(जयनारायण व्यास)
(हनुंवत सिंह)
(लेखराज मेहता, नोट : पं. ज्येष्ठमल व्यास का फोटो उपलब्ध नहीं है।)
-जोधपुर को हाईकोर्ट मिलने की कहानी शुरू होती है जयनारायण व्यास की जोधपुर के महाराजा हनुवंतसिंह और जैसलमेर के महारावल गिरधरसिंह से कूटनीतिक वार्ता से।
-वरिष्ठ अधिवक्ता लेखराज मेहता से मिलकर जयनारायण व्यास द्वारा वल्लभ भाई पटेल को गोपनीय पत्र लिखा जाता है। उस पत्र में कहा जाता है कि जोधपुर को हाईकोर्ट नहीं दिया गया तो जैसलमेर और जोधपुर रियासतें राजस्थान के हाथ से निकल सकती है।
-एक पत्रकार के रूप में जयनारायण व्यास की दबंग छवि थी और वल्लभ भाई पटेल ने व्यास की जानकारी पर भरोसा किया और तुरंत जोधपुर को हाईकोर्ट देने पर सहमत हो गए और जयनारायण व्यास और दोनों राजाओं के साथ डील हो गई। सत्यनारायण राव समिति के माध्यम से पटेल ने पूर्व निर्धारित प्लानिंग के तहत जोधपुर को हाईकोर्ट देने की रणनीति को कारगर होने दिया।
-इस गोपनीय पत्र की एक प्रति जैसलमेर के स्वतंत्रता सेनानी पंडित ज्येष्ठमल व्यास के पास सुरक्षित थी जो इस पूरे घटनाक्रम की महत्वपूर्ण कड़ी थे। यह पत्र उनके निधन के बाद किराए के घरों से गायब होकर जैसलमेर के एक निजी म्यूजियम में पहुंच गया। इस गोपनीय पत्र की प्रति जैसलमेर के एक निजी म्यूजियम में वर्षों तक सहेजी हुई थी जो कुछ समय पूर्व म्यूजियम में आग लगने से और डॉक्यूमेंट्स के साथ जल गई।
डी.के. पुरोहित. जोधपुर
जोधपुर में हाईकोर्ट की प्लेटिनम जयंती मनाई जा रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को समापन समारोह में भाग लेने आ रहे हैं । आज हम जोधपुर में हाईकोर्ट की प्लेटिनम जयंती का जो जश्न मना रहे हैं, उसके पीछे एक लंबी कहानी है। अगर आज जोधपुर में हाईकोर्ट है तो उसका मिलना आसान नहीं था। क्योंकि उस समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर और अलवर में कार्यरत पांच रियासतकालीन उच्च न्यायालयों में हाईकोर्ट किसी को भी मिल सकता था। जयपुर, उदयपुर और अलवर बड़े दावेदार थे। इसके लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू अलग ही दिमाग लगा रहे थे और लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल उस समय राजस्थान में रियासतों के एकीकरण में लगे हुए थे। तब जोधपुर में एक वर्ग बड़ा ही मंथन कर रहा था। जोधपुर के हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला था। यह बात लगभग तय हो गई थी। जब स्वतंत्रता सेनानी और दबंग पत्रकार जयनारायण व्यास को यह बात पता चली तो उन्होंने तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह जोधपुर में हाईकोर्ट हासिल करके रहेगे क्योंकि जोधपुर को न्यायिक राजधानी बनाकर ही वे सबकुछ हासिल करना चाहते थे। जयनारायण व्यास दूरदृष्टा थे और वे जानते थे कि हाईकोर्ट मिलना जोधपुर के लिए कितना जरूरी था। वे राजस्थान में नए जोधपुर के उदय का ख्वाब देख रहे थे।
अब शुरू हुआ वो कूटनीतिक सफर। आम आदमी की जिज्ञासा हो सकती है कि वो कौनसी कहानी है और वो कौनसी कूटनीति है जिसके कारण जोधपुर को हाईकोर्ट हासिल हुआ? जयनारायण व्यास ने जोधपुर महाराजा हनुवंतसिंह और जैसलमेर महारावल गिरधरसिंह के साथ गोपनीय मीटिंगें की। यह मीटिंगें अलग-अलग चरणों में हुई। इन मीटिंग के बाद जयनारायण व्यास ने अपना दिमाग लगाया। उन्हें पता चल गया कि अगर जोधपुर को हाईकोर्ट दिलाना है तो जवाहरलाल नेहरू की बजाय सरदार वल्लभ भाई पटेल को विश्वास में लेना जरूरी है। वे जानते थे कि वल्लभ भाई पटेल बड़े कूटनीतिज्ञ हैं। लेकिन जयनारायण व्यास उनसे भी बड़े कूटनीतिज्ञ थे। कूटनीति का जवाब उन्होंने कूटनीति से दिया। उन्होंने अपने मित्र जैसलमेर के स्वतंत्रता सेनानी पंडित ज्येष्ठमल व्यास से भी मंत्रणा की और आखिर तय हुआ सरदार वल्लभ भाई पटेल को गोपनीय पत्र लिखना। इसके लिए वे वरिष्ठ अधिवक्ता लेखराज मेहता से मिले और उनके घर पर ही प्लानिंग की गई और एक गोपनीय पत्र तैयार हुआ।
इस पत्र में जयनारायण व्यास ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को जो लिखा उसका मजमून यह है कि जैसलमेर के महारावल गिरधर सिंह और जोधपुर के राजा हनुवंत सिंह राजस्थान के एकीकरण में अड़ंगा डाल सकते हैं। अगर जोधपुर को हाईकोर्ट नहीं दिया तो सारा खेल बिगड़ सकता है। यह पत्र एक प्रकार की जयनारायण व्यास की कूटनीतिक चाल थी जो पहले से तय थी। इसके बारे में उन्होंने दोनों राजाओं को भी नहीं बताया और इसकी जानकारी सिर्फ लेखराज मेहता और जयनारायण व्यास के मित्र पंडित ज्येष्ठमल व्यास को थी। लेखराज मेहता ने जीवन पर्यंत इस गोपनीय राज को राज ही रहने दिया। इस गोपनीय पत्र की एक प्रति पंडित ज्येष्ठमल व्यास के पुराने दस्तावेजों में संभाली हुई थी जो जैसलमेर के एक निजी म्यूजियम में वर्षों तक संभाली हुई थी। बताया जाता है कि यह पत्र कुछ समय पूर्व इस निजी संग्रहालय में आग लगने के दौरान अन्य प्राचीन दस्तावेजों के साथ जल गया। इस संग्रहालय में कुछ समय पूर्व आग लगने से भारी क्षति हुई और संग्रहालय में कई प्राचीन दस्तावेज जल गए थे।
एक पत्रकार के रूप में जयनारायण व्यास की दबंग छवि थी और वल्लभ भाई पटेल ने व्यास की जानकारी पर भरोसा किया और तुरंत जोधपुर को हाईकोर्ट देने पर सहमत हो गए और सत्यनारायण राव समिति के माध्यम से पटेल ने पूर्व निर्धारित प्लानिंग के तहत जोधपुर को हाईकोर्ट देने की रणनीति को कारगर होने दिया। जैसलमेर के स्वतंत्रता सेनानी पंडित ज्येष्ठमल व्यास के पारिवारिक सूत्र बताते हैं कि हां इस प्रकार का पत्र लंबे समय तक उनके पास सुरक्षित था। लेकिन पंडित ज्येष्ठमल व्यास के पुत्र किशनलाल व्यास अपने जंवाई के साथ रहते थे और जीवनकाल में दो दर्जन मकान किराए के चेंज करने के कारण यह महत्वपूर्ण पत्र गायब हो गया। यह पत्र वर्षों तक जैसलमेर के एक एक निजी म्यूजियम में संभाला हुआ था, मगर कुछ समय पूर्व आग लगने के कारण यह महत्वपूर्ण पत्र अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ जल गया।
जयनारायण व्यास के बगैर अधूरी है हाइकोर्ट जोधपुर को मिलने की कहानी
इस तरह साफ है कि जोधपुर को हाईकोर्ट दिलाने के लिए जयनारायण व्यास ने अपनी पूरी इच्छाशक्ति लगा दी। उन्होंने वो कार्य किया जो इतिहास बन गया। आज सारा देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोधपुर में हाईकोर्ट के प्लेटिनम जुबली समारोह में शामिल होने का जश्न मना रहा है। लेकिन अगर हाईकोर्ट जोधपुर में है तो इसका एक मात्र श्रेय जयनारायण व्यास को जाता है। जयनारायण व्यास ने अपने दिमाग से वो खेल खेला जिसकी आने वाली पीढियां उनकी ऋणी रहेगी। इस पूरे खेल में जोधपुर और जैसलमेर के राजाओं और पंडित ज्येष्ठमल व्यास और लेखराज मेहता भी कड़ी रहे। इतिहास के पन्नों में यह कहानी अभी तक सामने नहीं आई और आती भी नहीं। अगर उस पत्र के बारे में स्व. किशनलाल व्यास नहीं बताते। राजस्थान राज्य का उद्घाटन 30 मार्च, 1949 को हुआ और तत्समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर और अलवर में कार्यरत पांच रियासतकालीन उच्च न्यायालयों को राजस्थान उच्च न्यायालय अध्यादेश 1949 द्वारा समाप्त कर दिया गया और राजस्थान में उच्च न्यायालय, जोधपुर का उद्घाटन किया गया। दिनांक 29 अगस्त 1949 को राजप्रमुख महाराजा सवाई मान सिंह द्वारा 11 न्यायाधीशों को शपथ दिलाई गई। प्रारंभ में उच्च न्यायालय द्वारा जयपुर, उदयपुर, बीकानेर और कोटा स्थानों से भी सुनवाई की गयी। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया और न्यायाधीशों की संख्या को घटाकर 6 कर दिया गया। बीकानेर, कोटा और उदयपुर की बेंच को 22 मई 1950 को समाप्त कर दिया गया, लेकिन जयपुर बेंच निरंतर रही । कालांतर में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 49 के तहत नवीन उच्च न्यायालय स्थापित हुआ जिसकी मुख्य पीठ जोधपुर में स्थित की गयी । पी.सत्यनारायण राव, वी.विश्वनाथन और बी.के.गुप्ता की समिति की रिपोर्ट पर जयपुर खंडपीठ को वर्ष 1958 में समाप्त कर दिया गया था। राजस्थान का उच्च न्यायालय (जयपुर में स्थायी पीठ की स्थापना) आदेश, 1976 द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर पीठ को फिर से जयपुर में स्थापित किया गया और 30 जनवरी 1977 से जयपुर पीठ ने कार्य करना शुरू किया।
