(फाइल फोटो)
-पाकिस्तान में भी 300 करोड़ से अधिक संपत्ति होने की जानकारी मिली है, गैर कानूनी कार्यों के सिपेहसालार रहे फकीर के नहरी क्षेत्र में है मुरबे, मुस्लिमों को कोड़ी के भाव दिलाई जमीनें, अपनी फतवा राजनीति से नेताओं को नचाने वाले हिस्ट्रीशीटर फकीर परिवार की आईपीएस पंकज चौधरी ने 2013 में खोली थी फाइल, राजनीतिक पहुंच के चलते चौधरी का 48 घंटे में हो गया था तबादला।
-फकीर की दो साल पहले अप्रैल में 88 साल की उम्र में मौत होने पर मीडिया ने किया महिमामंडन, जैसलमेर के वकील स्व. एलएन मेहता के यहां इनकम टैक्स का छापा पड़ा तो विभाग ने सुई तक नहीं छोड़ी, ऐसे मुश्किल समय में गाजी फकीर ने 10 करोड़ रुपए देकर मेहता को फिर से खड़ा कर किया था सहयोग, बॉर्डर पार से होने वाली गैर कानूनी गतिविधियों में हाथ होने के दर्ज है अनेक मुकदमे।
-पाकिस्तान में रोजा खान, अल्लाहरख, उमालुद्दीन खान जैसे अपराधियों से जुड़े तार, 70 से 90 के दशक में धर्मगुरु के नाम पर अंडरवर्ल्ड की तरह किया काम, कोई भी सरकार की औकात नहीं फकीर परिवार की गर्दन पकड़ने की, क्योंकि दिल्ली तक जुड़े हैं तार।
डीके पुरोहित. इस्लामाबाद
मुसलमानों के धर्म गुरु गाजी फकीर की कहानी फिल्मी है। अंडरवर्ल्ड डॉन की तरह काम करने वाला फकीर केवल नाम का फकीर रहा है। पाकिस्तान में 300 करोड़ से ज्यादा की इसकी संपत्ति होने का पता चला है। यही नहीं जैसलमेर से लेकर देश भर में करोड़ों की संपत्ति होने की जानकारी सामने आई है। कश्मीर से भी गाजी फकीर के कनेक्शन होने की खबरें सामने आती रही है। फकीर केवल नाम का फकीर रहा। वह अपने पीछे 700 करोड़ से अधिक संपत्ति छोड़ गया है जो उसके परिवार, रिश्तेदारों, समाज के लोगों में बंटी हुई है। एक पुलिस अधीक्षक का तो कहना है कि फकीर अपने पीछे 5 हजार करोड़ से अधिक संपत्ति छोड़ गया है। राजनीतिज्ञों को अपने इशारों पर नचाने वाला फकीर मुसलमानों का एकमात्र नेता था। वो दिखने में एक फकीर रहा, मगर उसका कार्य देश के कानून से खिलवाड़ करना रहा। वर्षों से उसकी हिस्ट्रीशीट की फाइल दबी हुई है और भाजपा-कांग्रेस या कोई दल की सत्ता रही हो, किसी ने उसकी गिरेबान पर हाथ डालने की जहमत नहीं उठाई। आरोप तो यहां तक है कि मादक पदार्थों, हथियारों और गोला-बारूद की तस्करी में फकीर के तार पाकिस्तान में रोजा खान, अल्लाहरख, उमालुद्दीन खान जैसे अपराधियों से जुड़े जुड़े हुए रहे हैं। फकीर ने 70 से 90 के दशक में धर्मगुरु के नाम पर अंडरवर्ल्ड की तरह काम किया। किसी भी सरकार की औकात नहीं फकीर परिवार की गर्दन पकड़ने की, क्योंकि दिल्ली तक उसके तार जुड़े हुए रहे हैं। सिंधी मुसलमानों में लोग इन्हें मसीहा मानते आए हैं। इनके छह बेटे हैं। एक बेटा सालेह मोहम्मद पोकरण का विधायक और गहलोत सरकार में मंत्री है। एक बेटा अब्दुला फकीर और खुद सालेह मोहम्मद जैसलमेर में जिला प्रमुख रह चुके हैं। एक बेटा अमरदीन प्रधान है। गाजी फकीर के भाई फतेह मोहम्मद ने 90 के दशक में विधानसभा का निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ा था। उसका चुनाव चिह्न ताला-चाबी था। एलएन मेहता के कहने पर वह खड़ा तो हो गया, मगर कांग्रेस के डॉ. जितेंद्रसिंह को टिकट मिलने और खुद फतेह मोहम्मद को नहीं मिलने से वह निर्दलीय खड़ा हो गया और भाजपा के गुलाबसिंह रावलोत चुनाव जीत गए। डॉ. जितेंद्रसिंह डमी उम्मीदवार हो गए थे। उस हार के बाद गाजी फकीर की खूब किरकिरी हुई क्योंकि राजपरिवार से भी उनकी नाराजगी हो गई। यही नहीं फकीर की सेहत पर इसका असर नहीं पड़ा। चाहे कोई भी दल हो गाजी फकीर हमेशा पाला बदलता रहा। कहने को कांग्रेसी रहा गाजी फकीर मगर इतिहास गवाह है जैसलमेर में गाजी फकीर ने मौका परस्ती दिखाते हुए जिसे चाहा उसे समर्थन दिया। एडवोकेट मुल्तानाराम तो गाजी फकीर के सहयोग से ही एमएलए बने थे। फकीर की अपनी अदालत होती थी। अपना न्याय होता था। कोई भी पार्टी फकीर को नाराज नहीं कर सकती थी। यह भी सच है कि मुसलमानों के एकमुश्त वोट पड़ने के कारण फकीर अपने आप में अपराधियों और तस्करों का देवता होने के बाद भी सफेदपोश बना रहा। राजस्थान ही नहीं दिल्ली तक उसके राजनेताओं से तार जुड़े थे।
गाजी फकीर परिवार की पाकिस्तान में खूब रिश्तेदारी रही है। जैसलमेर में जब नहर आई और मुरबों की बिक्री हो रही थी तो फकीर ने मुसलमानों को खुल्ले हाथ मुरबे दिलवाए। अ की गवाही ब को और ब की गवाही अ को देकर नकली और मनमाने फोटो फॉर्म पर चस्पां कर फकीर भू माफिया बन गया। नहरी क्षेत्र में उसके परिवार, रिश्तेदारों और संबंधित लोगों के साथ समाज के लोगों के पास अथाह जमीनें और मुरबे हैं। पश्चिमी बॉर्डर पर होने वाली तस्करी का सिलसिला गाजी फकीर से भी जुड़ा रहा है। तत्कालीन एसपी पंकज चौधरी ने 2013 में जब फकीर परिवार की फाइल खोली तो उनका 48 घंटों में तबादला हो गया। राजनेता फकीर के दरबार में हाजरी लगाते रहे हैं, इसलिए न तो खुद उस पर कभी कार्रवाई हुई और न ही उनके परिवार पर। जैसलमेर के वकीलों को फकीर मालामाल कर चुका है। खासकर एलएन मेहता के माध्यम से गाजी फकीर ने मुसलमानों को अपराधी होने के बावजूद छुड़ाया। फैसा फेंकों और न्याय पाओ…यही फकीर की रणनीति रही है। पिछले दिनों जब राजस्थान में अशोक गहलोत और पायलट की नाराजगी का प्रकरण चला तो गाजी फकीर ने बुढ़ापे में भी जयपुर जाकर गहलोत को आशीर्वाद दिया था।
गाजी फकीर का पाकिस्तान में रोजा खान उर्फ रोजा उर्फ राजू खान से जुड़ाव रहा है। गाजी फकीर के नाम पर वह काम करता था। डेढ़ दशक तक वह गाजी फकीर के इशारों पर नाचता रहा और भारत में तस्करी को अंजाम दिया। कुछ समय पहले राजू खान का कोरोना से निधन हो गया है। अल्लाहरख, उमालुद्दीन खान को पाकिस्तान की सरकार को भी तलाश है और वे दुबई में छिप बैठे होने की सूचना है। बीमारी के हालत में कभी भी दुनिया से रुखसत कर सकते हैं। गौरतलब है कि गाजी फकीर के इशारों पर कई बार भारत में नकली नोट भी भेजे गए। खासकर चुनावों के मौसम में नकली नोटों की खेप की खेप आती रही है। इतना बड़ा डॉन होने के बावजूद फकीर अपने को फकीर कहता रहा। अगर गाजी फकीर की फाइल खोली जाए तो कश्मीर तक उसके तार जुड़े सामने आएंगे।
मुस्लिम समाज के धर्म गुरु और केबिनेट मंत्री सालेह मोहम्मद के पिता गाजी फकीर का दो साल पहले निधन हो गया। उन्होंने जोधपुर के निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। वे 88 साल के थे और मौत से पहले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे। पैतृक गांव झाबरा में उन्हें सुपुर्द ए खाक किया गया था। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे थे।
गाजी फकीर 50 सालों से जैसलमेर की राजनीति में किंग मेकर की भूमिका में थे। वे खुद चुनाव नहीं लड़ते थे पर चुनाव जिताने में उनकी ही चलती थी। 1995 में एक बार वे जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़े थे। उसके अलावा उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि 1973 में वे बडोड़ा गांव के सरपंच बने थे मगर चुनाव नहीं लड़ना पड़ा, निर्विरोध निर्वाचित हुए थे।
इसके बाद राजनीति पूरी तरह से सक्रिय हो गए। हर चुनाव में नए समीकरणों के साथ फकीर का कद बढ़ता ही गया। समाज के लोगों के बीच गहरी पैठ व मजबूत पकड़ के कारण कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आए। भारत में सिंधी मुसलमानों के धर्म गुरु माने जाते थे गाजी फकीर। उन्हें यह पद पाकिस्तान के पीर पगारों के नुमाइंदे के रूप में मिल रखा था, यहां वे उनका प्रतिनिधित्व करते थे। इनसे पहले गाजी फकीर के पिता राणा फकीर भी धर्म गुरु थे।
वर्ष 2013 में तत्कालीन एसपी पंकज चौधरी से फकीर परिवार का विवाद होने पर एसपी ने गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट खोली थी तब काफी विवाद हुए और चर्चा भी जोरों पर रही। यह मामला जयपुर तक गूंजा था। बाद में पंकज चौधरी के तबादले के साथ यह मामला शांत हो गया।
जैसलमेर की सियासत की धुरी व मुस्लिम समुदाय के धर्म गुरु गाजी फकीर के इंतकाल की खबर मिलते ही जिले में शोक की लहर छा गई। कांग्रेस की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले फकीर पार्टी से टिकट दिलाने से लेकर चुनाव जिताने में किंग मेकर की भूमिका में रहे। कद इतना बड़ा था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता भी जैसलमेर में उनसे राय-शुमारी किए बिना कोई निर्णय नहीं लेते थे। उनके फतवा जारी करने हजारों वोटर अपना रूख बदल देते थे।
1970 में राजनीति में आए, निर्विरोध सरपंच बने
बताया जाता है कि 1970 के करीब गाजी फकीर राजनीति में सक्रिय हुए थे। उससे पहले तक जैसलमेर का राजपरिवार ही चुनावों में सक्रिय था। 70 के दशक में गाजी फकीर ने बडोड़ा गांव के भोपालसिंह का साथ दिया और उन्हें विधायक बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद भोपालसिंह की मदद से ही वे बडोड़ा गांव के निर्विरोध सरपंच बने। इस दौरान धीरे धीरे फकीर को अपनी ताकत का अहसास हुआ और बाद में वे हर चुनाव में सक्रिय रहकर किसी भी एक उम्मीदवार पर हाथ रखते और उसकी जीत होती।
वर्ष 1985 में मुस्लिम और मेघवाल गठबंधन बनाया
1985 में गाजी फकीर ने सभी पार्टियों से किनारा किया और जैसलमेर में मुस्लिम और मेघवाल समाज का नया गठबंधन बनाया। इस दौरान मुल्तानाराम बारूपाल निर्दलीय खड़े हुए और इसी गठबंधन की ताकत पर वे चुनाव जीत गए। इससे फकीर का कद बढ़ गया। तब से लेकर 2020 तक यह गठबंधन चला और कांग्रेस के साथ रहा। फकीर का चुनाव में फरमान जारी होता था उसी तरह से इनके भाई फतेह मोहम्मद भी राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहते थे। गाजी फकीर ने 1993 में फतेह मोहम्मद को जैसलमेर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़वाया लेकिन हार गए।
15 साल एक ही परिवार से जिला प्रमुख व प्रधान बने
गाजी फकीर परिवार ने 15 साल तक जिला परिषद पर राज किया और जिला प्रमुख का पद इनके परिवार के पास ही रहा। वर्ष 2000 में भाई फतेह मोहम्मद को जिला प्रमुख और बेटे सालेह मोहम्मद को पंचायत समिति जैसलमेर का प्रधान बनाया। 2005 में सालेह मोहम्मद जिला प्रमुख बने। 2010 में दूसरे बेटे अब्दुला फकीर जिला प्रमुख बने और 2015 में तीसरे बेटे अमरदीन फकीर प्रधान बने। वर्ष 2008 में पोकरण विधानसभा से अपने परिवार से विधायक बनाने का सपना पूरा हुआ। सालेह मोहम्मद विधायक बने। 2013 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 2018 में एक बार फिर विधायक बनने के साथ ही केबिनेट मंत्री बन गए।
हर चुनाव में इनका फतवा जारी होता था
उनकी मुस्लिम वोटरों पर इतनी पकड़ थी कि एक ही रात में हजारों वोट इधर से उधर हो जाते थे। इनकी जमात चुनाव से एक दिन पहले तक इनके इशारे का इंतजार करती। इन्होंने पहले तो किसी पार्टी का साथ नहीं दिया लेकिन 1993 में भाई फतेह मोहम्मद के हारने के बाद वे पूरी तरह से कांग्रेस के साथ जुड़ गए और जैसलमेर में कांग्रेस की जड़े जमाने का काम किया। पहले जब दूरसंचार के साधन नहीं थे तब इनके नाम की खारक गांवों में जाती थी, इनके नुमाइंदे उसे ले जाते थे और जिसके पक्ष में होती थी उसे वोट देने के लिए कहा जाता था।
पाकिस्तान के पीर पगारों के नुमाइंदे थे गाजी फकीर, सामाजिक कोर्ट भी चलाते थे
भारत में सिंधी मुसलमानों के धर्म गुरु माने जाते थे गाजी फकीर। उन्हें यह पद पाकिस्तान के पीर पगारों के नुमाइंदे के रूप में मिल रखा था, यहां वे उनका प्रतिनिधित्व करते थे। इनसे पहले गाजी फकीर के पिता राणा फकीर भी धर्म गुरु थे। इनके यहां सामाजिक न्यायालय चलता और ये जो फैसला करते इनकी जमात उसे सहर्ष स्वीकार भी करती। कई ऐसे मामले उन्होंने ही निपटा दिए और उन्हें न्यायालय तक जाना ही नहीं पड़ा।
गहलोत के करीबी, संकट में भी दिया था साथ
गहलोत सरकार पर संकट आया तो अस्वस्थ होने के बावजूद गाजी फकीर जयपुर गए और वहां गहलोत समर्थक विधायकों से मिले। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस में उनका कद कितना बड़ा था।
राहुल, सीएम गहलोत व वसुंधरा तक संवेदना जता चुके हैं
गाजी फकीर के इंतकाल पर राहुल गांधी, सीएम अशोक गहलोत व वसुंधरा राजे ने सोशल मीडिया के माध्यम से शोक प्रकट किया था। गौरतलब है कि 2018 में विधानसभा चुनाव में पोकरण में कांग्रेस व भाजपा में करारी टक्कर होने पर राहुल गांधी सालेह मोहम्मद की रैली को संबोधित करने आए थे। फकीर परिवार को हमेशा से ही अशोक गहलोत का करीबी माना जाता है। गाजी फकीर के निधन के बाद उनकी पदवी उनके बड़े बेटे सालेह मोहम्मद को दी गई। मौलवियों ने सालेह मोहम्मद को साफा पहनाकर खलीफत ए पीर पगारा की जिम्मेदारी सौंपी।