को खुलकर मेले में भाग लेने दें। इस मेले को सीमा में बांधकर ना रखें और जहां तक मेले में असामाजिक तत्वों की बात है इस शहर की तासीर ही अपणायत की है फिर डर किस बात का…। खम्मा घणी।
