मुक्तक
जब भी अपने याद आ जाते हैं ।
आंखों में आंसू छलक ही आते हैं।।
अक्सर यादें ताजा हो ही जाती हैं ।
जिंदगी के सारे पल याद आते हैं ।।
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यादें
मेरे साथी तुम ही तो थे मेरा सहारा ।
तू तो मुझ से जीता मै तो अब हारा ।।
उन पलों- उन दिनों – उन सालों को ।
उनको याद कर – कर के मैं तो हारा ।।
गर्दिशों के दौर को भी तेरे हौसलों ने ।
मेरे जीवन को सदा तुमने ही संवारा।।
दुख दर्द सहना तेरी आदत सी बन गई ।
तुमने तो सदा खुशियों की बहाई धारा ।।
घर की लाज- शर्म कभी भी जाने ना दी ।
घर को घर समझ कर सदा दिया सहारा ।।
तुम अपने उसुलों पर सदा अडिग रही ।
ईमानदारी व सच्चाई का न छोड़ा सहारा।।
मुझ “नाचीज”को भी तुमने ही सम्भाला ।
मेरा हर कदम – हर सांस तुझे था प्यारा।।
आया है उसे जाना ही है, ये तो सच है ।
पर आज भी गैब से सहारा है तुम्हारा ।।
गमजदा : नाचीज़ बीकानेरी