अंतिम यात्रा में उमड़े सैकड़ों ग्रामीण
सोहनलाल वैष्णव. बोरुन्दा (जोधपुर)
पद्मश्री चंडीदान देथा पुत्र स्व. तेजदान देथा का शनिवार को 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। जिनका कस्बे के सार्वजनिक श्मशान घाट पर रविवार को अंतिम संस्कार किया गया। देथा सात भाई व दो बहनों में तीसरे स्थान पर थे। सन 1966 के करीब देथा के प्रयास से बोरुंदा में सबसे पहले अंगूर, गन्ना, चावल, गेहूं व सरसों की खेती की शुरुआत करने पर बोरुंदा में हरित क्रांति के जनक के रुप में माने जाते थे। उनके सरपंच कार्यकाल में बेहतर न्याय प्रणाली के कारण पुलिस गांव में नहीं आती थी। गांव के सभी छोटे बड़े विवादों का समाधान गांव की चौपाल में ही हो जाता था। देथा के रुतबे को लेकर गांव में कभी डकैत व ठग नहीं आते थे। और न ही कभी डकैती ओर चोरी होती थी। इनके कार्यकाल के में छुआछूत को कम करते हुए ऐसी वर्ग के लोगों व घुमक्कड़ जातियों को स्थाई रूप से बसाने का कार्य किया था। कस्बे सहित आसपास के क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने अंतिम यात्रा में भाग लेते हुए श्रद्धांजलि दी। इस दौरान सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गोविंदान देथा, पूर्व जेलर भंवरदान, सबल फ़िल्म निदेशक महेंद्र देथा, प्रकाश देथा, नायब तहसीलदार नितिन पुरोहित, पीपाड़ उप प्रधान प्रतिनिधि अशोक कुमार गहलोत, पूर्व सरपंच नरेंद्रदान देथा, एपीपी प्रियवृत देथा, नरपतसिंह, रामसिंह मेहरु, भरतसिंह, पटवारी नैनाराम खोजा, प्रमुख उद्यमी करणसिंह मेड़तिया, मोतीलाल चौहान, भगवतसिंह राठौड़, कैलाश कबीर देथा, हुकमाराम सोलंकी, भरत भाटी, लक्ष्मण भाटी, बाबूलाल भाकर, जब्बरसिंह, बुद्धाराम भाटी, सरपंच प्रतिनिधि पुखराज दाधीच, हरिसिंह भाटी, गोपाराम भंवरिया, प्रकाश भंवरिया, महेंद्र भाटी, राजेंद्र टाक, गिरधारीदास वैष्णव, रामकरण भंवरिया, चौथाराम जीनगर, रिखबचंद कोठारी, चम्पालाल शर्मा, भंवराराम, व जगदीश भंवरिया तथा मानवेन्द्र सिंह सहित सैंकड़ों लोग उपस्थित रहे।