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Sunday, November 9, 2025, 11:44 am

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कविता : हंसराज बारासा हँसा

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मेरे शहर में…

मेरे शहर में शजर नहीं

ठण्डी शबो सहर नहीं

पैड़ नही घनेरे शहर में
बारिश की है मेहर नहीं

पीने का है शहर मे पानी
शजर वास्ते चुलू भर नहीं

धुंआ ही धुंआ है फिजा में
हरियाली कहीं नजर नहीं

मेहमां गर आये शहर में
घुमने गाँव सी डगर नहीं

गाँव में” हंसा”बाढ आ जाती
शहर में बारिश का कहर नहीं

मायने
शबो सहर=रात और सुबह
फिजा=वातावरण
मेहर=मेहरबानी

हंस राज “हंसा”
आदर्श बस्ती,मंडोर
जोधपुर(राजस्थान)

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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