स्कूलों, कॉलेजों, विवि में स्टूडेंट्स-शिक्षक व स्टाफ आ सकते हैं अंगदान के लिए आगे, सामाजिक संस्थाओं और एनजीओ को चलाना चाहिए कैंपेन
जोधपुर एम्स में अब तक 6 ब्रेन डेड अंगदान हो चुके हैं, शहरवासी हो रहे हैं जागरूक, 21 दिसंबर को नर्सिंग अधिकारी हितेशी बोराणा के लिवर व 2 किडनी डोनेट किए गए
कुछ समय पहले रमेश कुमार सुथार के पुत्र विक्रम की दुर्घटना में मौत पर अंगदान हुए थे, परिजनों ने साहसिक निर्णय लिया और विक्रम तीन लोगों को जिंदगी दे गया था
डीके पुरोहित. जोधपुर
जीवन का अंतिम सत्य मौत है। मौत से कोई नहीं बचा है और ना ही कोई बच सकता है। आज नहीं तो कल मौत तो आनी है। मगर कहानी उसकी बनती है जो मरकर भी ऐसा काम कर जाए तो नजीर बने। अगर आप भी चाहते हैं कि मरने के बाद भी जीवित रहें तो एक काम तो कर ही सकते हैं अपने अंगदान करके। इसके लिए आप अभी से अंगदान करने की घोषणा कर सकते हैं। जोधपुर एम्स में ऐसे करीब छह मौके आए हैं जब ब्रेन डेड लोगों के अंगदान कर मौत से जूझ रहे लोगों को नई जिंदगी मिली है। गौरतलब है कि ब्रेन डेड व्यक्ति की एक तरह से मौत ही हो जाती है। बस उसकी घोषणा करनी बाकी होती है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति की सांसे लौटाना लगभग नामुमुकिन होता है। अगर डॉक्टर मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर जाए और गोल्डन पीरियड में ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान कर दिए जाए और समय रहते उसका ट्रांसप्लांट हो जाए तो जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे मरीजों को नई जिंदगी मिल सकती है। जोधपुर में ऐसा कई अवसरों पर हो भी चुका है। एम्स जोधपुर में अब तक 60 किडनी ट्रासंप्लांट हो चुकी है। साथ ही 15 लिवर ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। 9 परिवार के सदस्यों ने अंगदान किया और 6 ब्रेन डेड के अंगदान भी हुए।
रमेश कुमार आचू पुत्र लाखाराम (जाति सुथार) निवासी सागर नगर पाल शिल्पग्राम, के पुत्र विक्रम सुथार की सड़क दुर्घटना में ब्रेन डेड होने पर जोधपुर एम्स अंगदान हुआ। विक्रम मरकर भी 3 लोगों को जीवनदान दे गया। इसी तरह 21 दिसंबर को ब्रेनडेड नर्सिंग अधिकारी हितेशी बोराणा के लिवर और 2 किडनी डोनेट किए गए। जोधपुर की ही उम्मेद हेरिटेज निवासी चेष्टा की पुणे में मृत्यु होने पर वहां पर अंगदान हो चुके हैं। ऐसे ही कुछ अन्य अंगदान हो चुके हैं। शहर में लोग जागरूक हो रहे हैं। जिस घर में ब्रेन डेड के केस आते हैं, डॉक्टरों की सलाह और प्रेरणा से वे अपने स्वजनों का अंगदान कर रहे हैं। हालांकि यह आंकड़ा बहुत कम है।
देश में अंगदान की जरूरत के मुताबिक 2 प्रतिशत भी अंगदान नहीं होते
एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में अंगदान की जरूरत के मुताबिक 2 प्रतिशत भी अंगदान नहीं होते। हर साल करीब 10 लाख लोगों में से 500 लोगों को ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। अगर समय पर अंगदान हो और इन लोगों को अंग मिले तो नई जिंदगी मिल सकती है। राजस्थान में अंगदान के प्रति लोगों में चेतना और जागरूकता काफी कम है। पूरे विश्व में अंगदान के प्रति अभी भी लोगों में जागरुकता का अभाव है।
अंगदान जागरूकता का स्कूल पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिए
दरअसल अंगदान जागरूकता का स्कूल पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिए। प्रार्थना सभा में बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। जब बच्चे अंगदान के बारे में पाठ्यक्रम में पढ़ेंगे तो प्रेरित होंगे और अपने परिजनों को भी प्रेरित करेंगे। अंगदान करके हम अपने जीवन के बाद भी अंगों का सदुपयोग कर सकते हैं। मरने के बाद वैसे भी अंगों को मिट्टी होना है, लेकिन यदि मरने के बाद अंगदान कर दिए जाएंगे तो कई रोगियों को नई जिंदगी मिल सकेगी और उनके परिजन दुआ देंगे।
ब्रेन डेड होते ही मरीज के परिजनों को गोल्डन पीरियड़ में निर्णय लेना चाहिए
डॉक्टरों के मुताबिक व्यक्ति के ब्रेन डेड होने पर गोल्डन पीरियड में परिजनों को अंगदान करने का निर्णय लेना चाहिए। अगर गोल्डन पीरियड में अंगदान कर दिए जाए और उन्हें समय पर अन्य मरीजों को ट्रांसप्लांट कर दिया जाए तो उसकी सार्थकता सिद्ध हो सकती है। अब धीरे-धीरे लोग इस बात को समझने लगे हैं कि मौत के बाद भी अपने परिजनों को जिंदा देखना है तो अंगदान कर देने चाहिए। अंगदान करने के बाद उनके परिजन दूसरों में जिंदा रह सकते हैं।
भ्रांतियों और गलतफहमियों से बचने की जरूरत
डॉक्टरों का कहना है कि अंगदान को लेकर अभी भी लोगों में कई गलतफहमियां और भ्रांतियां हैं। कई लोग सोचते हैं कि उनके परिजनों के अंगदान कर दिए जाएंगे तो अगले जन्म में उनके परिजनों को पूर्णता नहीं मिलेगी। या कई लोग सोचते हैं कि अंगदान करने से मृतक को मोक्ष नहीं मिलेगा। लेकिन वैज्ञानिक और डॉक्टरों का साफ कहना है कि ये महज भ्रांतियां है। मरने के बाद भी अगर हमें अपने परिजनों को जिंदा देखना है तो बेझिझक अंगदान करना चाहिए।
एनजीओ और सामाजिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं
अंगदान का अभियान चलाकर एनजीओ और सामाजिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। एनजीओ के पास कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज होती है और उन्हें सरकारी स्तर पर फंड भी मिलता है। वे घर-घर जाकर इस संबंध में लोगों को जागरूक कर सकते हैं। अंगदान की सार्थकता बताते हुए एनजीओ अपनी पहुंच तक अभियान चला सकते हैं। सामाजिक संगठन और समाजसेवियों को भी अंगदान की कमान अपने हाथ में लेनी चाहिए। यह ऐसा अभियान है जिसमें हम अपनी इच्छा शक्ति से प्रदेश-देश में रोगियों को नई जिंदगी दे सकते हैं।
शिक्षक संस्थान और एनजीओ पहल करें, राइजिंग भास्कर से जुड़ें
अंगदान अभियान को चैंलेंज के तौर पर लेने की जरूरत है। अगर आप जागरूक एनजीओ चलाते हैं और शिक्षण संस्थाओं से जुड़े हैं तो आप भी अपने स्तर पर अंगदान अभियान को गति दे सकते हैं। आप से राइजिंग भास्कर की अपील है कि आप बच्चों, युवाओं और बड़ों को अंगदान के प्रति प्रेरित करें। साथ ही इस संबंध में गतिविधियां आयोजित कर समाचार मय फोटो हमें भेजें। हम राइजिंग भास्कर में उन्हें स्थान देंगे और आपकी पहल को सराहना देंगे।