-यूआईटी बनने के बाद भ्रष्ट नेताओं ने भूमाफियाओं को दिया प्रश्रय, मानसिंह देवड़ा से लेकर जेडीए के तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्रसिंह सोलंकी तक ने भी नहीं लिया कोई एक्शन, पॉवर ऑफ अटार्नी के नाम पर झूठे बेचाननामों के आधार पर करोड़ों की जमीन पर होते रहे कब्जे
-भूमाफियाओं ने राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी कर हड़प ली भूमि, हाईकोर्ट ने स्टे ऑर्डर दिया मगर सरकार और प्रशासन बना पंगू, किसी की हिम्मत नहीं भूमाफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने की
-लंका लुटती रही और सरकारें और प्रशासन देखता रहा, मौजूदा महापौर कुंती परिहार ने भी आरोपियों को प्रश्रय दिया, किसी राजनेता की औकात नहीं आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की, वोटों की राजनीति ने भूमाफियाओं को मनमर्जी करने से रोकने की कोशिश नहीं की
सज्जनसिंह. जोधपुर
आजादी से पहले 1936-37 में मंडोर रोड पर तत्कालीन जोधपुर महाराजा द्वारा बसाई बालसमंद योजना के 70 करोड़ से लेकर 250 करोड़ रुपए के भूखंडों पर भूमाफियाओं का कब्जा हो गया है। यह आंकड़ा तो बहुत कम है। हकीकत में राशि इससे भी अधिक है। बालसमंद योजना 1936-37 में अस्तित्व में आई। 1941 से इसके पट्टे मिलने शुरू हुए। 1946 तक पट्टे मिले। 1947 में इस योजना में बचे हुए पट्टे सरकार के पास ही रह गए। सरकार ने यूआईटी के माध्यम से बालसमंद योजना के प्लॉट के जब ऑक्शन शुरू किए तो कई भूमाफिया सक्रिय हो गए। इन भूमाफियाओं में नरसिंह गहलोत, अर्जुनसिंह, भीखसिंह, नरपतसिंह, जितेंद्रसिंह, सांगसिंह और संतोष जैसे कई नाम है जिन्होंने कई लोगों के नाम आवंटित भूमि को हड़प लिया। भूमाफियाओं ने झूठे पॉवर ऑफ अटार्नी और बेचाननामों के आधार पर कई लोगों की भूमि हड़प ली। ये वे लोग है जो पॉवरफुल है और जिन पर तत्कालीन जेडीए चेयरमैन राजेंद्रसिंह सोलंकी और वर्तमान नगर निगम महापौर कुंती परिहार तक का प्रश्रय रहा। बालसमंद योजना में ओवरऑल भूमाफियाओं ने जो जमीन हड़पी उसमें तत्कालीन यूआईटी चेयरमैन मानसिंह देवड़ा ने भी कोई एक्शन नहीं लिया। वोटों की राजनीति में उन्होंने भी काजल की कोठारी से अपने को बचाए नहीं रखा। हालत यह है कि बालसमंद योजना की पार्क, सड़क, स्कूलों और सार्वजनिक महत्व की जमीन पर कब्जा होता गया। बिल्डिंगें बनती गई और सरकारों ने भूमाफियाओं की मदद की और अपने फर्ज से मुंह मोड़ लिया। हाईकोर्ट ने कुछ मामलों में स्टे ऑर्डर दे दिया, मगर प्रशासन और सरकारों की हिम्मत नहीं है भूमाफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करे। कलेक्टर, एसपी और पुलिस कमिश्नरों ने भी आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखाई। मामलों में एफआईआर होती गई। जांच होती गई। भूमि मापन होता गया और कार्रवाई के नाम पर शून्य परिणाम हासिल हुआ।
अरबों रुपए के डेवलपमेंट हो गए, कब्जों को हटाना संभव नहीं
बालसमंद योजना में हालत यह है कि यूआईटी और बाद में जेडीए ने अरबों रुपए के डेवलपमेंट करवा दिए और जो भूमाफियाओं ने कब्जे किए, उसे हटाना अब संभव ही नहीं रहा। भूमाफियाओं ने पार्क, सड़कों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों की भूमि को भी नहीं छोड़ा और कब्जा करते रहे। यहीं नहीं कुछ पॉवरफुल भूमाफियाओं ने कुछ लोगों की बेशकीमती जमीन हड़प ली। झूठे पॉवर ऑफ अटार्नी और झूठे बेचाननामों के आधार पर तत्कालीन तहसीलदारों और राजस्व कार्मिकों के साथ मिलकर राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी करते रहे और हालत यह हुई कि अब कब्जा भूमि पर बिल्डिंग बन गई है और प्रशासन की हिम्मत नहीं हो रही कार्रवाई करने की। हाईकोर्ट ने कुछ मामलों में स्टे ऑर्डर दे रखा है, मगर प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी बळती में हाथ नहीं डाल रहा है। इन भूमाफियाओं ने अपनी मर्जी से नक्शों और कागजों में कांटछांट करते हुए जैसा चाहा वैसा लिखा लिया और काबिज होते गए। अब इन काबिज भूमि को छुड़ाना आसान नहीं रहा है।
भूमाफियाओं के खिलाफ पहले से कई मामले दर्ज
कई भूमाफिया ऐसे हैं जिनके खिलाफ पहले से आपराधिक मामले दर्ज हैं। ऐसे भूमाफिया के खिलाफ जेडीए के अधिकारी भी कार्रवाई करने से डरते हैं। कई भूमाफियाओं को तत्कालीन जेडीए चेयरमैन राजेंद्रसिंह सोलंकी और महापौर कुंती परिहार का भी प्रश्रय है, जिसके चलते कार्रवाई नहीं हो रही है। जो मामले सामने आए हैं उसमें राजेंद्रसिंह सोलंकी की भूमिका सबसे बड़़ी सामने आई है। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार के मामलों में राजेंद्रसिंह सोलंकी जेल भी जा चुके हैं और जोधपुर से तड़ीपार हो चुके हैं। इसके बावजूद भी अशोक गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल में उन्हें वोटों की राजनीति के चलते पशुधन आयोग का चेयरमैन बनाया था। माली समाज का वोटों की राजनीति में बड़ा वर्चस्व है। अशोक गहलोत खुद माली है और राजेंद्रसिंह सोलंकी भी माली है। जो भूमाफिया है उनमें अधिकतर इसी समाज के लोग सामने आए हैं। ऐसे में सभी कुओं में भांग पड़ी हुई है। जेडीए के अफसर भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। क्योंकि भूमाफियाओं के हाथ लंबे हैं। उन पर राजनेताओं का प्रश्रय है।
दर्जनों भूखंडों पर भूमाफियाओं का कब्जा, कोर्ट के स्टे के बावजूद अधिकारी मौन
सुरेंद्र सिरोही, अरविंद शांखी, नरेश कच्छवाह, छैलसिंह सहित दर्जनों भूखड़ मालिकों के भूखंडों पर भूमाफियाओं का कब्जा हो गया है। हाईकोर्ट के स्टे के बावजूद अधिकारी मौन है। कई पीड़ित भूखंड मालिक प्रशासन से गुहार लगाते रहे हैं, मगर राजनेताओं के प्रश्रय के चलते अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। हालांकि हाईकोर्ट ने कुछ भूखंड मालिकों के पक्ष में स्टे तक दिया है, मगर प्रशासन भी कार्रवाई करने से हाथ पीछे कर रहा है। पीड़ितों की मदद करने की बजाय प्रशासन मौन है।
बालसमंद योजना पर ही भूमाफियाओं ने हमला बोल दिया, आजादी के बाद से ही नजर थी
पूरी बालसमंद योजना पर ही भूमाफियाओं ने हमला बोल दिया। आजादी के बाद से ही भूमाफियाओं की इस बेशकीमती भूमि पर नजर थी। तत्कालीन महाराजा द्वारा यह आवासीस योजना काटी गई थी। आजादी के बाद जब भारत सरकार का गठन हुआ तो धीरे-धीरे स्वायत्तशासी संस्थाओं का गठन हुआ। मगर राजनेताओं ने अपने फर्ज से मुंह मोड़ लिया। सबसे बड़ा अगर भूमाफियाओं को किसी ने प्रश्रय दिया तो वो है मानसिंह देवड़ा। जिसे लोग देवता की तरह पूजते रहे, मगर इस शख्स ने भूमाफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उनकी बेटी कुंती परिहार ने भी भूमाफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। हालात यह है कि पूर्व महाराजा द्वारा बसाई पूरी बालसमंद योजना ही खुर्दबुर्द कर दी गई है। यहां कब्जों पर कब्जे होते गए। यूआईटी और जेडीए के अफसरों ने भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। जितने भी कलेक्टर आए वे अनदेखी करते रहे। किसी ने अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं किया। देखते ही देखते समस्या नासूर बन गई। अब हालत यह है कि बालसमंद योजना पर भूमाफिया कब्जा कर चुके हैं।
