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Saturday, September 13, 2025, 5:27 am

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भागवत-मोदी : 75 साल में भी बेमिसाल काम, राइजिंग भास्कर ओपिनियन- जब तक शरीर-दिमाग स्वस्थ दोनों को मिले मौका

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राइजिंग भास्कर कॉलम : दिलीप कुमार पुरोहित

आरएसएस के संघचालक मोहन भागवत गुरुवार को 75 के हो गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को हो जाएंगे…देश-दुनिया के जनमानस में यह सवाल उठ रहा है कि दोनों रिटायर होंगे? लेकिन रिटायर का क्राइटेरिया क्या उम्र ही होती है…जब तक शरीर और दिमाग चलते रहें तो क्या दोनों देश सेवा की यात्रा जारी नहीं रख सकते? हमारा तो यही मानना है कि दोनों शख्सियत भारत की प्राण-शक्ति है…अभी दोनों ऊर्जावान है…दोनों बौद्धिक स्तर पर भी सक्रिय हैं…इसलिए दोनों को चाहिए भारत का ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें…।
डॉ. मोहन भागवत में अगर भागवत का दर्शन है तो नरेंद्र मोदी में गीता की निष्काम कर्म की प्राण शक्ति हैं…। आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत गुरुवार को 75 साल के हो गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 75 की वय पूरी कर लेंगे। पहले भाजपा ने नारा दिया था कि 75 पार नो वार…यानी जो 75 के हो चुके हैं वो चुनावी जंग नहीं लड़ेंगे…लेकिन क्या मौजूदा परिस्थितियों में उचित है? नियम और कायदे परिस्थितियां तय करती हैं और परिस्थितियां जब अनुकूल नहीं हो तो नियमों में शिथिलता भी दी जा सकती है। अभी देश ऐसे दौर पर हैं जहां डॉ. मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जरूरत हैं। क्या देश में भागवत जैसा कोई प्रखर  चिंतक और बुद्धिजीवी नहीं हैं? क्या उनका स्थान लेने वाला और कोई नहीं हैं? यह सवाल हम आरएसएस पर छोड़ पर दें तो बेहतर है मगर इसका उत्तर जहां तक हम समझते हैं तो वह यह है कि जब तक किसी व्यक्ति का शरीर और बुद्धि साथ देते हैं तब तक उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में भागवत भी फिट हैं और नरेंद्र मोदी भी फिट हैं। दोनों भारत के शिखर पुरुष हैं और राष्ट्रीय चेतना के सूरज हैं। ऐसे में अगर वे आने वाले पांच-दस साल तक नेतृत्व की दृष्टि से फिट हैं तो उन्हें निरंतर रखना ही समझदारी है और आज की जरूरत भी है।
उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव हैं भागवत-मोदी : 
अगर भागवत और मोदी के बारे में एक लाइन में बात कहें तो कहेंगे दोनों भारत के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव हैं। ऐसे में दोनों की अहमियत अपनी जगह कायम है। हम दोनों की अनदेखी नहीं कर सकते।
भागवत संस्कृति और मोदी संस्कृति के लिए : 
अगर यह कहें कि डॉ. मोहन भागवत भारत की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय संस्कृति के संरक्षक हैं। दोनों संस्कृति के दूत हैं और संस्कृति का चेहरा है। भारतीय गौरवमयी चेतना और प्राण-शक्ति को दोनों ने जीवित रखा है।
एक आध्यात्मिक चेतना और दूसरा राजनीतिक ऊर्जा का चेहरा :
आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत भारतीय आध्यात्मिक चेतना के और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक ऊर्जा का चेहरा है। दोनों ऐसे चेहरें है जिन्होंने भारतीय विश्वास को दुनिया में कायम किया है। दोनों ने ऐसे समय में भारत का अपने-अपने ढंग से नेतृत्व किया है जब भारत को इसकी बेहद जरूरत थी और है।
विश्व परिदृश्य और वैश्विक विघटनकारी तत्वों से बचाने के लिए दोनों अहम कड़ी :
विश्व परिदृश्य और वैश्विक विघटनकारी तत्वों से बचाने के लिए डॉ. मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी दोनों अहम कड़ी है। दोनों के पास विजन है। एक विचार क्रांति की नाव को चलाता है और दूसरा नाव को तूफानों से पार लगाने में विपरीत लहरों से लड़ता है। इसलिए भागवत और मोदी की अभी सक्रियता देश के लिए जरूरी है।
भारतीय वांग्मय में देवभक्ति और देशभक्ति का दोनों आवरण पृष्ठ : 

भारतीय वांग्मय में देवभक्ति और देशभक्ति का डॉ. मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों आवरण पृष्ठ है। ऐसे सुनहरे पृष्ठ को पढ़ना और गढ़ना दोनों तत्व जरूरी है। इसलिए भागवत और मोदी का महत्व बढ़ जाता है।

…और राष्ट्रसेवा के जिसमें भाव, उनके लिए भारत में उम्र बाधक नहीं : 

इतना कहकर अपनी बात समाप्त करेंगे कि अगर आपका शरीर और दिमाग चल रहा है और आपमें राष्ट्रसेवा के भाव हैं। तब आपकी उम्र सेवा में बाधक नहीं है। ऐसे में हमारा यही मानना है कि दोनों मनीषियों को भारत की सेवा जारी रखनी चाहिए। रिटायरमेंट का उम्र से कोई संबंध नहीं हैं। अगर आप शारीरिक और बौद्धिक रूप से पंगु हैं तो आप समय से पहले ही रिटायर हैं। इसलिए चलते रहें…चलना ही जिंदगी हैं। जीवन की सांझ जब आएगी तब आएगी, जब तक सूरज पूरी तरह डूब नहीं जाता, आसमान पर अंधेरा नहीं हो सकता। अभी तक सूरज ढला नहीं है…दोपहर का समय है…शाम आएगी तब देखेंगे…।

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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