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Sunday, April 20, 2025, 5:05 am

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हां, राहुल गांधी! नरेंद्र मोदी हिंदू नहीं है, भाजपा हिंदू नहीं है, आरएसएस हिंदू नहीं है, मगर आप तो हिन्दुस्तान में ‘इंडिया’ की औलाद हो, हमें तो भाजपा में हिंदू-हिन्दुस्तान का गौरव नजर आता है

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भाजपा के माध्यम से हिंदू समाज को गाली देना राहुल गांधी की स्वार्थपूरित राजनीति की पराकाष्ठा है

हिंदू धर्म नहीं, जीवन पद्धति है, यह कभी हिंसा-हिंसा-हिंसा, नफरत-नफरत-नफरत, असत्य-असत्य-असत्य का पोषक नहीं रहा

राहुल की नासमझी पर तरस आता है और गुस्सा भी, देश की बहुसंख्यक हिंदू जनता ही इसका जवाब देगी

राइजिंग भास्कर डॉट कॉम के ग्रुप एडिटर डी.के. पुरोहित की विशेष रिपोर्ट

जो राजनीति में सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ। जिसने हिंदू धर्म के बारे में अध्ययन ही नहीं किया। जिसने हिंदू राजाओं के त्याग-सच्चाई-करुणा की कहानियां भी नहीं सुनी। जिसने विदेशी बालाओं के साथ नैन मटके किए। जिसने हिंदुओं का विरोध करने को अपनी जीत का मकसद बना लिया। जिसकी पार्टी और जिसके पूर्वजों ने हिंदू समाज के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया…वो संसद में क्या कहता है- जरा सुनिए–

”और जो लोग अपने आपको हिंदू कहते हैं वो चौबिस घंटा हिंसा-हिंसा-हिंसा, नफरत-नफरत-नफरत, असत्य-असत्य-असत्य कहते हैं…” जब राहुल गांधी की बात का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोध करते हैं और कहते हैं कि पूरे हिंदू समाज के बारे में ऐसा कहना उचित नहीं है तो राहुल गांधी कहते हैं- ”नरेंद्र मोदी हिंदू नहीं है…भाजपा हिंदू नहीं है…आरएसएस हिंदू नहीं है…”

सच कहते हो राहुल गांधी, आपने जिन लोगों के बारे में इतनी बड़ी बात की है आज हिन्दुस्तान में ये ही वे लोग और दल हैं जो हिंदू की बात करते हैं। आप और आपकी पार्टी और आपके पूर्वजों ने केवल और केवल धर्म निरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों को वोट बैंक बनाए रखा। उनके जीवन में आपने किसी प्रकार का उजाला लाने की कोशिश नहीं की और उन्हें हिंदुओं से खतरा बताते हुए उन्हें वोट बैंक का मोहरा बनाए रखा। आज भी हिंदू की बात कहने वालों को आप और आपकी पार्टी के लोग गाली देते हैं। इस देश का दुर्भाय है कि हिंदू कभी एक नहीं हुआ। अगर हिंदू एक होता तो मुस्लिम आक्रांता कभी हिन्दुस्तान पर राज करने का सपना साकार नहीं कर पाते। कई हिंदू राजाओं ने अकबर के दरबार में नवरत्न और सुविधाएं पाना स्वीकार किया, अगर वे ही हिंदू राजा एकजुट होकर मुस्लिम शासकों से लड़ते तो आज इतिहास कुछ और कहानी कहता…बहरहाल हम बात इतिहास की नहीं करते, क्योंकि आपके पूर्वजों ने हिंदुओं का इतिहास इतना बदसूरत कर दिया कि बच्चा-बच्चा आपके पूर्वजों के झूठ को सच मानने लगा है।

हिंसा-हिंसा-हिंसा… का जवाब

राहुल गांधी आपने कहा हिंदू की बात करने वाले हिंसा-हिंसा-हिंसा करते हैं। तो सुनो राहुल…हिंदुओं की करुणा…। हिंदू कभी हिंसा करना तो दूर हिंसा को स्वीकार भी नहीं करते। किस तरह उनके मन में करुणा होती है जानिए राजा शिवि की कहानी से।

राजा शिवि की कहानी, जो कबूतर के लिए जान देने को तत्पर हुए 

राहुल, आपने तो शायद राजा शिवि का नाम भी नहीं सुना होगा। शिवि पुरुवंश में जन्मे उशीनर देश के राजा थे। बड़े ही परोपकारी और धर्मात्मा। परम दानवीर। देवताओं के मुख से राजा शिवि की इस प्रसिद्धि के बारे में सुनकर इंद्र और अग्नि को विश्वास नहीं होता था। अतः उन्होंने उशी नरेश की परीक्षा करने की ठानी और एक युक्ति निकाली। अग्नि ने कबूतर का रूप धारण किया और इंद्र ने एक बाज का रूप धारण किया। दोनों उड़ते – उड़ते राजा शिवि के राज्य में पहुंचे। उस समय राजा शिवि एक धार्मिक यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे थे। कबूतर उड़ते – उड़ते आर्तनाद करता हुआ राजा शिवि की गोद में आ गिरा और मनुष्य की भाषा में बोला – “ राजन ! मैं आपकी शरण आया हूँ, मेरी रक्षा कीजिये।”

थोड़ी ही देर में कबूतर के पीछे – पीछे बाज भी वहां आ पहुंचा और बोला – “राजन ! निसंदेह आप धर्मात्मा और परोपकारी राजा है। आप कृतघ्न को धन से, झूठ को सत्य से, निर्दयी को क्षमा से और क्रूर को साधुता से जीत लेते है, इसलिए आपका कोई शत्रु नहीं इसलिए आप अजातशत्रु नाम से प्रसिद्ध है। आप अपकार करने वाले का भी उपकार करते है, आप दोष खोजने वालों में भी गुण खोजते है। ऐसे महान होकर आप यह क्या कर रहे है? मैं क्षुधा से व्याकुल होकर भोजन की तलाश में भटक रहा था। तभी संयोग से मुझे यह पक्षी मिला और आप इसे शरण दे रहे है। यह आप अधर्म कर रहे है। कृपा करके यह कबूतर मुझे दे दीजिये। यह मेरा भोजन है।” इतने में कबूतर बोला – “ शरणार्थी की प्राण रक्षा करना आपका धर्म है । अतः आप इस बाज की बात कभी मत मानिये। यह दुष्ट बाज मुझे मार डालेगा।” दोनों की बात सुनकर राजा शिवि बाज से बोले – “हे बाज ! यह कबूतर तुम्हारे भय से भयभीत होकर मेरी शरण आया है, अतः यह मेरा शरणार्थी है। मैं अपनी शरण आये शरणार्थी का त्याग कैसे कर सकता हूँ ? जो मनुष्य भय, लोभ, ईर्ष्या, लज्जा या द्वेष से शरणागत की रक्षा नहीं करते या उसे त्याग देते हैं उन्हे ब्रह्महत्या के समान पाप लगता है। सभी जीवों को अपने प्राण प्रिय होते हैं। समर्थ और बुद्धिमान मनुष्यों को चाहिए कि असमर्थ व मृत्युभय से भयभीत जीवों की रक्षा करें। अतः हे बाज ! मृत्यु के भय से भयभीत यह कबूतर मैं तुझे नहीं दे सकता। इसके बदले तुम जो चाहो खाने के लिए मांग सकते हो। मैं तुझे वह अभीष्ट वस्तु देने को तैयार हूँ।” तब बाज बोला – “हे राजन ! मैं क्षुधा से पीड़ित हूँ । आप तो जानते ही है, भोजन से ही जीव उत्पन्न होता है और बढ़ता है। यदि मैं क्षुधा से मरता हूँ तो मेरे बच्चे भी मर जायेंगे। आपके एक कबूतर को बचाने से कई जीवों के प्राण जाने की संभावना है। हे राजन ! आप ऐसे कैसे धर्म का अनुसरण कर रहे है जो अधर्म को जन्म देने वाला है। बुद्धिमान मनुष्य उसी धर्म का अनुसरण करते है जो दूसरे धर्म का हनन न करें। आप अपने विवेक के तराजू से तोलिये और जो धर्म आपको अभीष्ट हो वह मुझे बताइए।” राजा शिवि बोले – “ हे बाज ! भय से व्याकुल हुए शरणार्थी की रक्षा करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। जो मनुष्य दया और करुणा से द्रवित होकर जीवों को अभयदान देता है, वह देह के छूटने पर सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है। धन, वस्त्र, गौ और बड़े बड़े यज्ञों का फल यथासमय नष्ट हो जाता है किन्तु भयाकुल प्राणी को दिया अभयदान कभी नष्ट नहीं होता। अतः मैं अपने सम्पूर्ण राज्य और इस देह का त्याग कर सकता हूँ, परन्तु इस भयाकुल पक्षी को नहीं छोड़ सकता।” हे बाज ! तुझे आहार ही अभीष्ट है सो जो चाहो सो आहार के लिए मांग लो।” बाज बोला – “ हे राजन ! प्रकृति के विधान के अनुसार कबूतर ही हमारा आहार है, अतः आप इसे त्याग दीजिये।“ राजा बोला – “ हे बाज ! मैं भी विधान के विपरीत नहीं जाता । शास्त्र कहता है दया धर्म का मूल है, परोपकार पूण्य है और दूसरों को पीड़ा देना पाप है। अतएव तुम जो चाहो सो दे सकता हूँ, परन्तु ये कबूतर नहीं दे सकता।”

तब बाज बोला – “ठीक है राजन ! यदि आपका इस कबूतर के प्रति इतना ही प्रेम है तो मुझे ठीक इसके बराबर तोलकर अपना मांस दे दीजिये, जिससे मैं अपनी क्षुधा शांत कर सकूं। मुझे इससे अधिक और कुछ नहीं चाहिए ”। प्रसन्न होते हुए राजा शिवि ने कहा – “हे बाज ! तुम जितना चाहो, उतना मांस मैं देने को तैयार हूँ। यदि यह क्षणभंगुर देह धर्म के काम न आ सके तो इसका होना व्यर्थ है।” यह कहकर राजा ने तराजू मंगवाया और उसके एक पलड़े में कबूतर को बिठा दिया और दुसरे पलड़े में वह अपना मांस काटकर रखने लगे। लेकिन कबूतर का पलड़ा जहां का तहां ही रहा। तब अंत में राजा शिवि स्वयं उस पलड़े में बैठ गये और बोले – “हे बाज ! ये लो मैं तुम्हारा आहार तुम्हारे सामने बैठा हूं।” इतने में आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी, मृदंग बजने लगे। स्वयं भगवान अपने भक्त के इस अपूर्व त्याग को देखकर प्रसन्न हो रहे थे। यह देखकर राजा शिवि विस्मय से सोचने लगे कि इस सबका क्या कारण हो सकता है ? इतने मैं वह दोनों पक्षी अंतर्ध्यान हो गये और अपने असली रूप में प्रकट हो गये। इंद्र ने कहा – “ हे राजन ! आपके जैसा धर्म परायण और त्यागी मैंने कभी नहीं देखा। मैं इंद्र हूँ जो बाज बना था और ये अग्नि देव हैं जो कबूतर बने थे। हम दोनों तुम्हारे त्याग की परीक्षा लेने आये थे।

नफरत-नफरत-नफरत… का जवाब

श्रीराम का मानवमात्र से प्रेम 

राहुल गांधी आपने रामायण पढ़ी या नहीं पढ़ी हमें नहीं मालूम मगर रामानंद सागर का शायद सीरियल जरूर देखा होगा। जिस राम को उनकी सौतेली मां 14 साल का वनवास दे देती है वो उस मां से भी नफरत नहीं करता। वह अपने पिता से भी नफरत नहीं करता। वह अपने भाई भरत से भी नफरत नहीं करता। वह प्राणी-मात्र से प्रेम करता है। सबरी के झूठे बेर खाता है। वन्य प्राणियों से मित्रता करता है। ऐसे श्रीराम की कहानी से तुम्हें क्या वास्ता…तुमने जब हिंदुओं के बारे में कहा कि नफरत-नफरत-नफरत…तब हमें श्रीराम का उदाहरण देना पड़ा। शायद नफरत के खिलाफ श्रीराम का हिंदू राजा के रूप में उदाहरण आपके लिए काफी होगा।

असत्य-असत्य-असत्य… का जवाब 

राजा हरिश्चंद्र सत्य के लिए जिसके नाम की लोग कसमें खाते हैं

राहुल गांधी आपने हिंदू समाज के बारे में कहा कि असत्य-असत्य-असत्य…भलेही यह बात आपने एक पार्टी के लिए कही होगी, मगर आज हिंदू की बात करने वाली एक पार्टी नहीं कई विचारशील लोग भी है, कई संत हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं, आप किस-किस को असत्य-असत्य-असत्य का दोषारोपण करोगे। जिस देश में राजा हरिश्चंद्र की कहानियां सत्यवादी के रूप में सुनाई जाती है। जिस देश में सत्य के नाम पर राजा हरिश्चंद्र की कसमें खाई जाती है। उसे देश में जिसमें राजा सत्य के लिए हर कुर्बानी दे देता है। उस देश में हिंदू समाज के लिए आप यह कहते हैं कि असत्य-असत्य-असत्य…हो सकता है आपने यह बात केवल और केवल भाजपा और आरएसएस के लिए कही हो…क्या आप और आपकी पार्टी राजा हरिश्चंद्र से भी ऊंची हो गई है जो इतने बड़े समाज और इतनी बड़ी पार्टी के लिए इतने बड़बोले बोल बोल गए। धिक्कार है राहुल गांधी, बड़ों की इज्जत करना तो आपने सीखा ही नहीं। जो व्यक्ति संसद में आंख मार सकता है। जो देश के प्रधानमंत्री को चौकीदार चौर कह सकता है। जिसे अपनी वाणी पर संयम नहीं है। जिसे अपने देश की महान परंपराओं पर गर्व नहीं। उस व्यक्ति से हिंदू समाज ही नहीं देश की बड़ी पार्टी के बारे में ऐसी टिप्पणी नहीं करने की बात सोचना भी बेमानी होगी। क्योंकि राजनीति में इस व्यक्ति ने अपने गरिमा को इतना गिरा दिया है। न तो इस व्यक्ति का अपनी भाषा पर नियंत्रण है न इसे भान है कि वह किसके बारे में क्या टिप्पणी कर रहा है। जिस ईसा मसीह के बारे में वह बात करता है। उसने सूली पर चढ़ते समय कहा था कि हे भगवान माफ करना ये लोग नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं…हिंदू समाज के बारे में भी हम कहना चाहेंगे हे भगवान माफ करना राहुल इस देश के बहुसंख्य लोगों के बारे में क्या कह गया उसे भान नहीं है…।

राहुल गांधी सावधान-

हिंदू धर्म हजारों सालों से जीवित है, जीवित रहेगा, आपने इसे गाली दी है, सत्ता सुख के सपने ही देखना…

राहुल गांधी आपका काम हिंदू को गाली देना ही रह गया है। आपके पूर्वजों ने हिंदुओं के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की और आपकी पार्टी ने हिंदुओं के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की। तो सुनो हिंदू क्या है। हिंदू धर्म क्या है। पूरी बात विस्तार से…हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जो हज़ारों सालों से जीवित है। यह एक ऐसी परंपरा है जो भारतीय उपमहाद्वीप में जन्मी और जिसने भारतीय संस्कृति को आकार दिया। हिंदू धर्म न केवल एक धर्म है बल्कि बहुसंख्यक भारतीयों की एक अभिन्न पहचान भी है। लेकिन हिंदू धर्म एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ अक्सर बहुत से लोग, जिनमें खुद को ‘हिंदू’ कहने वाले लोग भी शामिल हैं, नहीं समझ पाते। कुछ लोग इसे धर्म कहते हैं तो कुछ इसे जीवन जीने का तरीका बताते हैं। तो फिर हिंदू धर्म का सही अर्थ क्या है? दरअसल हिंदू धर्म एक “जीवन पद्धति” के रूप में कैसे शुरू हुआ और एक “धर्म” के रूप में कैसे विकसित हुआ। हिंदू धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। हिंदू धर्म की शुरुआत कब हुई, इस सवाल का कोई निश्चित जवाब नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसका इतिहास 4000 साल से भी पुराना है। आज दुनिया के लगभग हर कोने में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हैं, जिनमें से 90% भारत में हैं। अनुयायियों की बात करें तो 900 मिलियन अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म ईसाई और इस्लाम के बाद तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इसके साथ ही संस्कृत भाषा का हिंदू धर्म के विकास से खास संबंध है, जिसने हिंदू धर्म की आस्था प्रणाली को फैलाने में अहम भूमिका निभाई। ऐसा माना जाता है कि प्रोटोइंडोआर्यन और प्रोटोइंडोयूरोपियन भाषाओं का विकास संस्कृत से ही हुआ है। आइए ‘हिंदू’ शब्द की उत्पत्ति को समझते हैं।

हिन्दूशब्द की उत्पत्ति

हिंदू शब्द उत्तरी भारत में बहने वाली नदी सिंधु से लिया गया है। प्राचीन काल में इस नदी को सिंधु नदी के नाम से जाना जाता था, लेकिन जब फारसी लोग भारत आए तो उन्होंने इसे हिंदू कहा और हिंदुस्तान की धरती पर रहने वाले लोगों को हिंदू कहा। इसी तरह, ‘हिंदू’ शब्द छठी शताब्दी ईसा पूर्व में अस्तित्व में आया, जो सांस्कृतिक संप्रदाय के बजाय भौगोलिक भूभाग को संदर्भित करता था। धार्मिक संप्रदाय को परिभाषित करते समय हिंदू धर्म शब्द का उल्लेख पहली बार चीनी ग्रंथ ‘रिकॉर्ड ऑफ द वेस्टर्न रीजन्स’ में मिलता है। लेकिन यह भी माना जाता है कि धार्मिक प्रथाओं या मान्यताओं का वर्णन करने के लिए अंग्रेजी शब्द हिंदू धर्म इतना पुराना नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इसका पहली बार इस्तेमाल राजाराम मोहन राय ने वर्ष 1816-17 में किया था। इसके बाद 1830 के आसपास ब्रिटिश उपनिवेशवाद का विरोध करने और दूसरे धार्मिक समूहों से अलग दिखने के लिए भारतीयों के एक संप्रदाय ने खुद को हिंदू और ‘हिंदू धर्म’ को अपना धर्म कहना शुरू कर दिया। यह वह समय था जब हिंदू अपनी पहचान की तलाश में थे।

हिंदू धर्म की शुरुआत कैसे हुई?

हिंदू अपने धर्म को सनातन धर्म कहते हैं और ईसाई धर्म और इस्लाम की तरह हिंदू धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है और इसकी उत्पत्ति दर्ज इतिहास से भी पुरानी मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता में कुछ ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो या तो हिंदू धर्म का हिस्सा हैं या फिर उस पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरण के लिए, आदि शिव मुहर, मातृदेवी की टेराकोटा मूर्तियाँ, स्वास्तिक, जानवरों की पवित्र छवियां आदि जो आज हिंदू धर्म का हिस्सा हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि किसी न किसी तरह से हिंदू धर्म उस समय से अस्तित्व में था। ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म की शुरुआत वैदिक संस्कृति से ही संगठित रूप से हुई थी। क्योंकि इसी समय हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ वेदों की उत्पत्ति हुई थी, इसका मतलब है कि हिंदू धर्म का पहला साहित्यिक साक्ष्य हमें वैदिक काल में मिलता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि हिंदू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है और इसकी उत्पत्ति की कोई निश्चित तिथि भी नहीं है। लेकिन कुछ मूल मान्यताएं हैं जो हिंदू धर्म को परिभाषित कर सकती हैं। आइए उन्हें जानते हैं। हिंदू धर्म एक संगठित धर्म नहीं है क्योंकि इसमें व्यवस्थित रूप से जुड़े मूल्य या आज्ञाएं नहीं हैं। हिंदू धर्म की मान्यताएँ स्थानीय, क्षेत्रीय, जाति या समुदाय द्वारा संचालित प्रथाओं से प्रभावित होती हैं। फिर भी कई मान्यताएं सभी रूपों में समान हो सकती हैं, ये मूल मान्यताएं हैं। सबसे पहले, हिंदू ब्रह्म (परमात्मा) की अवधारणा में विश्वास करते हैं। कर्म की अवधारणा के अलावा, ‘आत्मा’ (आत्मा) की अवधारणा, ‘पुनर्जन्म’ (पुनर्जन्म) की अवधारणा और ‘मोक्ष’ हिंदू धर्म की केंद्रीय विश्वास प्रणाली का हिस्सा हैं। आत्मा की अवधारणा कहती है कि सभी जीवित प्राणियों में आत्मा होती है जो ईश्वर का एक रूप है। हिंदू धर्म में कर्म की अवधारणा बहुत महत्वपूर्ण है, यह कहती है कि लोगों के कर्म उनके वर्तमान और भविष्य के जीवन को निर्धारित करते हैं। हिंदू धर्म में जीवन के चार उद्देश्य हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मोक्ष प्राप्त करने के बाद, जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है और आत्मा (आत्मा) ‘परमात्मा’ में समाहित हो जाती है। योग, जिसका अर्थ है ईश्वर से मिलन, हिंदू धर्म का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। चाहे लोग हिंदू धर्म के बारे में न जानते हों, लेकिन वे योग के बारे में जानते हैं। 2015 से, यह और अधिक प्रसिद्ध हो गया जब 21 जून को हर साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है और लोग अब शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए इसके वास्तविक लाभ को समझते हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में एक सर्वोच्च सत्ता पर विश्वास किया जाता है। सर्वोच्च सत्ता का मतलब है ‘ब्रह्म’ की अवधारणा निराकार ईश्वर, परम सत्य और ब्रह्मांड में मौजूद सर्वव्यापी ऊर्जा को संदर्भित करती है। इसके साथ ही हिंदू धर्म में कहा जाता है कि यह अलग-अलग रूपों में हो सकता है और यहीं से बहुदेववाद की अवधारणा आती है। हिंदू धर्म के अनुसार, सब कुछ ईश्वर का एक रूप है और ये रूप और ‘अवतार’ लोगों के कल्याण के लिए लिए जाते हैं। इसके साथ ही हिंदू ‘प्रकृति’ की भी पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में पौधे से लेकर जानवर तक, सबकी पूजा की जाती है। प्रकृति पूजा के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा करने की अवधारणा है और हम सभी जानते हैं कि यह पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन देता है। इसका मतलब है कि हिंदू धर्म के अनुयायी इस पेड़ के महत्व को समझते थे। इसी तरह औषधीय महत्व रखने वाले तुलसी के पौधे और आंवले की भी पूजा की जाती है। कोरोना के समय में जब विटामिन सी को अच्छे तरीके से लेने की सलाह दी जा रही है, हम सभी ने पर्याप्त मात्रा में आंवला लेना शुरू कर दिया है। आयुर्वेद इसे सुपरफूड कहता है और इसे रोजाना लेने की सलाह देता है। वैदिक काल में जहां इंद्र को प्रमुख देवता के रूप में पूजा जाता था, वहीं बाद के काल में त्रिदेवों की अवधारणा विकसित हुई। इसके अनुसार, तीन प्रमुख देवता हैं। ब्रह्मा निर्माता, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारक। हिंदू धर्म में, देवी शक्ति के रूप में स्त्री ऊर्जा की भी पूजा की जाती है। किसी भी अन्य प्रमुख धर्म में, स्त्री रूप में भगवान की पूजा करने की कोई अवधारणा नहीं है। इसके अलावा कई देवी-देवता हैं जो कई विशेषताओं से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, भगवान गणेश को विघ्नहर्ता यानी ‘विघ्नहर्ता’ कहा जाता है और देवी सरस्वती ‘ज्ञान की देवी’ हैं। जिस तरह ‘बाइबिल’ और ‘कुरान’ में हिंदू धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, उसी तरह हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई एक ग्रंथ नहीं है। लेकिन हिंदू धर्म में कई ग्रंथों को पवित्र माना जाता है। इनमें सबसे प्राचीन चार वेद हैं, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। हिंदू दर्शन के अनुसार, ये शाश्वत सत्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसे भगवान ने ऋषियों को बताया था। इसके अलावा उपनिषद, पुराण, महाकाव्य जैसे ‘रामायण’, ‘महाभारत’ और ‘भगवद गीता’ हिंदू धर्म की प्रमुख पवित्र पुस्तकें हैं। अन्य धर्मों की तरह, हिंदू धर्म में भी विभिन्न संप्रदाय हैं। हिंदू धर्म में चार प्रमुख संप्रदाय हैं, वैष्णव, शैव, स्मार्त और शाक्त। वैष्णव ‘भगवान विष्णु’ की पूजा करते हैं, शैव ‘भगवान शिव’ की पूजा करते हैं, शाक्त ‘देवी शक्ति’ की पूजा करते हैं जबकि स्मार्त पांच देवताओं की पूजा करते हैं, जिन्हें ‘सर्वोच्च प्राणी’ माना जाता है। इसके अलावा संप्रदाय और उप-संप्रदाय भी हिंदू धर्म का हिस्सा हैं। हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदाय किसी भी तरह की हिंसा से मुक्त हैं इसके पीछे कारण यह है कि सभी संप्रदायों की मूल मान्यताएं एक जैसी हैं और वे दार्शनिक आधार पर एक-दूसरे का विरोध नहीं करते। सभी संप्रदाय एक-दूसरे के अस्तित्व को सहजता से स्वीकार करते हैं क्योंकि ‘सहिष्णुता’ हिंदू धर्म की मूल मान्यता है।

हिंदू सामाजिक व्यवस्था का विकास 

‘ऋग्वेद’ के ‘पुरुषसूक्त’ में उद्भूत ‘वर्ण व्यवस्था’ हिन्दू धर्म में सामाजिक व्यवस्था का आधार है। इसके अनुसार समाज चार वर्णों में विभाजित है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यह विभाजन कर्म के आधार पर था, जिसमें बौद्धिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में लगे लोगों को ब्राह्मण कहा जाता था, जनता की रक्षा के लिए काम करने वालों को क्षत्रिय कहा जाता था, कुशल उत्पादकों को वैश्य कहा जाता था और अकुशल मजदूरों को शूद्र कहा जाता था। आगे चलकर यह व्यवस्था कठोर होती चली गई और कालांतर में जन्म के आधार पर वर्ण का निर्धारण होने लगा, कई वर्गों को वर्ण से बाहर रखा गया और उन्हें अछूत माना गया। इतना पुराना होने के बावजूद भी हिंदू धर्म आज भी जीवित है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि समय-समय पर हिंदू धर्म में सुधार लाए गए और उसे पुनर्जीवित किया गया। फिर चाहे वह दक्षिण भारतीय ‘भक्ति आंदोलन’ हो या अलग-अलग आचार्यों द्वारा। भक्ति आंदोलन के दौरान ‘अलवार’ और नयनार के संतों ने कठोर जाति व्यवस्था को चुनौती दी। अलवार और नयनार द्वारा किए गए भक्ति आंदोलन जैसे हिंदू धर्म में सुधारों ने हिंदुओं को आज तक जीवित रहने में सक्षम बनाया है। समय के साथ-साथ हिंदू धर्म ने स्थानीय पंथों और देवताओं को अपने में समाहित कर लिया, चाहे वह ‘नाग पंथ’ हो, ‘यक्ष-यक्षिणी’ पंथ हो या फिर आदिवासी देवता माने जाने वाले प्रसिद्ध ‘जगन्नाथ पुरी’ हों। धीरे-धीरे सभी हिंदू पंथ का हिस्सा बन गए, यहां तक ​​कि बुद्ध को भी भगवान विष्णु का रूप बताया गया। हिंदू धर्म की चर्चा हो और ‘आदि शंकराचार्य’ का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। 8वीं शताब्दी में ‘आदि शंकराचार्य’ ने हिंदू धर्म को मान्यता देना शुरू किया और ‘अद्वैत दर्शन’ दिया। इसके अनुसार केवल ब्रह्म ही सत्य है और अन्य चीजें उसकी रचना हैं। शंकराचार्य ने हिंदू दर्शन को पूरे देश में लोकप्रिय बनाया। उन्होंने चार कोनों पर चार मठ भी स्थापित किए- श्रृंगेरी में ‘शारदा पीठ’, द्वारिका में ‘कालिका पीठ’, बद्रिकाश्रम में ‘ज्योति पीठ’ और जगन्नाथ पुरी में ‘गोवर्धन पीठ’। इन्हें हिंदू धर्म के चार धाम कहा जाता है। इस तरह उन्होंने हिंदू धर्म के अनुयायियों को भौगोलिक रूप से भी जोड़ा। उन्होंने ‘पंचायतना’, जिसका अर्थ है पांच देवताओं की पूजा भी लोकप्रिय की। जिसमें पांच देवताओं, ‘गणेश’, ‘शिव’, ‘विष्णु’, ‘सूर्य’ और ‘शक्ति’ की एक साथ पूजा की जाती है। इसमें कहा गया है कि ये सभी ब्रह्म (परमात्मा) के विभिन्न रूप हैं। इस तरह शंकराचार्य ने विभिन्न संप्रदायों को भी एकजुट किया। ‘शंकराचार्य’ के अलावा ‘रामानुज’ और ‘माधवाचार्य’ हिंदू धर्म के दो अन्य महत्वपूर्ण सुधारक और सूत्रधार थे। इसके अलावा, ‘निर्गुण’ और ‘सगुण’ संतों ने भी चुनौतीपूर्ण मध्यकाल के दौरान हिंदू धर्म को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें ‘रामानंद’, ‘कबीर’, ‘नानक’, ‘मीराबाई’ और ‘तुलसीदास’ प्रसिद्ध संत थे जिनकी भूमिकाएँ महत्वपूर्ण थीं। अगर आधुनिक काल की बात करें तो ‘राजा राम मोहन राय’, ‘स्वामी दयानंद सरस्वती’ और ‘स्वामी विवेकानंद’ ने फिर से हिंदू धर्म को गौरवान्वित किया। 19वीं सदी में इन सामाजिक-धार्मिक सुधारकों की वजह से ईसाई मिशनरियाँ हिंदुओं को धर्मांतरित करने में उतनी सफल नहीं हो पाईं जितनी वे अफ्रीका या अन्य उपनिवेशों में थीं। स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में एक प्रभावशाली भाषण देकर हिंदू धर्म को लोकप्रिय बनाया। स्वामी जी के भाषण पर टिप्पणी करते हुए एक अमेरिकी अखबार ने लिखा, ‘ऐसे समृद्ध धार्मिक पारंपरिक देश में ईसाई मिशनरियों को भेजने की क्या आवश्यकता है?’ समय-समय पर धर्म सुधार के लिए हिंदू धर्म ग्रंथों ने भी समर्थन दिया है। हिंदू दर्शन में भी कहा गया है कि जब-जब धर्म संकट में आता है, तब-तब भगवान स्वयं उसकी रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। इसलिए इन सुधार आंदोलनों को हिंदू दर्शन द्वारा भी उचित ठहराया जा सकता है। हिंदू धर्म इतने लंबे समय तक जीवित रहने में कामयाब रहा है क्योंकि इसने खुद को अनुकूलित किया है और कभी स्थिर नहीं रहा। अथर्ववेद में सनातन शब्द की व्याख्या भी कुछ इस तरह की गई है- “सनातनं एनं आहु उता अद्यः स्यात् पुनर्नवाः” अर्थात “वे उसे शाश्वत बताते हैं। लेकिन वह आज भी नया हो सकता है”। विविधता हिंदू धर्म की सबसे अनूठी विशेषता है।

हिंदू धर्मविविधता में एकताकी अवधारणा को किस प्रकार समाहित करता है?

हिंदू धर्म में अनेक भगवान, धर्मग्रंथ, धार्मिक प्रथाएं आदि हैं, फिर भी हिंदू धर्म के अनुयायी एक निश्चित एकता दर्शाते हैं, क्योंकि हिंदू दर्शन इतना लचीला है कि वह सभी विचारों को स्वीकार करता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि रास्ते भले ही अलग-अलग हों, लेकिन मंजिल सबकी एक ही है। हिंदू धर्म अन्य धर्मों को भी सत्य मानता है। हिंदू धर्म में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है कि हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्म ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता नहीं हो सकते। हिंदू धर्म अन्य धर्मों का सम्मान करता है और अन्य मार्गों के प्रति सहिष्णु है, हिंदू धर्म में जबरन धर्म परिवर्तन की कोई अवधारणा नहीं है। हिंदू धर्म के इतिहास में धर्म के नाम पर अन्य धर्मों के खिलाफ कोई युद्ध नहीं हुआ। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के दर्शन के साथ हिंदू धर्म सभी की भलाई के बारे में सोचता है। हिंदू धर्म में सभी मनुष्यों के जन्म के बराबर की अवधारणा भी है। यह हमें एक प्राचीन सूक्त से स्पष्ट रूप से पता चलता है, “अज्येष्ठसो अकनिष्ठसो एते संभ्रातरो वहदुः सौभाग्य”, जिसका अर्थ है ‘न कोई श्रेष्ठ है, न कोई निम्न। सभी भाई हैं जो समृद्धि की ओर अग्रसर हैं।’ यही कारण है कि चाहे आप शिव की पूजा करते हों या कृष्ण की, चाहे आप शक्ति के भक्त हों और चाहे आप किसी की भी पूजा न करते हों फिर भी आप अपने आप को हिंदू कह सकते हैं। हिंदू होने के लिए न तो भगवान की पूजा करना अनिवार्य है, न ही किसी मंदिर में जाना, यहां तक ​​​​कि किसी प्राचीन ग्रंथ का अध्ययन करना भी अनिवार्य नहीं है। हिंदू धर्म सभी को अपना मानता है। अगर आप खुद को हिंदू मानते हैं तो आप हिंदू हैं फिर चाहे कितनी भी विविधता क्यों न हो, हिंदू धर्म आपको अपने 900 मिलियन अनुयायियों के साथ जोड़ता है। जैसा कि हमने देखा कि हिंदू धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, न ही कोई एक ग्रंथ है और न ही अन्य धर्मों की तरह कोई एक ईश्वर है। इसलिए हिंदू धर्म को पारंपरिक रूप से समझना मुश्किल है। हिंदू धर्म एक धर्म से ज़्यादा एक जीवन शैली है। लेकिन समय के साथ अन्य धर्मों का विकास शुरू हुआ और इन सभी ने हिंदू जीवन शैली को चुनौती दी, इसका मुकाबला करने और इसकी प्रतिस्पर्धा में हिंदू धर्म एक धर्म के रूप में विकसित होने लगा। हिंदू धर्म में धर्म को “सनातन धर्म” कहा जाता है और धर्म की परिभाषा धर्म से अलग है। धर्म नियमों का एक समूह है, सनातन धर्म वे नियम हैं जो अनंत काल से मान्य हैं।

हिंदू धर्म कालातीत है 

हिंदू धर्म की शुरुआत कैसे और कब हुई? जबकि हिंदू धर्म में ऐतिहासिक विद्वानों, ऋषियों और शिक्षकों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस धर्म का कोई ऐतिहासिक संस्थापक नहीं है, यीशु, बुद्ध, अब्राहम या मुहम्मद के बराबर कोई व्यक्ति नहीं है। परिणामस्वरूप, हिंदू धर्म की उत्पत्ति की कोई निश्चित तिथि भी नहीं है। हिंदू धर्म के सबसे पुराने ज्ञात पवित्र ग्रंथ, वेद, कम से कम 3000 ईसा पूर्व के हैं, लेकिन कुछ लोग उन्हें इससे भी पहले, 8000-6000 ईसा पूर्व का मानते हैं; और कुछ हिंदू खुद मानते हैं कि ये ग्रंथ ईश्वरीय उत्पत्ति के हैं, और इसलिए कालातीत हैं। इससे संबंधित, यहां यह उल्लेख करना उचित है कि कोई निर्दिष्ट धार्मिक पदानुक्रम नहीं है जो आधिकारिक हिंदू सिद्धांत या अभ्यास निर्धारित करता है। इस प्रकार, कोई भी ऐसा नहीं है जो समग्र रूप से हिंदुओं के लिए बोल सके, और इस बारे में कोई एकल प्राधिकरण नहीं है कि कौन “सच्चा” हिंदू है या नहीं। फिर भी, नीचे सिद्धांतों की एक सूची दी गई है, जो अभ्यासी सर्वसम्मति से, किसी को “हिंदू” के रूप में चिह्नित करते हैं।

  • वेदों की दिव्यता में विश्वास
  • एक, सर्वव्यापी सर्वोच्च वास्तविकता में विश्वास
  • समय की चक्रीय प्रकृति में विश्वास
  • कर्म में विश्वास
  • पुनर्जन्म में विश्वास
  • उच्चतर सत्ताओं के साथ वैकल्पिक वास्तविकताओं में विश्वास
  • प्रबुद्ध स्वामी या गुरुओं में विश्वास
  • अहिंसा और अहिंसा में विश्वास
  • यह विश्वास कि सभी प्रकट धर्म मूलतः सत्य हैं
  • यह विश्वास कि जीव सर्वप्रथम एक आध्यात्मिक इकाई है
  • एक “जैविक सामाजिक व्यवस्था” में विश्वास। (स्टीवन रोसेन, एसेंशियल हिंदूइज्म, )

हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ

हिंदू धर्म में ऐसा कोई एकल, आधिकारिक ग्रंथ नहीं है जो ईसाइयों के लिए बाइबिल या मुसलमानों के लिए कुरान की तरह काम करता हो। इसके बजाय, ग्रंथों के कई अलग-अलग संग्रह हैं। वेद सबसे पुराने हिंदू पवित्र ग्रंथ हैं, और उनके पास सबसे व्यापक अधिकार हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्हें 1800 से 1200 ईसा पूर्व के बीच कहीं लिखा गया था। उपनिषद हिंदू धर्म के अभ्यास के लिए एक अधिक दार्शनिक और सैद्धांतिक दृष्टिकोण का वर्णन करते हैं और मोटे तौर पर 800 और 400 ईसा पूर्व के बीच लिखे गए थे, लगभग उसी समय जब बुद्ध रहते थे और शिक्षा देते थे। महाभारत दुनिया की सबसे लंबी महाकाव्य है, जिसका सबसे प्रसिद्ध भाग भगवद-गीता है , जो शायद हिंदू धर्म में सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से उद्धृत पुस्तक है; रामायण हिंदू धर्म में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य है।

हिंदू धर्म में देवता

हिंदू धर्म में ईश्वर की एक समृद्ध, विस्तृत समझ शामिल है, जिसमें गतिशील और बहुआयामी अवधारणाओं की एक विशाल विविधता शामिल है। हिंदू धर्म ईश्वर को एक या अनेक के रूप में नहीं, बल्कि दोनों के रूप में देखता है; पुरुष या स्त्री नहीं, बल्कि दोनों के रूप में; निराकार या मूर्त नहीं, बल्कि दोनों के रूप में। हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से कुछ हैं विष्णु, शिव, गणेश, कृष्ण, सरस्वती, दुर्गा और काली। परिणामस्वरूप, इन असंख्य देवताओं का सम्मान करने और उन्हें मनाने के लिए दर्जनों हिंदू त्यौहार हैं। कुछ पूरे भारत में मनाए जाते हैं, और कई मुख्य रूप से क्षेत्रीय हैं। वे विशिष्ट मौसमों, विभिन्न देवी-देवताओं के जीवन में विशिष्ट घटनाओं और जीवन की विशिष्ट चिंताओं – धन, स्वास्थ्य, प्रजनन क्षमता आदि को चिह्नित करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे प्रसिद्ध दो त्यौहार दिवाली और होली हैं । दिवाली , रोशनी का त्यौहार जो अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है, धन और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का सम्मान करता है, और लगभग चार से पांच दिनों तक चलता है। परिवार अक्सर इस समय मंदिर जाते हैं और वहां लक्ष्मी को प्रसाद चढ़ाते हैं, लेकिन वे घर पर भी पूजा करते हैं, शायद लक्ष्मी के लिए अपने घर की वेदी पर एक विशेष स्थान भी बनाते हैं। घर में उनका स्वागत करने के लिए दरवाजे खुले छोड़ दिए जाते हैं, और उत्सव की पूरी अवधि बहुत खुशी का समय होता है, जिसमें हिंदू अपने घरों को रोशनी से भर देते हैं। होली पूरे भारत में बहुत ही उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। यह वसंत के आगमन का संकेत है और मुख्य रूप से बाहर घूमने वाले किसी भी व्यक्ति पर रंग और पानी फेंककर मनाया जाता है। इसे भी कई दिनों तक मनाया जाता है।

हिंदू पूजा

हिंदुओं के लिए, कोई साप्ताहिक पूजा सेवा नहीं है, कोई निर्धारित दिन या समय नहीं है जिसमें समुदाय को सार्वजनिक रूप से इकट्ठा होने के लिए बुलाया जाता है। हालाँकि अधिकांश हिंदू नियमित रूप से या कम से कम कभी-कभी प्रार्थना करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए मंदिरों में जाते हैं, लेकिन एक “अच्छे” हिंदू को कभी भी सार्वजनिक रूप से पूजा करने की ज़रूरत नहीं होती है। इसके बजाय, सभी पूजा घर के मंदिर में प्रतीकों के लिए की जा सकती है, यही कारण है कि भारत में घर पूजा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदू पूजा का वर्णन और सारांश करने वाला सबसे अच्छा शब्द पूजा है, जिसका अर्थ है सम्मान, श्रद्धांजलि या पूजा। अधिकांश – यदि सभी नहीं – हिंदुओं के घर में छोटी वेदियाँ होती हैं, जिन पर वे विभिन्न देवताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली तस्वीरें और/या मूर्तियाँ रखते हैं, जिनमें वे देवता भी शामिल हैं जिनके प्रति परिवार विशेष रूप से समर्पित है। प्रत्येक सुबह, परिवार का एक सदस्य, आमतौर पर पिता या माता, वेदी पर एक छोटी पूजा करेंगे । इसमें प्रार्थना करना, दीप जलाना, धूप जलाना, फल और फूल चढ़ाना और घंटी बजाना शामिल हो सकता है। इस पूजा का लक्ष्य सभी पाँच इंद्रियों के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न करना है। मंदिर में पूजा करने में भी काफी कुछ ऐसा ही होता है, हालाँकि वहाँ अनुष्ठान बहुत अधिक विस्तृत होते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवता हर समय मंदिर की छवियों में निवास करते हैं, न कि केवल आमंत्रित किए जाने पर, जैसा कि घर में की जाने वाली पूजा में होता है । मंदिर में पूजा में, पुजारी पूजा करता है , फिर भगवान की ओर से वह लोगों को कुछ लौटाता है, जो उन्होंने पहले प्रसाद के रूप में लाया था – भोजन, फूल, आदि। इसे प्रसाद कहा जाता है, जिसका अर्थ है अनुग्रह, सद्भावना या आशीर्वाद। इस तरह, भक्तों द्वारा आशीर्वाद के रूप में प्रसाद वापस प्राप्त किया जाता है। इसलिए, उदाहरण के लिए, भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े खाए जाते हैं, बालों में फूल पहने जाते हैं, शरीर के चारों ओर धूपबत्ती फैलाई जाती है, पवित्र जल पिया जाता है। ये कुछ परंपराए हैं जिससे हिंदू धर्म और उसकी उपासना को रेखांकित किया जा सकता है।

इलाहाद हाईकोर्ट ने भी कहा-

धर्मांतरण नहीं रोका तो बहसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएंगे

कल ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है कि अगर धर्मांतरण नहीं रोका गया तो देश में बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यक हो जाएगा। इस बात को राहुल गांधी आपकी पार्टी कभी नहीं कहती। क्योंकि आपको अल्पसंख्यकों के वोट चाहिए। भाजपा और आरएसएस ही इस पर बोलती है क्योंकि वह भविष्य के खतरे से वाकिफ है। अब तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कह दिया है कि धर्मांतरण के खतरे मंडरा रहे हैं। तो मिस्टर राहुल गांधी आपके लिए हिंदुओं का विरोध केवल और केवल वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है। आपके मन में हिंदुओं के प्रति नफरत और जहर भरा हुआ है। आप सत्ता और वोटों के लिए किसी भी हद तो जा सकते हो। प्रसिद्ध पत्रकार अरुण शौरी और राजस्थान पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा बहुत पहले हिंदुज्म पर जब लेख लिखते तो हमारे रौंगटे खड़े हो जाते थे। आज हिंदू पर बात करना बेमानी हो गया है। हिंदू पर कोई पत्रकार बोलता है तो उसे मोदी भक्त और गोदी मीडिया कहा जाता है। जबकि हिंदुओं ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। हिंदु समाज ने सबको सरण दी। हिंदुओं ने उसे भी अपना मित्र माना जो शत्रुता की भावना से आया। फिर भी राहुल गांधी आप हिंदुओं को गाली दे रहे हो। यह हिंदू समाज ही है जो आपको सहन कर रहा है। मुबारक हो आपकी राजनीतिक सोच को। ऐसी तुष्टिकरण की राजनीतिक सोच अब हिन्दुस्तान में चलने वाली नहीं है। आज नहीं तो कल हिंदू समाज जागेगा और देश में ही नहीं दुनिया में हिन्दू धर्म की विजयी पताका फहराई जाएगी। हमें उस दिन का इंतजार है। ऐसे राहुल गांधियों से हम हमारे धर्म का दामन नहीं छोड़ सकते।

संसद में ऐसा व्यवहार अशोभनीय 

हिंदुस्तान के संविधान के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन में इस तरह की बात रखना एक सबसे पुरातन पार्टी के सांसद और प्रतिपक्ष नेता को तो क़तई शोभा नहीं देता। क्या वो करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को भड़काना चाहते है?पहले भी हिंदू धर्म के प्रति अनर्गल वक्तव्य दे चुके श्री राहुल गाँधी चुनाव ख़त्म होते ही फिर उसी हिंदू धर्म विरोधी एजेंडे पर काम चालू कर चुके है। इस पार्टी ने सदैव धर्म के नाम पर बाँट कर राज किया है। वस्तुतः अगर बात रोज़गार, व्यवसाय या विकास की करते तो लगता की इनमें कुछ सकारात्मक बदलाव आया है , अन्यथा तो फिर वहीं ढाक के तीन पात। वही एक धर्म के बारे में अनर्गल बोलना, वही बेतुके बयान।

डॉ. शिवदत्त व्यास, ज़िला संयोजक, चिकित्सा प्रकोष्ठ, भाजपा जोधपुर

 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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