सावन कवियों-शाइरों का पसंदीदा मौसम, सावन आराधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण महीना, भगवान शिव को प्रिय, सावन जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को आधार देता है और सावन की महिमा अत्यंत महत्वपूर्ण है, प्रस्तुत है ये विशेष स्टोरी…
डीके पुरोहित. जोधपुर
जैसे ही जुलाई का महीना दस्तक देता है, आंखें आसमान की ओर उठने लगती हैं। किसान हो या कवि, गृहिणी हो या बच्चा – सभी सावन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस बार सावन की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है और मौसम विभाग ने भी 12 जुलाई से अच्छी बारिश की संभावना जताई है। यह न केवल एक मौसमीय परिवर्तन है बल्कि भारतीय जनमानस के हृदय का उत्सव भी है।
सावन सिर्फ बारिश का महीना नहीं होता – यह उमंगों, यादों, रिश्तों और प्रकृति के सान्निध्य का काल होता है। जैसे ही सावन आता है, घटाओं का शोर, शीतल हवा की लहरें, और रिमझिम फुहारें एक ऐसा माहौल रच देती हैं जिसमें हर मन भीग जाता है।
घटाओं का शोर और आसमान का संगीत
11 जुलाई से जैसे ही सावन प्रवेश करेगा, पहले दिन से ही आसमान में घनघोर बादलों का जमावड़ा शुरू होगा। नीले गगन की चादर काली घटाओं से ढँक जाएगी। यह बादल केवल वर्षा का संकेत नहीं होते, ये एक सांस्कृतिक प्रतीक भी हैं – विरह की पीड़ा, प्रेम की प्रतीक्षा और मिलन की आस।
सावन की पहली घटा जब छतों पर बरसती है, तो मिट्टी की खुशबू हर दिशा में फैल जाती है। यही वह घड़ी होती है जब शहर गलियों से लेकर ग्रामीण खेतों तक सबकी सांसें एक ही लय में चलने लगती हैं। यह केवल प्रकृति की लय नहीं, बल्कि भावनाओं की भी ध्वनि होती है।
शीतल हवा और मौसम की मधुरता
बारिश के पहले आने वाली शीतल हवा, तपती गर्मी से राहत देती है। यह हवा बस पंखों से नहीं, मन के द्वारों से भी टकराती है। घर की खिड़कियों से झाँकते परदे, उड़ते बाल और हवाओं के संग झूमते पेड़ – सब मिलकर मौसम को जीवंत बना देते हैं।
बड़ों को यह हवा पुरानी प्रेम कहानियों की याद दिलाती है, तो कवियों और रचनाकारों को प्रेरणा देती है। सावन की हवा में वह नमी होती है जो रिश्तों की दरारों को भी भर सकती है।
रिमझिम बारिश और मिट्टी की सौंधी खुशबू
जैसे ही रिमझिम बारिश शुरू होती है, ज़मीन पर गिरती हर बूँद एक कविता बन जाती है। यह बारिश कोई बाढ़ नहीं लाती, यह तो तन और मन को भिगोने आती है। बारिश के हर कतरे में जीवन का संगीत होता है।
खेतों में किसान, छत पर नाचते बच्चे, बारिश में भीगती साइकिल, कंबल में लिपटी चाय की चुस्की – यह सब सावन का हिस्सा बन जाता है। गाँवों में कच्चे रास्तों पर उग आई काई और शहरों की गलियों में जम गया पानी – दोनों की अपनी सौंदर्य है।
कागज़ की नाव और बचपन की यादें
सावन में जब बारिश ज़ोर पकड़ती है, तो नालियों में बहते पानी पर तैरती कागज़ की नावें हर किसी को अपने बचपन में लौटा ले जाती हैं। ये नावें केवल बच्चों की होती हैं ऐसा नहीं है – हर बड़ा इंसान भी इन नावों में अपनी बीती उमंगे और इच्छाएँ देखता है।
कागज़ की नावें सपनों की नावें होती हैं। बचपन की बारिश में भीगकर बनाई गई ये नावें यह सिखाती हैं कि जीवन का असली आनंद सादगी में है। जब कोई बच्चा बारिश में लोट-पोट होता है, तो वह जीवन का सबसे शुद्ध रूप दिखा रहा होता है।
बचपन भीगेगा, मासूमियत खिलेगी
सावन का महीना बचपन को सबसे ज्यादा प्रिय होता है। छाते तो घर से निकलते हैं, मगर बच्चों के सिर पर नहीं रहते। वे बारिश में भीगते हैं, फिसलते हैं, हँसते हैं, चिल्लाते हैं और पूरी दुनिया को अपनी हँसी से भिगो देते हैं।
स्कूल से लौटते बच्चों के गीले जूते, माएँ द्वारा फैलाए गए सूखे कपड़े फिर से भीगते हैं, और आँगन में फिसलते हुए गिरते-उठते बच्चों की शरारतें – ये सब सावन की अपनी कहानी है।
नारी मन मुदित होगा
सावन केवल प्रकृति का नहीं, नारी मन का भी उत्सव है। विवाहिताएँ हरे रंग की चूड़ियाँ पहनती हैं, पैरों में महावर लगाती हैं और व्रत रखती हैं। वे झूले पर बैठकर लोकगीतों में अपने मन की बात गाती हैं।
“कजरारे बदरा, मोरे अंगना छाए रे…” जैसे गीत सिर्फ शब्द नहीं होते, वे संवेदनाओं की अभिव्यक्ति होते हैं। इस महीने महिलाएं श्रृंगार करती हैं, मेहंदी रचाती हैं और आपसी रिश्तों को नये रंग में रंगती हैं।
हरियाली की चादर और धरती का श्रृंगार
सावन आते ही धरती पर हरियाली की चादर बिछ जाती है। राजस्थान जैसे शुष्क इलाके भी हरे हो जाते हैं। ओरण, गोचर, बाग-बगिचे, खेत-खलिहान, नाले-नदियाँ – सभी अपनी नई पहचान में नजर आने लगते हैं।
हरियाली केवल दृश्य नहीं है, यह संवेदनात्मक सुख है। यह किसान के चेहरे की मुस्कान है, यह पक्षियों की चहचहाहट है, यह पेड़ों पर लहराते पत्ते हैं। हर पौधा जैसे कह रहा हो – “सावन को आने दो, मैं फिर से जीना चाहता हूँ।”
सांस्कृतिक आयोजन और त्योहारों का मौसम
सावन सिर्फ प्रकृति का उत्सव नहीं है, यह संस्कृति का भी उत्सव है। राखी इसी महीने में आती हैं। महिलाएं समूह में लोकगीत गाती हैं, झूले डालती हैं, और मंगल कामनाओं से वातावरण को पवित्र करती हैं। सावन के महीने में शिवालयों में महादेव की आराधना होती है। सावन के सोमवार को विशिष्ट महत्व है। सावन के सोमवार को इस बार भी अनुष्ठान होंगे। रुद्राभिषेक, जलाभिषेक और भगवान महादेव की आराधना में श्रद्धालु जुट जाएंगे।
शहरों में भी अब सावन उत्सव का माहौल बनने लगा है। संस्कृतिक मंचों, स्कूलों और संस्थानों में सावनी झूले, गीत, कविताएँ और नृत्य का आयोजन होता है। यह एक सुखद संकेत है कि परंपराएं अब भी जीवित हैं।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सावन का महत्व
आज जब ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय असंतुलन की बात हो रही है, तब सावन का महत्व और भी बढ़ जाता है। सावन वह समय है जब वृक्षारोपण होता है, तालाब भरते हैं, जल संचयन के उपाय किए जाते हैं।
इस साल भी सरकार ने “ग्रीन इंडिया मिशन” के तहत 15 जुलाई से 15 अगस्त तक वृक्षारोपण अभियान चलाने की घोषणा की है। इसका उद्देश्य वर्षा जल का अधिकतम संचयन और हरियाली बढ़ाना है।
मन की सावनी बारिश: कविता, प्रेम और स्मृतियाँ
सावन का असली रंग मन के भीतर होता है। यह महीने हर व्यक्ति को भीतर तक छू जाता है। कवि इसे प्रेम में प्रतीक्षा की अभिव्यक्ति मानते हैं, तो दार्शनिक इसे जीवन के चक्र की पुनरावृत्ति कहते हैं।
मिर्ज़ा ग़ालिब, तुलसी, कबीर, मीरा से लेकर आधुनिक कवियों तक, सभी ने सावन को अपने-अपने दृष्टिकोण से देखा है।
“सावन के कुछ गीत, भीगे पलों की यादें बन जाते हैं।”
सावन और आर्थिक गतिविधियाँ
सावन ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए जीवनदायिनी भूमिका निभाता है। किसान इसी महीने में खेतों में बीज डालता है। बारिश अच्छी हो तो फसल अच्छी होती है, और इसका सीधा असर गांव की अर्थव्यवस्था, व्यापार और श्रम बाजार पर पड़ता है।
साथ ही, त्योहारों की खरीदारी, श्रृंगार की वस्तुएं, मिठाइयों की मांग, कपड़ों और सजावट के बाजारों में भी उछाल आता है। सावन एक सांस्कृतिक, आर्थिक और प्राकृतिक संपूर्णता का प्रतीक है।
इस सावन की प्रतीक्षा में…
जैसे ही 11 जुलाई की सुबह होगी, नज़रों को बादलों का इंतजार होगा। यह सिर्फ बादल नहीं होंगे, यह स्मृतियों, प्रतीक्षा और उत्सव की घटाएं होंगी। सावन को आने दीजिए – फिर घटाएं गरजेंगी, हवा चलेगी, बारिश होगी, कागज़ की नाव चलेगी, बचपन मुस्कराएगा और नारी मन नाचेगा।
हरियाली की चादर ओढ़े धरती फिर से कहेगी – “मैं जीवित हूँ, मैं सुंदर हूँ, मैं सावनी हूँ…”




