त्योहार के उल्लास में खोया रहा जोधपुर, जहां पूर्व जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास जैसे कवि कजली तीज को शब्द देते हैं, जहां महिलाएं और युवतियां राग-रंग-उल्लास-परंपरा और संस्कृति को प्राचीन काल से आज भी जीवंत रखे हुए हैं, मारवाड़ की धरा पर लोक पर्व कभी मिट नहीं सकते जब तक हमारे संस्कार जीवित है…जोधुपर परंपराओं का पोषक शहर है…यहां गली-मोहल्लों और घरों में आज भी अपणायत बरसती है, यही कारण है कि पर्वों को यहां जिया जाता है…
शिव वर्मा. जोधपुर
कजली तीज। लोक संस्कृति का अनूठा पर्व। अखंड सुहाग की कामना से सुहागिनों के तप और संयम की परीक्षा की घड़ी। दिन भर भूख-प्यास तपस्या है, लेकिन पर्व के उल्लास में समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। कोई भी महिला इस त्योहार को परेशानी के रूप में नहीं लेती वरन राग-रंग-उल्लास के साथ ऐसे मनाती है जैसे यह उनके जीवन का हिस्सा है। जीवन का हिस्सा ही तो है। पूर्व जस्टिस गोपालकृष्ण व्यास ऐसे ही अवसरों के लिए कविताएं लिखते हैं। वे तीज-त्योहारों और मेलों को स्वर देते हैं, भजन और लोक गीत गाते हैं। जहां एक से बढ़कर एक लोक कलाकार परंपराओं का पोषण करते हैं। मारवाड़ की असली परंपराएं तो यहां की महिलाएं समेटे हुए हैं। मारवाड़ आज अपनी परंपराओं से पहचाना जाता है। मारवाड़ की इन्हीं परंपराओं का दिग्दर्शन जोधपुर में भीतरी शहर में होता है। शहर के विस्तार के साथ ही लोग अलग-अलग कॉलोनियों और अपार्टमेंट में जरूर बस गए मगर परंपराएं कायम है।
गुरुवार को तीज पर सुबह से लोक पर्व का उल्लास शुरू हो गया। सुहागिनों के लिए यह ऐसा पर्व है जिसका साल भर इंतजार रहता है। सुहाग की लंबी उम्र की कामना से जुड़ा पर्व शिव-पार्वती की आराधना से जुड़ा है। इस पर्व को सुहागिनें जहां अपने पति की लंबी आयु के लिए मनाती है वहीं अच्छे वर की कामना से भी लड़कियां व्रत रखती हैं। नई नवेली दुल्हनों के लिए पहली तीज का अपना महत्व होता है। जोधपुर में अभी भी संयुक्त परिवार जिंदा है। अभी भी सखी-सहेलियों की मिठास और मिलाप जिंदा है। समूह में मंदिर के दर्शन करने जाना, समूह में झूले खाना, समूह में कथा कहना और समूह में पूजा-अर्चना करना…यह अपणायत का शहर आज भी समझता है।
बादलों के कारण चंद्रोदय देरी से हुआ, करीब 10 बजे गए, पर निराश नहीं हुई महिलाएं
गुरुवार को मौसम खराब था। बादलों का दिन भर आसमां में डेरा रहा। लग रहा था कि चंद्रोदय होने पर भी बादलों की वजह से दिखने में समय लग सकता है। लेकिन महिलाओं की तपस्या तब सफल हुई जब देरी से ही सही पर रात करीब 10 बजे के आस-पास चांद नजर आया। सुहागिनों ने चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोला और सत्तू का वारा परासा। इससे पहले दिन भर मंदिरों में दर्शन, हंसी-ठिठोली, पूजा की तैयारी, शाम को नीमड़ी की पूजा-समूह में कहानी कहने में महिलाएं व्यस्त रहीं। रात को चांद उदय होने पर उसके दर्शन कर अर्घ्य देकर व्रत खोला।
गली-गली में पर्व की बिखरी खुशबू, सत्तू वाली तीज ने प्रेम का धागा मजबूत किया
कजली तीज की खुशबू शहर की गली-गली में बिखर गई। सत्तू वाली तीज ने प्रेम का धागा मजबूत किया। पति-पत्नी के प्रेम और पति की लंबी आयु से जुड़ा यह पर्व महिलाओं के जीवन में जहां महत्व रखता है वहीं पुरुषों के लिए यह दिन कम विशेष नहीं होता। पति चाहे घर से बाहर हो या परदेश में हो समय पर घर आ जाता है। आजकल मोबाइल पर भी विदेश से वीडियो कॉल कर पति अपनी पत्नी से संपर्क कर लेता है। टैक्नोलॉजी के युग में पर्व भी और अधिक जीवंत हो गए हैं। गुरुवार को तीज पर ऐसे पति जो शहर से बाहर थे या विदेशों में थे वीडियो कॉल कर अपनी पत्नियों से बात की और उनका व्रत खुलवाया।
कजली माता भूख-प्यास सहने की ताकत देती है
कजली तीज पर आप भूख-प्यास कैसे सह लेती है? जब ये सवाल राइजिंग भास्कर ने महिलाओं से किया तो सबका कहना था कि कजली माता शक्ति देती है और समय का पता ही नहीं चलता। दीपिका ने बताया कि उसने शादी के बाद पहली बार कजली तीज का व्रत रखा। सास ने काफी मदद की। परिवार के सदस्यों ने अहसास ही नहीं होने दिया। समय बीतता गया और पति राजेश ने पूरा साथ दिया। मोनिका, मृदुला, मनीषा, दिव्यांशी और काजल ने बताया कि उनके लिए तीज का त्योहार खासा महत्व रखता है। हालांकि अब करवा चौथ का भी चलन है, पर यह पर्व हमारे लिए खास महत्व रखता है। भीतरी शहर में इस त्योहार की रंगत आज भी देखी जा सकती है।
नागौरी बेरा में तलाई बनाकर नीमड़ी माता की पूजा की
कच्छवाह नगर नागौरी बेरा में सुहागिनों ने तलाई बनाकर नीमड़ी माता की पूजा कर भ्रामणि से कथा सुनी और लुखाछुपी करते हुए चांद के दर्शन किए और अखंड सुहाग की कामना की । राजश्री, चिया, मानसी, मोंकिया, वंदना, स्नेहलता, दिव्या, सुमन, मधु आदि ने मिलजुलकर पर्व मनाया। शास्त्री नगर ए सेक्टर में रामकृष्ण परमहंस पार्क में कजली तीज पर विशेष आयोजन हुआ। यहां सेल्फी बूथ पर सजी-धजी महिलाओं ने फोटो खिंचवाए। क्षेत्रवासी अक्षय परिहार ने अलग-अलग कॉन्सेप्ट के सेल्फी बूथ बनाए। सेल्फी बूथ पर महिलाओं ने रील भी बनवाई। क्षेत्र में खासा उल्लास देखा गया।
