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रहस्यमयी संत पंकप्रभु का नया खुलासा : श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से संभवामि युगे-युगे नहीं बल्कि संभवामि संप्रभु कहा था…कैसे पढिए ये रिपोर्ट

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-पंकजप्रभु ने सोमवार को अपने नियमित प्रवचन में कहा कि युग को चार भागों में नहीं बांटा जा सकता, क्योंकि युग एक ही है और वह है कृष्णयुग…युग ने कभी विराम नहीं लिया, काल का पहिया कभी रुका नहीं तो युग का पार्टिशन कैसे हुआ? यह पृथ्वी के कुछ ऋषियों ने अपनी समझ से वर्गीकरण किया है जिसका अपना आकलन था, मगर हकीकत यही है कि युग को इमारत के कमरों की तरह नहीं बांटा जा सकता…।

डीके पुरोहित. जोधपुर

रहस्यमयी संत पंकजप्रभु की बातें अब लोगों की समझ से परे होती जा रही है। वो आए दिन नए खुलासे कर रहे हैं। अब उन्होंने अपने नियमित प्रवचनों में गीता के एक श्लोक के युगे-युगे शब्द पर सवाल उठाया है और दावा किया है कि श्रीकृष्ण ने युगे-युगे शब्द का इस्तेमाल किया ही नहीं था, बल्कि उन्होंने कहा था कि संभवामि संप्रभु…यानी धर्म की स्थापना के लिए वे परमेश्वर के रूप में अवतिरत होते हैं। यहां प्रस्तुत है उनके प्रवचनों के हूबहू अंश-

गुरुदेव बोल रहे हैं-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। हे मानव ये श्रीकृष्ण ने अर्जुन से जो श्लोक कहा था वो असल में निम्न प्रकार था-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि संप्रभु।।

इसका अर्थ इस प्रकार है-

हे अर्जुन! जब-जब धर्म की हानि होती है और पाप की वृद्धि होती है, तब-तब मैं धर्मात्माओं की रक्षा करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म के सिद्धांतों को पुनः स्थापित करने के लिए परमेश्वर के रूप में प्रकट होता हूं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही गीता में संदेश दिया था। लेकिन तुम्हारे ऋषियों ने शास्त्रों में लिखने में गलती कर दी। गलती व्यक्ति का स्वभाव है। गलती किसी से भी हो सकती है। कुछ गलतियों से इतिहास कलंकित हो जाता है। इसलिए हे मानव उस गलति को सुधारने का वक्त आ गया है। श्रीकृष्ण ने कभी नहीं कहा था कि धर्म की स्थापना करने के लिए वह युग-युग में प्रकट होते हैं। क्योंकि युग अनंत है। युग कभी खत्म नहीं होता। अगर समझना हो तो इस तरह समझ सकते हैं।

एक इमारत है। उसमें कई कमरे हैं। कई हॉल है। छत है। किचन है। बाथरूम है। शौचालय है। ड्राइंगरूम है। लॉबी है। पार्किंग है। गार्डन है। और भी बहुत कुछ है। अब कोई इन कमरों को युग समझ ले तो यह उनकी गलती है। क्योंकि इमारत तो एक ही है। अब अगर चार कमरे हो तो चार युग कह सकते हैं क्या? फिर किचन को क्या कहेंगे? बाथरूम को क्या कहेंगे? शौचालय को क्या कहेंगे? छत को क्या कहेंगे? गार्डन को क्या कहेंगे? कहने का मतलब है कि युग का पार्टिशन कैसे कर सकते हैं? अगर युग का पार्टिशन कर ही दिया जाए तो चार युग ही क्यों? किसी मकान में चार की जगह दस कमरे भी तो हो सकते हैं, इस तरह तो युग दस हो गए। देखा जाए तो युग एक ही हुआ इमारत ही युग है। लेकिन इमारत भी युग नहीं है। क्योंकि इमारत जिस नींव पर टिकी है वही सर्वसत्ता है। इस तरह लोग नींव को ही युग समझेंगे। दरअसल नींव भी युग नहीं है। नींव जिस धरती पर टिकी है वह धरती ही युग हुआ। पर धरती भी युग नहीं है। क्योंकि धरती की तरह इस ब्रह्मांड में कई ग्रह है। इस तरह युग को परिभाषित करना मुश्किल हो जाता है। कुछ लोग ब्रह्मांड को युग कहेंगे। मगर यह भी सही नहीं है। दरअसल श्रीकृष्ण ही युग है। अब वापस इमारत पर आते हैं। इमारत में जो अलग-अलग कमरे और तमाम चीजें बनी हुई है उसे युग का रूप दे दिया गया है। यानी हे मानव तुम्हारे शास्त्रों में जो चार युग बताए गए हैं- सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग…। अब सवाल है ये चार युग किसने बनाए। इसका निर्माण किसने किया? ये तुम्हारे वैज्ञानिकों ने अपनी व्याख्या की है। तुम्हारे ऋषियों ने अपनी अंतर्चेतना और अंतर्ज्ञान से इसकी रचना की है। हम उन्हें गलत नहीं कहते। क्योंकि ईश्वर ही हर सृजन का मूल होता है। ऋषि अपनी साधना की शक्ति से सबकुछ सृजन करता है। इस समय हे मानव चातुर्मास में श्रीकृष्ण ने मुझे बताया है कि उन्होंने युगे-युगे शब्द इस्तेमाल नहीं किया था। उन्होंने कहा था- संभवामि संप्रभु…यानी मैं धरती पर संप्रभु यानी परमेश्वर के रूप में अवतिरत होता हूं। लेकिन तुम्हारे मनीषियों से लिखने में और समझने में त्रुटि हो गई। यही कारण है कालखंड का इतिहास भ्रामक हो गया। श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस धरती पर ईसा मसीह के रूप में भी मैं ही आया था। मुहम्मद साहब के रूप में मैं ही आया था। 24 तीर्थंकरों के रूप में मैं ही आया था। महात्मा बुद्ध के रूप में भी मैं ही आया था। सिखों के धर्मगुरुओं के रूप में भी मैं ही आया था। साईं बाबा के रूप में भी मैं ही आया था। बाबा रामदेव के रूप में भी मैं ही आया था। इस धरती पर जितने भी देवता है। सब मेरे ही अंश रहे हैं। सारी देवीय शक्तियां मुझी से निकली और मुझी में समा गईं।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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