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Thursday, April 17, 2025, 11:37 pm

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अल्लाह, ईश्वर, गॉड, वाहेगुरु के नाम पर पाखंड के खिलाफ और पुरुषार्थ पर भरोसा करने वाली डीके पुरोहित की रचना

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ओ इंसान तू किसके भरोसे जिए जा रहा है

खुदा काे मारने

खुदा आ रहा है

ओ इंसान तू किसके भरोसे

जिए जा रहा है

वो आलीशान मस्जिदों में 

आराम करता है

उसका बंदा सड़कों पर

बिना छत रहता है

तेरी खिदमत में नमाज पढ़ते हैं

तू है कि उपेक्षा किए जा रहा है

ओ इंसान तू किसके भरोसे 

जिए जा रहा है

भगवान नाम एक तमाशा है

पंडों पुजारियों की भाषा है

इनकी पूजा में छिपी

मानव मन की हताशा है

वो मूर्तियों पर सजाता

सोने के ताज है

उसकी चौखट के बाहर

लक्ष्मी-सीता की लुटती लाज है

वो पत्थर मुस्कुराकर

प्रसाद और चढ़ावा लिए जा रहा है

ओ इंसान तू किसके भरोसे 

जिए जा रहा है

गॉड, वाहेगुरु सब दिखावा है

इंसानी जज्बातों से छलावा है

हम ही यहां स्वर्ग बसाएंगे

इंसान ही हकीकत बाकी बहकावा है

उसने खुद के लिए चुनी 

अमरता ही राह

ये भूखे नंगे बच्चे, माएं मरतीं

क्यों नहीं उनकी परवाह

वो रोज मर-मरकर 

फिर जिए जा रहा है

ओ इंसान तू किसके भरोसे

जिए जा रहा है

जब वो नहीं है तो

कौन हमारा सहारा है

ओ मानव मन तू नासमझ

तू इसलिए बेचारा है

सूरज किसके भरोसे जीता है

चांद तारों का कौन रखवाला है

सागर की तुम पूजा करो

वही बादलों का निवाला है

पेड़-पौधे हमें फल देते हैं

हमें जिंदगी हमें बदल देते हैं

नदियां हमारी माता है

आसमां हमारा पिता है

यह धरती ही दोस्तों

कुरआन, बाइबल, गीता है

इसे पढ़ो, इसे पूजो

बचाना है तो इसे बचाओ

चर्च, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे से

ओ नादां जरा बाहर आओ

कल जब प्रलय आया तो

कौन बचाने आएगा

हमारा बीज तत्व बचा रहा तो

फिर से नया जहां बस जाएगा

अपने को कमजोर मान

अनदेखे पर भरोसा किए जा रहा है

ओ इंसान तू किसके भरोसे जिए जा रहा है।

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Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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