सरकारी स्कूल के एक प्रिंसिपल की बेटी ने 11 बालिकाओं को गोद ले रखा है, उसका पूरा दिन सेवा कार्यों में ही बीतता है
विकास माथुर. जोधपुर
संतोष में ही सारा सुख है। संतोष चौधरी (25) इन दिनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। पिछले सात-आठ साल से वह सेवा कार्यों में इतनी तल्लीन है कि उसे आत्मिक शांति मिलती है। सुबह उठते ही पक्षियों को चुग्गा डालना, गायों-श्वानों को रोटी खिलाना, गायों को सहलाना और घायल हो तो मरहम पट्टी करना जैसे काम करके वह अपनी दिनचर्चा की शुरुआती करती है। खुद लड़की होने के नाते वह अन्य लड़कियों का दर्द समझती है और पिछले कई सालों से वे ऐसी बच्चियों के जिनके पैरेंट्स नहीं है, खुद समाज कल्याण विभाग से प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति दिलाने के फॉर्म भर्ती है और उन्हें प्रतिमाह 1000 रुपए से लगाकर जितनी स्कूल की फीस होती है उतनी राशि दिलाती है। संतोष आरटीई में निशुल्क शिक्षा के लिए बच्चों का फॉर्म भी खुद भर्ती है और बच्चों को सरकारी सेवाओं का लाभ दिलाती है। साथ ही वह रक्तदान का युवाओं को महत्व समझाती है। कई बार शिविर लगाकर रक्तदान करवा चुकी है। वह खुद भी रक्तदान में आगे रहती है। उसका मानना है कि रक्त देने से कमजोरी नहीं आती है, बल्कि जरूरतमंद की जान बचाई जा सकती है।
पिता की मदद से जरूरतमंद बच्चियों को आगे बढ़ा रही
संतोष हालांकि जॉब नहीं करती है और कॉम्पीटिशन की तैयारी कर रही है। मगर इसके बावजूद वह अपने पिता जो सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल है, उनकी मदद से 11 ऐसी लड़कियों को गोद ले रखा है जिनके पिता नहीं है और ऐसी लड़कियों की पढ़ाई का सारा खर्च खुद उठाती है। दैनिक उपयोग में आने वाली पाठ्यसामग्री और अन्य जरूरत का सामान भी उपलब्ध करवाती है। इन गोद ली गई बच्चियों को वह गाइड करती है और शिक्षण कार्य में भी मदद करती है।
8 साल से गाइड कैप्टन, बच्चों को राज्यपाल अवार्ड व एडवेंचर ट्रेनिंग करवा चुकी
संतोष चौधरी पिछले 8 साल से जोधपुर में गाइड कैप्टन का कार्य भी कर रही है, जिससे कई बच्चों को राज्यपाल अवार्ड व इंटरनेशनल स्तर तक एडवेंचर ट्रेनिंग भी करवा चुकी है। वह बच्चों को बताही है कि साहसिक और मनोरंजक ट्रेनिंग का जीवन में क्या महत्व है। गाइड के रूप में उनकी सराहनीय सेवाओं को खूब पसंद किया जा रहा है। बच्चे उन्हें दीदी नाम से संबोधित करते हैं और उनसे सीखने को लालायित रहते हैं। साहसिक कार्यों में संतोष को एक अलग ही अनुभूति होती है और वह बच्चों को यही सीख देती है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए आत्मिक साहस बहुत जरूरी है। खुद की मेहनत से ही हम आगे मुकाम बना सकते हैं।
योग से रोगों को भगाती है दूर, आत्मरक्षा से बालिकाओं को जोड़ा
संतोष का रुझान योग की तरफ भी है। वह खुद नियमित योग करती है और अन्य बच्चियों को भी योग के लिए प्रेरित करती है। योग को वह जीवन का हिस्सा मानती है और वह सब बच्चियों को यही सीख देती है कि निरोगी रहना है, रोगों से दूर रहना है तो योग अपनाना चाहिए। इसके साथ ही संतोष शिविर लगाकर बालिकाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाती है। साथ ही बीपी सिक्स का व्यायाम भी करवाती है। संतोष का मानना है कि तंदुरुस्त काया के लिए योग आवश्यक है। स्कूली स्तर पर भी वह विद्यार्थियों को योग करवाने की पक्षधर है।
