राजस्थानी की मान्यता के लिए भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु बनने को तैयार हैं साहित्यकार, बीकानेर में मुद्दा गरमाया, मान्यता नहीं तो किसी पार्टी को समर्थन नहीं
राखी पुरोहित. बीकानेर
राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए बीकानेर के साहित्यकार लामबद्ध हो गए हैं। मान्यता की मांग को लेकर इक्कीस फुट का ज्ञापन कलेक्टर को संघर्ष समिति के बैनर तले दिया गया। साहित्यकारों ने कहा कि सरकार की खिलाफत की रणनीति बनाई जा रही है। लोकसभा चुनाव में उसी पार्टी को समर्थन दिया जाएग जो राजस्थानी भाषा की मान्यता की बात करेगा। सरकार की खिलाफत शुरू करने की रणनीति बनाई जा रही है। 25 सीटों पर सरकार को घेरा जाएगा। जो सौ दिन में राजस्थानी भाषा को मान्यता की गारंटी देगा उसी को समर्थन दिया जाएगा।
साहित्यकारों का कहना है कि अनुनय विनय खूब हो गया। अब पानी सिर से ऊपर निकल चुका है। इस बार आर-पार की लड़ाई होगी। सीधी अंगुली से घी नहीं निकलेगा तो युवा अपनी रणनीति बदलेंगे। अपनी सरकार में शपथ राजस्थानी में लेने मात्र से काम चलने वाला नहीं है। अब तो समय है कि कौन राजस्थानी को मान्यता देगा। जो मान्यता नहीं देगा उस पार्टी का बहिष्कार किया जाएगा। बीकानेर में युवाओं और बुजुर्गों ने इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ने की ठान ली है। छात्र, पूंजीपति, व्यापारी, रंगकर्मी, किसान, आम पब्लिक को भी फिल्म, संगीत, मजदूर, साहित्यकार सभी समाजों के संगठन आदि के साथ लेकर एमएलए और राजनीतिक दलों से मिलकर रणनीति बनाई जा रही है। सबको अपने हितों को त्याग कर राजस्थानी की मान्यता के लिए संघर्ष करना होगा। संघर्ष से ही जीत होगी। राजस्थानी की मान्यता के लिए भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव बनना पड़ेगा तो भी बनेंगे।
(जैसा कि बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार मईनुद्दीन कोहरी ने राइजिंग भास्कर को रिपोर्ट भेजी)
