पंकज जांगिड़. जोधपुर
मेड़ता शहर के जाने माने वयोवृद्ध वरिष्ठ साहित्यकार मारवाड़ रतन, मीरां शोध संस्थान के संस्थापक एवं अध्यक्ष दीपचन्द सुथार का आकस्मिक निधन 18 अगस्त को देर रात्रि को हो गया । उनके निधन के समाचार सुनते ही शहर में शोक की लहर छा गई । सन 1966 में फ़लौदी से स्थानांतरण होकर मेड़ता राजकीय माध्यमिक विद्यालय नम्बर 1 में बतौर शिक्षक के पद पर सर्विस जॉइन किया।
यहां पर आने के पश्चात् उन्होंने मेड़ता में हिन्दी साहित्य की जोत जलाई। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जतनराज मेहता, मूलराज व्यास ” एक प्राणी ” , मण्डल दत्त व्यास, सांवतराम कासनियां आदि विद्वानों के साथ मिलकर छोटी मोटी साहित्य संगोष्ठियां करते हुए साहित्य की अलख जगाई । तत्पश्चात 1988 में उन्होंने डॉ. जतनराज मेहता की अध्यक्षता में कार्यकारिणी का गठन करते हुए मीरां शोध संस्थान की विधिवत् स्थापना की गई। वर्ष 2006 में धरोहर संरक्षण, प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकारसिंह लखावत मेड़ता पधारे और नम्बर 1 स्कूल को पैनोरमा बनाने हेतु दीपचंदजी के साथ बैठ कर विचार विमर्श किया और इनके निर्देशन में अकथ प्रयास करते हुए मीरांबाई स्मारक पैनोरमा बनाया और 4 अक्टूबर 2007 को विधिवत् शुभारम्भ करते हुए दीपचंद सुथार को प्रभारी नियुक्त किया गया। वर्ष 2014 में मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट, जोधपुर द्वारा इनकी साहित्य सेवाओं को देखते हुए ” मारवाड़ रतन अवॉर्ड ” से विभूषित किया गया। मां सरस्वती की असीम अनुकम्पा से लगभग वर्ष 1960 से अपनी साहित्यिक यात्रा आरम्भ की और भारत की अनेक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्य पत्र पत्रिकाओं इनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई। इन्होंने अपने जीवन काल में सैकड़ों छोटी बड़ी साहित्य संगोष्ठियां करते हुए मेड़ता में अनवरत साहित्य जोत जलाई। साहित्य के प्रति एवं मीरां स्मारक में इनकी निरन्तर सेवाओं को देखते हुए वर्ष 2012 में तत्कालीन उपखण्ड अधिकारी सुरेन्द्रकुमार चौधरी द्वारा स्मारक में पीछे की तरफ खाली पड़ी जमीन उपलब्ध करवाई और इन्होने अपने निजी व्यय से उस जगह पर तीन बड़े हॉल , दो कमरे बनवाए और 15 जनवरी 2012 को मीरां शोध संस्थान का विधिवत् शुभारम्भ किया गया। वर्ष 2015 में इनकी धर्मपत्नी का जोधपुर में इलाज के दौरान आकस्मिक निधन होने के पश्चात् वापस मेड़ता लौट कर नहीं आए । इन्होने मां मीरां के प्रति अपना पूरा जीवन समर्पित करते हुए साहित्य साधना में लीन रहे और लगभग पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन किया । इन्होंने अपने गृहस्थ धर्म पालन करते हुए एक सन्त के रूप में सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत किया और लगभग 87 वर्ष आयु में उन्होंने अन्तिम सांस ली।
