कहानीकार : डॉ. एल.सी.जैदिया “जैदि”, बीकानेर।
(दिन बितने लगे अफसर और कर्मचारी का किसी काम को लेकर काफी समय से आमना-सामना नही हो रहा था। एक दिन अचानक से अफसर का उसी कर्मचारी के कमरे में जाना हो जाता है। अफसर ने देखा कर्मचारी उसके आने पर कुर्सी से उठा ही नही, कर्मचारी को कुर्सी से नही उठते देख अफसर अपनी नाक भोंएं सिकोड़ने लगा, बोला तो कुछ नही, कुछ कहता इससे पहले ही वह कर्मचारी के कमरे से बाहर चला जाता है।…इसी कहानी से….)
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एक बार एक छोटा कर्मचारी जब अपने अफसर के चैबर में किसी काम के लिए जाता है तो चैंबर में अफसर से बातचीत के दौरान उसे थोड़ा समय लग जाता है बहुत देर होने के बाद कर्मचारी खड़े-खड़े थोड़ा थकने लग जाता है मगर अफसोस अफसर, कर्मचारी को बैठने के लिए एक बार भी नही कहता है इस बात को लेकर कर्मचारी अपने अफसर के इस व्यवहार से थोड़ा क्षुब्ध सा होने लगता है,
ऐसा नही है कि अफसर के चैंबर में खाली कुर्सियाँ नही थी जबकि अफसर के चैंबर में खाली कुर्सियाँ बहुत पड़ी थी मगर अफसर ने उसे यह कहने की एक बार भी जरुरत महसूस नही कि तुम कुर्सी पर बैठ जाओ।
बातचीत खत्म होने के पश्चात जब कर्मचारी चैंबर से बाहर जाने लगता है तब मन ही मन अफसर के व्यवहार पर चिंतन करने लगता है
सोचता है शायद, साहब बैठने के लिए
कहना भूल गये होगें।
यूँ कर के उसने बात को आई गई कर दी,
कुछ दिनो बाद अफसर ने उसी कर्मचारी को अपने काम के लिए चैंबर में बुलाया और बोला जरा मेरा बिजली का बिल जमा करवा देंगे क्या?
कर्मचारी ने झट से हां करते हुए बोला जी,सर करवा दुंगा।
थोड़ी ही देर में कर्मचारी बिजली का बिल जमा करवा कर.आ जाता है इसी दौरान अफसर और कर्मचारी के बीच फिर से किसी विषय को लेकर लंबी बातचीत होने लग जाती है
कर्मचारी फिर खड़े-खड़े थकान सी महसूस करने लगता है और अफसर से अपेक्षा भरी निगाहों से देखता है कि शायद सर उसे बैठने के लिए कहेंगे, मगर अफसर को उसकी क्या परवाह थी ?
अफसर ने फिर से कर्मचारी को बैठने के लिए नही बोला तो कर्मचारी को बुरा लगने लगा और सोचने लगा कि ये कैसा अफसर है जो अपने चैंबर में अपने ही कर्मचारी को बैठने के लिए एक बार भी नही बोल रहा है?
अब कर्मचारी के दिमाग में कुछ ओर चलने लगा अब उसका ध्यान अफसर की बातों में न होकर आत्मसम्मान को लग रही ठेस की ओर चला गया,
अफसर की बाते उसके सिर से ऊपर जाने लगी।
कर्मचारी अब अपने अफसर को सबक सिखाने की ठानने लगता है,,,,
दिन बितने लगे अफसर और कर्मचारी का किसी काम को लेकर काफी समय से आमना-सामना नही हो रहा था एक दिन अचानक से अफसर का उसी कर्मचारी के कमरे में जाना हो जाता है अफसर ने देखा कर्मचारी उसके आने पर कुर्सी से उठा ही नही, कर्मचारी को कुर्सी से नही उठते देख अफसर अपनी नाक भोंएं सिकोड़ने लगा, बोला तो कुछ नही, कुछ कहता इससे पहले ही वह कर्मचारी के कमरे से बाहर चला जाता है।
फिर कुछ दिनों बाद अफसर का उसी कर्मचारी के कमरे में फिर से आना हो जाता है इस बार अफसर ने फिर देखा ,कर्मचारी अफसर को देख कर फिर से कुर्सी नही उठता
यह देख अफसर ,कर्मचारी के इस व्यवहार से खुद को अपमानित महसूस करने लगता है।
अफसर, कर्मचारी के इस व्यवहार को देख उस पर आग बबूला होने लगता है अफसर गुस्सा हो कर कर्मचारी पर बरसने लगता है
बोला आखिर मैं तुम्हारा अधिकारी हूँ
तुम्हे, कुर्सी से उठ कर मेरा सम्मान करना चाहिए?
ऐसा तुम कौनसे अफसर बन गये हो जो मेरे आने पर कुर्सी से उठ कर मेरा सम्मान नही कर रहे हो?
मैं तुम्हारे इस व्यवहार से ट्रांसफर करवा दुंगा?
कमर्चारी ने बड़े ही विनम्रता पूर्वक स्वर से अपने अफसर से कहा ,
सर,
आप मेरे इस व्यवहार से बेसक मेरा ट्रासफर करवा दीजिएगा,
मगर मुझे नौकरी से निकालवा तो नही सकते ना ?
कर्मचारी ने कहा आपके आने पर मैं अपनी कुर्सी से उठ कर आपका सम्मान करूँ ये कौन से कानून में लिखा है ?
एक छोटा कर्मचारी अपने अफसर के आने पर उठ कर उसका सम्मान करे ये केवल संस्कारी बाते है और ये संस्कारों से ही मिलते है काननू की किताबो से नही।
अफसर,कर्मचारी के रुखे व्यवहार को भांप नही पाया,
तमतमा कर अफसर बोला
फिर भी मैं तुम्हारा अधिकारी हूँ
तुम्हें मेरा उठ कर सम्मान करना चाहिए,
तुम ऐसे कैसे कर सकते हो?
कर्मचारी ने कहा सर,
सम्मान उसी का किया जाता है जो दुसरों का सम्मान करे ,
अफसर ने कहा क्या बकवास कर रहे हो?
मैं तुम्हारे कहने का मतलब नही समझा ?
क्या कहना चाहते हो?
साफ साफ कहो,,।
कर्मचारी ने फिर से विनम्रतापूर्वक अपने अफसर को कहा,
मान्यवर जी,
मैं जब भी आपसे मिलने के लिए आपके चैंबर में आता हूँ तो आप भी मुझे बैठने के लिए नही बोलते है जबकि आपके चैंबर में खाली कुर्सियाँ पड़ी है मगर आप बैठने के लिए हरगिज़ नही बोलते है।
मैं यह सोच कर खुद को संतुष्ट कर लेता हूँ कि चलो जाने दो,
साहब की मर्ज़ी है किसी को बैठने का कहे या न कहे।
किसी को बैठने के लिए कहना
ये भी तो कानून में नही लिखा है।
जवाब सुन कर अफसर कुछ देर के लिए सकपका जाते है और मन ही मनन करने लगता है कि ये बात ठीक ही कह रहा है।
अफसर अपने द्वारा कर्मचारी के साथ किए व्यवहार से अवगत हो जाता है और पानी-पानी होने लगता है और ठान लेता है कि मैं आगे से अपने किसी भी कर्मचारी का अपमान नही करुंगा,
अगर मैं अपने ही कर्मचारियों का अपमान करने लगुंगा तो भला वे मेरा सम्मान क्यों करेंगें?
उसके बाद से वह अफसर अपने चैंबर में आने वाले हर कर्मचारी को बैठने का बोल कर उनका सम्मान जरूर करता है ।
कर्मचारी भी अफसर के बदले व्यवहार के बाद उनका बड़े ही आदर के साथ सम्मान करने लगता है।
इस कहानी का उद्देश्य मात्र इतना ही है कि अफसर को अपने किसी भी कर्मचारी का अपमान नही करना चाहिए।
अपितु परिवार के सदस्य की भांति अपने हर कर्मचारी का सम्मान करना चाहिए, चाहे कर्मचारी छोटा है या फिर बड़ा।
बड़ा, छोटे का सम्मान करेगा तभी तो छोटा अपने से बड़े अफसर का सम्मान करेगा।
यह सच है कि सम्मान देने और लेने के लिए हम किसी को बाध्य नही कर सकते,
हां,
यह जरुर है सम्मान दोगे तभी सम्मान मिलेगा
सम्मान के बदले सम्मान ये सब संस्कार की बाते है कानून की नही।
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