राइजिंग भास्कर ओपिनियन
आदरणीय नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री भारत सरकार
लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल के दौरान ट्रेन हादसा होने पर उन्होंने नैतिकता के तौर पर अपनी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था। मगर वह दौर था राजनीतिक शुचिता का। अब कोई भी व्यक्ति हाथ में आया पद छोड़ना नहीं चाहता। कितना ही अच्छा होता कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव 288 लोगों की मौत पर अफसोस जताते हुए नैतिक तौर पर इस्तीफा दे देते। इससे उनका कद बढ़ता घटता नहीं।
मगर अब राजनीति में ऐसी नैतिकता की उम्मीद करना बैमानी है। चलो अब हादसा हो गया है। जांच कमेटी बैठेगी। कुछ दिन लोग अफसोस करेंगे। मगर जिनके घरों में मातम है, क्रंदन हैं, चीखें हैं, चीत्कारें हैं, वहां कुछ राहत और सौगात बांट दी जाएगी। हिन्दुस्तान में यही तो होता आया है। कितने ही बड़े हादसे हो जाए और पैसे बांट कर शांत करवा दो। इसमें दोषी जनता भी है। क्यों वह मान जाती है कि 10-15 लाख और किसी सदस्य की नौकरी पर्याप्त है। कभी-कभी किसी व्यक्ति को साजिश में उड़ाने के लिए 200 लोगों की बली भी ली जा सकती है। मित्रों यह राजनीति का अंधेरा काल है। उजाला पक्ष अभी देखना बाकी है। हमने अश्विनी वैष्णव जैसे आईएएस अधिकारी का राजनीति में आना एक अलग सोच से प्रेरित होना देखा था मगर केजरीवाल और अश्विनी वैष्णव में फर्क ही क्या है? केजरीवाल सत्ता में बने रहने के लिए गोटियां खेल रहा है और अश्विनी वैष्णव खामोश है। कम से कम यह ही कह देते कि इस हादसे से मैं व्यथित हूं और अपना इस्तीफा सौंपता हूं। मगर अब राजनीति सुविधाभोगी हो गई है। एक आईएएस लेवल का अधिकारी मंत्री बनता है तो उसमें कुछ तो खास होगा। मगर हमें तो उनमें कुछ खास नजर नहीं आया। काश वे आगे आकर इस्तीफा देते और कहते कि वे इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हैं।

बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ नहीं किया। राहत देना और मदद करना सबकुछ नहीं होता। लगभग 300 लोगाें की मौतों पर क्या देश को सवाल पूछने का हक नहीं है? क्या यह वाकई मानवीय भूल थी? ऐसा नहीं हो सकता। यह मानवीय भूल है तो एक भूल तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अश्विनी वैष्णव से इस्तीफा मांगने की कर ही सकते थे। मगर ऐसा नहीं हुआ। इस हादसे में कोई गहरी साजिश की बू आ रही है। ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम हुए ट्रिपल ट्रेन हादसे में मरने वाले तो मर गए, लेकिन एक निशां छोड़ गए दर्द के मंजर का। लोगों के लिए यह एक खबर से बढ़कर कुछ नहीं है। हर खबर खबर नहीं होती। कुछ खबरें विचलित करती हैँँ उद्वेलित करती हैँ। अगर यह हादसा हमारे भीतर संवेदना को नहीं जगाता तो इस देशवासी होने के नाते हम पर धिक्कार है। क्या ये मौतें सिर्फ खबर है। नहीं जिन घरों में अंधेरा हुआ है, वहां उजाला कैसे पहुंचेगा, इस पर मंथन करने की जरूरत है। अब हम बड़ी-बड़़ी बातें तो नहीं करेंगे, हां इतना अवश्य कहेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से इस्तीफा मांगे और जांच रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट मिलने के बाद ही फिर से रेल मंत्री की जिम्मेदारी सौंपें।
एक पाठक
