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Sunday, April 20, 2025, 2:16 am

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2 अक्टूबर पर विशेष : महावीर, बुद्ध और गांधी की रोज हत्या हो रही है

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डीके पुरोहित. जोधपुर

क्या बगैर रक्त का एक कतरा बहाए क्रांति हो सकती है? इसका जवाब तलाशते हैं हम अपने ही देश भारत में। जहां महावीर, बुद्ध और गांधी पैदा हुए। आज महात्मा गांधी की जयंती है। और इस मौके पर यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या अब दुनिया को अहिंसा की जरूरत है? अगर हां तो चारों तरफ युद्ध के बादल क्यों छाए हुए हैं? मौत की बरसात क्यों हो रही है? दुनिया के ताकतवर देशों की दादागीरी आखिर छोटे देशों पर कब तक भारी पड़ती रहेगी?

लौटते हैं उस दौर में जब भारत गुलाम था। अंग्रेजों का। देश में छटपटाहट थी। मुल्क को आजाद कराने के लिए हर कोई लगा हुआ था। दो रास्ते थे- हिंसा और अहिंसा। कुछ मनीषियों ने रक्तिम क्रांति का सूत्रपात किया और कुछ ने अहिंसा का दामन थामा। अहिंसा का मूल मंत्र देने वाले थे- मोहनदास कर्मचंद गांधी यानी महात्मा गांधी। आजादी के बाद एक अंग्रेज अधिकारी भारत आए तो किसी पत्रकार ने सवाल किया कि आप सेकंड वर्ल्ड वार में विजय होने के बाद भी भारत को आजाद क्यों किया? उस अंग्रेज अफसर का जवाब था- सुभाषचंद्र बोस के कारण…। अब हमारे सामने दो बातें हैं। क्या भारत आजाद महात्मा गांधी की अहिंसा की नीतियों के कारण हुआ या सुभाष चंद्र बोस जैसी ताकतों के कारण।

आज जब मैं इस बात पर विचार करता हूं तो पाता हूं कि अहिंसा एक विचार है। अहिंसा एक दर्शन है। मगर हिंसा एक रास्ता है। विचार और रास्ता दोनों अलग अलग चीजें हैं। विचार एक रास्ता हो सकता है मगर जरूरी नहीं कि रास्ता एक विचार हो। उस समय देश को आजाद कराने के लिए हिंसा एक रास्ता था। चंद्रशेखर आजाद ने यह नहीं देखा कि उसकी जान चली जाएगी। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर देश को आजाद कराने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाया। भगतसिंह ने संसद में बम फेंका और नई क्रांति को जन्म दिया। सुभाषचंद्र बोस की कहानी युगों-युगों तक इतिहास में दर्ज हो गई है। ऐसे व्यक्ति इतिहास में बार-बार जन्म नहीं लेते। तो फिर महात्मा गांधी? क्या महात्मा गांधी अब अप्रासंगिक हो गए हैं? क्या महावीर और बुद्ध के देश में अब अहिंसा का कोई स्थान नहीं? क्या दुनिया को अहिंसा की आवश्यकता नहीं है?

दरअसल गांधी, महावीर और बुद्ध अब सिद्धांतों की बातें रह गई है? दुनिया इन तीनों के चित्रों पर दीप जलाती है। माला पहनाती है और अगरबत्ती करती है। मगर इसका दूसरा चेहरा अत्यंत ही घिनौना है। दुनिया में परमाणु बमों का ढेर है। दुनिया की पांच महाशक्तियां क्या अपने सारे परमाणु बम नष्ट करने को तैयार होंगी? नहीं कदापि नहीं। अब अहिंसा की बातें केवल किताबी रह गई है। महावीर, बुद्ध और गांधी को हम पूजते जरूर हैं मगर उनकी बातों पर अमल नहीं करते। क्योंकि हमारे भीतर भय है। मृत्यु का। हमें अपनी सुरक्षा का डर है। जब तक मौत का भय रहेगा तब तक हिंसा का खात्मा नहीं होगा। गांधी को मृत्यु का डर नहीं था। मगर गांधी नहीं चाहते थे कि लाखों लोगों को बलिदान देना पड़े। देश को आजादी दिलाने के लिए कई बार हालात ऐसे हो गए कि देश आजाद होते-होते रह गया, मगर गांधीजी नहीं चाहते थे कि हिंसा के बल पर देश आजाद हो।

दरअसल गांधी ने दुनिया को केवल अहिंसा का मंत्र ही नहीं दिया। गांधी गांवों के विकास के पक्षधर थे। गांधीजी श्रम को महत्व देते थे। गांधीजी टेक्नोलॉजी के खिलाफ नहीं थे, मगर गांधीजी इंसान को कर्महीन बनता नहीं देखना चाहते थे। अब कई मायनों में दुनिया ने गांधीजी को नेपथ्य में डाल दिया है। गांधीजी अब विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट्स के लिए शोध और पीएचडी के विषय रह गए हैं। गांधी को दुनिया ने केवल भगवान बना दिया है और उसी भगवान के नाम पर यह दुनिया अहिंसा की पूजा करती है और हिंसा के बल पर एक-दूसरे के खात्मे में लगे हुए हैं। चाहे अमेरिका हो, चाहे रूस हो, चाहे चीन हो, चाहे, इजराइल हो, चाहे ईरान हो और चाहे हमास या यूक्रेन हो…कितने ही देश हो…युद्धों का चक्र चल रहा है। आज कहां खड़े हैं गांधी? गांधी ही नहीं महावीर और बुद्ध को हमने भुला दिया है।

आज गांधी जयंती है इसलिए देश में गांधीजी की जय जयकार हो रही है। उस देश में गांधीजी को पूजा जा रहा है जहां गांधी के देश में  रोज हत्याएं हो रही है। महावीर और बुद्ध के देश में शांति, सद्भाव और अहिंसा का कोई स्थान नहीं रह गया है। सभी राजनीतिक दल एक पाखंड पाल रहे हैं। इस पाखंड की गोद में इन मनीषियों की रोज हत्या हो रही है। दरअसल भारत में बुद्धिजीवियों ने महावीर, बुद्ध और गांधी को किताबों तक सीमित कर दिया है। देश के नेताओं ने महावीर, बुद्ध और गांधी को बाजारवाद की तरह बेचना शुरू कर दिया है। महावीर, बुद्ध और गांधी साहित्य तक सीमित रह गए हैं। हमारे आचार-विचार और कर्म में इनके सिद्धांतों का कोई स्थान नहीं रह गया है।

अब आते हैं हमारे पहले सवाल पर क्या बगैर रक्त का कतरा बहाए क्रांति हो सकती है? दरअसल अहिंसा एक लंबी प्रक्रिया है। अहिंसा से क्रांति हो सकती है। लेकिन यह लंबी प्रक्रिया है। एक दिन में अहिंसा के बल पर क्रांति नहीं हो सकती। अब बांग्लादेश का ही उदाहरण हमारे सामने है। चंद दिनों में वहां सरकार का तख्ता पलट हो गया और रक्त से क्रांति का सूत्रपात हुआ। दरअसल दुनिया में जितनी भी क्रांतियां जल्दी-जल्दी हुई है वो रक्त से ही हुई है। दुनिया के इतिहास में ऐसी कोई क्रांतियां नहीं है जो बगैर रक्त के हुई हो? भारत में भी अगर अहिंसा को देखा जाए तो केवल अहिंसा के बल पर देश आजाज हुआ हो ऐसी बात नहीं है। कुछ लोगों ने गांधीजी को भगवान बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का युगों-युगों तक का जुगाड़ कर लिया है। दरअसल गांधीजी अब किताबों तक सीमित रह गए हैं। बात महावीर और बुद्ध की करते हैं। महावीर और बुद्ध को भगवान का दर्जा प्राप्त है। महावीर और बुद्ध भगवान हैं। दोनों अहिंसा के पर्याय हैं। दुनिया में जैन धर्म को और बुद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से लोग हैं। जाहिर है कि अहिंसा को मानने वाले भी बहुत से लोग हैं। जैन धर्म में तो जीव हत्या पाप मानी जाती है। जैन धर्म आज भी अहिंसा के सिद्धांतों पर चलता है। जैन संत-मुनि और साध्वियां अहिंसा का अक्षरस: पालन करते हैं। सवाल यह नहीं है कि अहिंसा महत्वपूर्ण है या नहीं, सवाल यह है कि अहिंसा का हम जीवन में कितना पालन करते हैं। पूंजीवादी युग में सच्चाई को रोज झूठ और मक्कारी के बल पर मसला जाता है और दान-धर्म की बातें कर राजा हरिश्चंद्र बनने की दुहाई दी जाती है। क्या यह हिंसा नहीं है? हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां पैसे कमाने के लिए ईमान की हत्या की जाती है और शाम को धर्म की महफिलों में हाथ जोड़ कर पूंजीपति कीर्तन करते नजर आते हैं। हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां बाजारवाद में कथावाचक और संत कथाओं के लाखों रुपए लेते हैं और ऐसे संतों और साध्वियों का तो कहना ही क्या जो बगल में कमसिन बालाओं को बिठाकर काजू-बादाम खाते हैं और करोड़ों के आश्रमों में बौद्धिक व्यापार करते हैं। हम ऐसे संतों और साध्वियों को भी रोज टीवी पर देखते हैं जो मीडिया के माइक हाथों में थामे वैचारिक क्रांति का सूत्रपात करते हैं और दरअसल उनका जीवन आपराधिक गतिविधियों का अड्‌डा रहा है। तमाम परिस्थितियां हमारे सामने हैं और हम आज बातें अहिंसा और सत्य की करते हैं। गांधीजी ने अपने समय में खूब प्रयोग किए। सत्य और अहिंसा को लेकर उनके प्रयोग हमारे ही नहीं दुनिया के सामने हैं। गांधीजी की जिंदगी खुली किताब थी। उन्होंने जीवन में कुछ भी नहीं छिपाया। क्या आज के नेता ऐसा साहस कर सकते हैं? क्या आज के नेता ऐसे प्रयोग कर सकते हैं? नहीं। कदापि नहीं।

अब अगर हम कहना चाहें कि अहिंसा के बल पर क्रांति हो सकती है तो यह केवल मन को दिलााशा देना है। क्योंकि क्रांति के लिए खून में उबाल चाहिए। क्रांति के लिए जुनून चाहिए। क्रांति के लिए वैचारिक आंदोलन का अग्रदूत बनना पड़ता है। क्रांति के लिए शब्द जरूरी है। क्रांति के लिए अहिंसा जरूरी नहीं है। क्रांति के लिए जुनून जरूरी है। ऐसा जुनून जो आपके शब्दों में हो। ऐसा जुनून जो आपके विचारों में हो। ऐसा जुनून जो आपकी वाणी में हो। अगर आप जुनूनी भाषण दे सकते हो तो चंद दिनों में क्रांति का सूत्रपात कर सकते हो। अगर आपके पास विचार है और आप अपने विचारों से लोगों को एकजुट कर सकते हो तो क्रांति ला सकते हो। जरूरी नहीं कि अब अहिंसा से ही क्रांति हो। क्योंकि महावीर, बुद्ध और गांधी के देश में कोई उनके रास्ते पर नहीं चलता। किसी न किसी रूप में रोज महावीर, बुद्ध और गांधी की हत्या हो रही है।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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