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Saturday, December 7, 2024, 7:34 am

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नाचीज बीकानेरी की पर्यावरण पर आधारित कविता

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खेजड़ा खेजड़ी बचाओ 

मैं खेजड़ा हूं
कब से खड़ा हूं
झुलसाती धूप में
कंप कंपाती शीत में ।

मैं रेगिस्तान में रहता हूं
फिर भी हरा भरा रहता हूं
मैं अपने तने पर खड़ा हूं
अपनी जड़ों पे गहरे तक गड़ा हूं ।

राहगीरों को गहरी छांव
खेलें कूदे मेरी छाया में गांव
मेरे लूंख से भूख मिटाते पशु
पंख पंखेरू करे बसेरा सुस्ताए पशु ।

मेरे लगी फली हर घर में कहे सांगरी
देश विदेश राजशाही खाने में सांगरी
खेजड़ा खेजड़ी घर खेत में लगाओ
शान बढ़ाओ अपनी आजीविका बढ़ाओ।

मुझ पर देवी देवता का सदा वास
खेजड़ी खेजड़ा सघन, वर्षा से हो मगन
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आओ
प्रदूषण भगाओ खेजड़ी खेजड़ा लगाओ ।
000
मईनुदीन कोहरी ” नाचीज़ बीकानेरी

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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