-देवताओं में एक अग्नि नाम का देवता था, वह गुस्सैल था, उसने गुस्से में आकर शांतेश्वर महाराज का अपमान कर दिया और ऋषि के श्राप से अग्नि का जन्म हुआ
डीके पुरोहित. जोधपुर
आज जिस अग्नि को हम आग के रूप में जानते हैं। क्या अग्नि देवता है? क्या अग्नि का स्वभाव शुरू से जलना ही रहा है? अग्नि जलाती ही क्यों है? अग्नि तत्व की उत्पत्ति कैसे हुई? इस बारे में शनिवार को रहस्यमयी जैन संत परम पूज्य पंकजप्रभु महाराज ने नया खुलासा किया है। पंकजप्रभु ने मानसिक तरंगों के जरिए जो प्रवचन दिए उसमें क्या कहा जानिए-
अग्नि। आग। हमारे शरीर में एक अंश अग्नि तत्व का भी समाहित है। अग्नि को देव कहा गया है। अब प्रश्न उठता है- अग्नि की उत्पत्ति कैसे हुई? तो सुनो हे मानव। ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण करने का निर्णय लिया। उन्होंने ध्यान लगाया। उन्हें अंतर्चेतना से ज्ञान प्राप्त हुआ कि यदि सृष्टि का निर्माण करना है तो सृष्टा यज्ञ करना होगा। ब्रह्माजी ने इसके बाद सृष्टा यज्ञ करने का निर्णय लिया। यज्ञ के लिए अग्नि की जरूरत महसूस हुई। अब अग्नि कहां से लाई जाए? ब्रह्माजी अग्नि शब्द से परिचित नहीं थे। ना ही उन्हें पता था कि अग्नि क्या होती है? उन्होंने फिर से ध्यान लगाया और ध्यानस्थ अवस्था में उन्हें इसका समाधान मिला। दरअसल उन्हीं दिनों देवताओं में एक अग्नि नाम के एक देवता भी थे। वे बहुत ही गुस्सैल स्वभाव के थे। उन्हें बात-बात पर गुस्सा आ जाता था। इसी गुस्से में आकर उन्होंने एक दिन ऋषि शांतेश्वर महाराज को अपशब्द कह दिए और उनका अपमान कर दिया। शांतेश्वर महाराज स्वभाव से शांत रहा करते थे। लेकिन जब ऋषि सत्ता पर चोट की गई तो वे सहन नहीं कर सके और उन्होंने अग्नि देव को श्राप दे दिया कि आज से तुम्हारा काम जलना होगा। तुम्हे जो इतना गुस्सा आता है अब तुम जलते रहो। जलना ही तुम्हारा स्वभाव होगा। तुम जिसे छुओगे वह जल जाएगा।
शांतेश्वर महाराज के श्राप की वजह से अग्नि देव का स्वभाव जलना हो गया। और इस तरह शांतेश्वर महाराज के श्राप की वजह से अग्नि की उत्पत्ति हुई। बस ब्रह्माजी का काम आसान हो गया। बाद में ब्रह्माजी ने यज्ञ की तैयारी शुरू की। उन्होंने अग्नि देव का आह्वान किया। अग्नि देव ने यज्ञ कुंड को प्रज्वलित किया। और इस तरह ब्रह्माजी का सृष्टा यज्ञ शुरू हुआ। और इस तरह सृष्टि के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। जब ब्रह्माजी सृष्टि का निर्माण करने लगे और तो उन्होंने अग्नि देव से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि जीव मात्र में आज से अग्नि देव का भी कुछ अंश होगा। ब्रह्माजी ने कहा कि यज्ञ की अग्नि में जो आहुतियां दी जाएगी उसका एक भाग देवताओं को भी मिलेगा। इस तरह बाद में ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की।
