मां की सीख
मीठे स्वर में गाती थी
अनुशासन में रखती थी,
हमारी जीजी फतहकुमारी
बच्चों को संस्कारित करती थी।
जीवन में अच्छे काम करो
यह बात सदा ही कहती थी,
मेहनत करके जीवन जियो
यह संस्कार हमको देती थी।
ना कभी कोई इच्छा की
ना किसी का अभिमान किया,
निर्मल रहकर सहज रहकर
संयम से सबका सम्मान किया।
जब तक सांसों में सांस रही
पुरुषार्थ से आगे बढ़ती गई
अपना धर्म निभाकर उसने
ना हमको कोई तकलीफ दी।
जब याद मां की आती है
आंखोँ से गंगा बहती है,
मां की सूरत में भगवान की
मूरत ही छवि दिखती है।
पशु-पक्षी मिलजुल कर
उन स्वरों को याद करते है,
जिसकी लोरी की धुन हमें
प्रकृतिं की सैर करवाती थी।
माता के आंचल की सुगंध
हमको बड़ा तड़पाती है,
उसके हाथों की दाल और रोटी
याद बहुत ही आती है।
आज उसके जन्म दिवस पर
प्रभु से प्रार्थना करते हैं,
उसके चरणों में शीश झुकाकर
हम उसकी वंदना करते हैं।