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Monday, April 21, 2025, 8:41 am

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प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन के संयोग को तुम शक्ति कहते हो, मगर श्रीकृष्ण में ये तीनों तत्व समाए हुए हैं, श्रीकृष्ण शक्तियों की शक्ति है, हे मानव- यह तुम्हारे विज्ञान के अहंकार को तूफान में रुई की तरह ध्वस्त कर सकता है : पंकजप्रभु

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(प्रख्यात जैन संत परमपूज्य पंकजप्रभु महाराज का चातुर्मास 17 जुलाई से एक अज्ञात स्थान पर अपने आश्रम में शुरू हुआ। पंकजप्रभु अपने चातुर्मास के दौरान चार माह तक एक ही स्थान पर विराजमान होकर अपने चैतन्य से अवचेतन को मथने में लगे रहेंगे। वे और संतों की तरह प्रवचन नहीं देते। उन्हें जो भी पात्र व्यक्ति लगता है उसे वे मानसिक तरंगों के जरिए प्रवचन देते हैं। उनके पास ऐसी विशिष्ट सिद्धियां है जिससे वे मानव मात्र के हृदय की बात जान लेते हैं और उनसे संवाद करने लगते हैं। उनका मन से मन का कनेक्शन जुड़ जाता है और वे अपनी बात रखते हैं। वे किसी प्रकार का दिखावा नहीं करते। उनका असली स्वरूप आज तक किसी ने नहीं देखा। उनके शिष्यों ने भी उन्हें आज तक देखा नहीं है। क्योंकि वे अपने सारे शिष्यों को मानसिक संदेश के जरिए ही ज्ञान का झरना नि:सृत करते हैं। उनकी अंतिम बार जो तस्वीर हमें मिली थी उसी का हम बार-बार उपयोग कर रहे हैं क्योंकि स्वामीजी अपना परिचय जगत को फिलहाल देना नहीं चाहते। उनका कहना है कि जब उचित समय आएगा तब वे जगत को अपना स्वरूप दिखाएंगे। वे शिष्यों से घिरे नहीं रहते। वे साधना भी बिलकुल एकांत में करते हैं। वे क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? किसी को नहीं पता। उनकी आयु कितनी है? उनका आश्रम कहां है? उनके गुरु कौन है? ऐसे कई सवाल हैं जो अभी तक रहस्य बने हुए हैं। जो तस्वीर हम इस आलेख के साथ प्रकाशित कर रहे हैं और अब तक प्रकाशित करते आए हैं एक विश्वास है कि गुरुदेव का इस रूप में हमने दर्शन किया है। लेकिन हम दावे के साथ नहीं कह सकते हैं कि परम पूज्य पंकजप्रभु का यही स्वरूप हैं। बहरहाल गुरुदेव का हमसे मानसिक रूप से संपर्क जुड़ा है और वे जगत को जो प्रवचन देने जा रहे हैं उससे हूबहू रूबरू करवा रहे हैं। जैसा कि गुरुदेव ने कहा था कि वे चार महीने तक रोज एक शब्द को केंद्रित करते हुए प्रवचन देंगे। आज स्वामीजी ‘शक्ति’ शब्द पर अपने प्रवचन दे रहे हैं।)

गुरुदेव बोल रहे हैं-

शक्ति। यानी परमाणु। हे मानव तुम्हारा विज्ञान परमाणु का फार्मूला इस प्रकार बताता है- प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन…इसके संयोग से परमाणु का निर्माण होता है। यानी तीन तत्व मिलकर परमाणु का निर्माण करते हैं। लक्ष्मण पर मेघनाद ने अंतिम युद्ध में तीन शस्त्रों का प्रयोग किया था। इंद्रजीत सबसे पहले ब्रह्मास्त्र का प्रयोग लक्ष्मण पर करता है लेकिन ब्रह्मास्त्र लक्ष्मण के पास जाकर बिना वार किए वापस लौट जाता है। यह देखकर इंद्रजीत हैरान हो जाता है। इसलिए वह क्रोधित होकर भगवान शिव का पाशुपतास्त्र लक्ष्मण पर चला देता है, लेकिन पाशुपातस्त्र भी बिना प्रभाव किए ही वापस लौट आता है। प्रयासरत इंद्रजीत त्रिलोकी की अंतिम शक्ति भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र का अस्त्र लक्ष्मण पर चलाता है, लेकिन लक्ष्मण शेषनाग का अवतार थे, इसलिए वह सुदर्शन चक्र लक्ष्मण की परिक्रमा करके वापस मेघनाद के पास चला जाता है। यह देख कर मेघनाद को विश्वास हो जाता है कि लक्ष्मण और श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं है वह निश्चित ही भगवान का कोई अवतार है। यही समझाने के लिए मेघनाद युद्ध छोड़कर रावण के पास आता है और बाहर से ही उन्हें संबोधित करने लगता है। हे मानव तुम्हारे विज्ञान ने जिस परमाणु शक्ति की खोज आज की है, वह युगों पहले खोजी जा चुकी थी। ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र और सुदर्शन चक्र मिलकर ही परमाणु की रचना करते हैं। तीनों अस्त्र स्वतंत्र रूप से तीन शक्तियां हैं और मिल जाती है तो परमाणु की रचना कर देते हैं। इसे यूं भी कहें कि ऋतुएं भी तीन होती है सर्दी, गर्मी, बरसात…इन तीनों की ताकत मिलकर परमाणु यानी शक्ति की रचना करते हैं। देवता भी तीन कहे गए हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये तीन देव ही मिलकर परमाणु जैसी विनाशक शक्ति बनाते हैं। धरती, आकाश, पाताल…ये तीन तत्व मिलकर भी परमाणु शक्ति की रचना करते हैं। वात, पित, कफ…ये तीन तत्व मिलकर भी परमाणु की रचना करते हैं। ठोस, द्रव्य, गैस..तीन तरह के पदार्थ मिलकर भी परमाणु की रचना करते हैं। भूत, भविष्य और वर्तमान…तीन काल मिलकर परमाणु की रचना करते हैं। संस्कृत में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग। संस्कृत ही देव वाणी है और आदिभाषा है। इसलिए ये तीन लिंग मिलकर ही परमाणु की रचना करते हैं। हे मानव संसार में शक्ति का यही फॉर्मूला है। विज्ञान केवल शक्ति को प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन में ढूंढ़ता है, जबकि अध्यात्म में शक्ति की रचना में त्रिदेव, त्रिशस्त्र, त्रिपदार्थ, त्रिऋतु, त्रिदोष, त्रिलिंग, त्रिकाल, त्रिलोक जिसे त्रितत्व भी कहते हैं मिल बनाती है। ये तीन-तीन की शक्तियों का जोड़ा जब एक साथ मिलता है जो जगत की सारी शक्तियों का निर्माण कर देता है जिसमें आसुरी शक्ति, नारी शक्ति, पुरुष शक्ति, देव शक्ति, देवी शक्ति, किन्नर शक्ति, भूत शक्ति, पिशाच शक्ति, पशु शक्ति और दुनिया में तमाम शक्तियों का निर्माण अध्यात्म के अनुसार उपरोक्त त्रिशक्तियों के संयोग से हुआ है। हे मानव, तुम जिसे परमाणु शक्ति कहते हो। अध्यात्म जिसे त्रिदेव शक्ति कहता है। लेकिन अध्यात्म में परमाणु शक्ति से भी एक दिव्य शक्ति होती है और वह शक्ति होती है देवी शक्ति। देवी के नौ रूप है। नवरात्रा में हे मानव तुम इसकी साधना करते हो। इन नौ देवियों की शक्ति के मुकाबले दुनिया में कोई शक्ति नहीं है। तुम्हारी परमाणु शक्ति भी नहीं। यही आदि शक्ति है। अपार शक्ति है। अमोघ शक्ति है। असली शक्ति यही है। इस शक्ति से देवता भी डरते हैं। देवी शक्ति के आगे तीनों देव अधीर हो जाते हैं। निस्तेज हो जाते हैं। क्योंकि इस शक्ति से बड़ा कोई नहीं है। ईश्वरीय शक्ति में वास्तविक शक्ति देवी शक्ति है। देवी के नौ स्वरूप ही परमाणु से भी असंख्या गुणा शक्ति रखते हैं। दुनिया में इससे बड़ी शक्ति आज तक न हुई है और न होगी। श्रीकृष्ण की शक्ति की बात करें तो इनमें सारी शक्तियां आकर समा जाती है।

हे मानव शक्ति का दूसरा रूप साधना है। तप है। हमने शास्त्रों में सुना है और पढ़ा है कि राक्षस हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या करके देवताओं को प्रसन्न करते थे और वरदान मांगते थे। ये वाकई कहानियां नहीं है। हकीकत है। देवता उन्हें वरदान देते थे और राक्षस अपने को अमर समझ कर अहंकार में डूब जाते थे। मगर अंतत: देवताओं या फिर देवी शक्ति के हाथों मारे जाते थे। आज भी तुम हे मानव अपने ज्ञान से, तप से, पुरुषार्थ से, विज्ञान के बल पर कई अविष्कार कर चुके हो। तुम अपने को शक्तिशाली समझ बैठे हो। लेकिन ध्यान रहे इन सबका संचालन कहीं न कहीं से हो रहा है। तुमने जो कुछ बनाया है वो इस जगत में बनाया है। जगत से बाहर कुछ नहीं बनाया। लेकिन जो शक्ति है वो असल में जगत से परे है। वो जगदीश है। जगदीश्वर है। और जिस दिन जगदीश्वर करवट बदलेगा तुम्हारी सारी उपलब्धि राख की ढेर हो जाएगी। तुम जिस बारूद की रचना कर बैठे हो दरअसल उसी बारूद के ढेर पर तुम्हारा अंत छिपा है। जब शक्ति चरम पर होती है तो वह अपना स्वरूप समेटती है। श्रीकृष्ण ने अपनी माया समेटी थी और बहेलिए के हाथों अपने धाम को चले गए थे। राम ने जलसमाधि ले ली थी। हर शक्ति को आखिर विराम चाहिए। इसलिए हे मानव, तुम जिस शक्ति पर अहंकार कर रहे हो, वह शक्ति दरअसल कहीं और से संचालित हो रही है। तुम्हारे हाथ में न कल कुछ था और न ही आज है और न ही भविष्य में कुछ रहेगा। ईश्वर से बड़ी शक्ति कुछ नहीं है। परमाणु भी नहीं। क्योंकि परमाणु से भी बड़ी शक्ति ईश्वर है। नौ दैवी है। देवीय शक्ति और देवी शक्ति मिलकर परमशक्ति का निर्माण करते हैं। शक्ति से भी जो शक्तिशाली होती है वही परमशक्ति होती है। इसे परास्त नहीं किया जा सकता।

हे मानव, अब तुम्हें राज की बात बताता हूं। श्रीकृष्ण ही शक्ति की भी शक्ति है। उसी में नौ देवियां, त्रिदेव, मानव, भूत, पिशाच, किन्नर, यक्ष, राक्षस, पशु और तमाम जीव अंतत: समा जाते हैं। श्रीकृष्ण ही अंतिम और अनंत शक्ति है। इसे मैंने अपने अनंत चक्षुओं से साक्षात देखा है। इस जगत को श्रीकृष्ण ही त्राण दे सकते हैं। श्रीकृष्ण ने ही समय-समय पर अलग-अलग धर्म के मसीहाओं को जन्म देकर भेजा और धरती पर लीलाएं की। धरती पर मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, आश्रम, उपासरे, मठ और तमाम आराधना स्थल श्रीकृष्ण की शक्तियों से ही संचालित होते रहे हैं। इस धरती पर जितने भी संत, ऋषि, देव-पैगंबर और अवतार हुए वे श्रीकृष्ण का ही अंश है। हर धर्म का सार श्रीकृष्ण है। इसलिए श्रीकृष्ण साक्षात शक्ति स्वरूपं…श्रीकृष्ण ही शक्ति का स्वरूप है। इस शक्ति स्वरूपा श्रीकृष्ण को नमन करें।

जब-जब शक्ति की बात होगी। श्रीकृष्ण का नाम लिया जाएगा। श्रीकृष्ण में जगत की सारी शक्ति समाहित है। जब सारी शक्तियां निस्तेज हो जाती है तो श्रीकृष्ण की शक्ति अपना असर दिखाती है। या कहें कि जब शक्तियां किसी के वश में नहीं आती तो श्रीकृष्ण की शक्ति उन शक्तियों का संहार करती है। महाभारत के युद्ध में इस सत्य को केवल बरबरीज जानता था क्योंकि उसने महाभारत युद्ध की सच्चाई देखी थी। उसने देखा था कि किस तरह श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध जिताया था। किस तरह श्रीकृष्ण ने कौरव सेना के एक-एक योद्धा का विनाश किया था। जहां श्रीकृष्ण है वहां तीनों लोकों की शक्तियां हैं। श्रीकृष्ण शक्ति का परम तत्व है। वह तत्व होते हुए तत्व से परे हैं। वह चेतन शक्ति स्वरूप है। जब-जब श्रीकृष्ण की बात होगी, शक्ति स्वरूप इस शक्ति को नमन किया जाएगा। जो श्रीकृष्ण के अस्तित्व को चैलेंज करेगा, उसका अस्तित्व मिट जाएगा। मेरे मुंह से इस समय साक्षात श्रीकृष्ण अपना परिचय दे रहे हैं। मैं जो इस समय चातुर्मास की साधना में लीन हूं। मैंने अपनी साधना चक्षुओं से इस सार तत्व को समझकर हमेशा श्रीकृष्ण का स्मरण किया है। जिस पर श्रीकृष्ण की कृपा होती है वही इतनी बड़ी बात कह सकता है। हे मानव जो स्वरूप श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिखाया था। जो स्वरूप श्रीकृष्ण ने कौरव सभा में दिखाया था। वही स्वरूप मैं अपने साधना चक्षुओं से हजारों बार देख चुका हूं। इसलिए हे मानव। मान लो शक्ति के रूप में जिस परमाणु पर तुम्हें अहंकार है, श्रीकृष्ण के आगे वह परमाणु शक्ति तूफान में रुई की तरह है। श्रीकृष्ण के आगे परमाणु शक्ति कोई मायने नहीं रखती। जब-जब अध्यात्म की शक्ति से इसे महसूस किया जाएगा तभी शक्ति की असली परिभाषा को समझा जा सकता है। शक्ति मन में होती है। शक्ति आत्मा में होती है। शक्ति परमात्मा स्वरूप है। शक्ति को तुम बाहर खोज रहे हो। शक्ति दरअसल हमारे भीतर है। भीतर की शक्ति से ही सारे युद्ध जीते जा सकते हैं। जब आदमी की आत्मशक्ति जागृत होती है तो सारी बाहरी शक्तियां ध्वस्त हो जाती है। हे मानव आत्मशक्ति को पहचानो। अध्यात्म की शक्ति की पहचानो। श्रीकृष्ण की शक्ति को पहचानो। शक्ति के असली स्वरूप को पहचानने में तुम अब भी भूल कर रहे हो। प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन का संयोग परमाणु तो बना सकता है मगर परमेश्वर तो प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन को अपने भीतर समाहित किए हुए हैं। श्रीकृष्ण में ही प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन समाहित हैं। यही जगत की सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए हे मानव, श्रीकृष्ण के अस्तित्व को स्वीकारो। उनका हमेशा स्मरण करो। जब भी मुसीबत में आओगे श्रीकृष्ण ही तुम्हारी और इस जगत की रक्षा करेंगे। क्योंकि श्रीकृष्ण ही सुरक्षा देते हैं और श्रीकृष्ण ही संहार करते हैं। श्रीकृष्ण ही जीवन दाता है और श्रीकृष्ण ही मृत्यु दाता है। असली शक्ति श्रीकृष्ण है। शक्ति के बारे में आज इतना ही।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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