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Sunday, April 20, 2025, 5:05 am

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स्वतंत्रता सेनानी पं. ज्येष्ठमल व्यास की पांडुलिपि से हुआ खुलासा : डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत नहीं हत्या की गई थी, उन्हें तीक्ष्ण जहर दिया गया था

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-पंडित व्यास स्वतंत्रता सेनानी थे, उन्होंने जैसलमेर को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्हें जैसलमेर के महारावल ने देश निकाला दिया था, छह माह पहले अलीगढ़ में मिली एक पांडुलिपि में डॉ. मुखर्जी की हत्या का खुलासा हुआ 

राइजिंग भास्कर डॉट कॉम के ग्रुप एडिटर डी.के. पुरोहित की अलीगढ़ से विशेष रिपोर्ट

भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत नहीं हत्या की गई थी। यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है स्वतंत्रता सेनानी पंडित ज्येष्ठमल व्यास की पुरानी पांडुलिपि से। पंडित व्यास अलीगढ़ निवासी थे और उन्होंने जैसलमेर को अपनी कर्मभूमि बनाया था। वे स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें जैसलमेर के महारावल ने देश निकाला दे दिया था। छह महीने पहले इस रिपोर्टर ने अलीगढ़ में पंडित ज्येष्ठमल व्यास के बारे में तहकीकात की तो एक पांडुलिपि 90 वर्षीय रामनरेश पंडवा ने बताई जिसमें पंडित ज्येष्ठमल व्यास के माध्यम से डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत के बारे में चौंकाने वाला खुलासा किया है।

इस पांडुलिपि के एक कटे-फटे पेज पर कुछ अस्पष्ट भाषा में लिखा हुआ मिला है जो पढ़ने में नहीं आ रहा था। विशेषज्ञ से जब इसका अध्ययन करवाया गया तो उसमें लिखा था- मुखर्जी नौ मारियो, विष असर दिखायो, मुखर्जी प्राण गंवायो… 23 जून 1953 नै श्रीनगर री जम्मू अर कसमीर पुलिस री हिरासत में मुखर्जी दौरे सूं नी विष रे असर सूं मरिया…।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। संसद में अपने भाषण में उन्होंने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू कश्मीर की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि ”या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगा”। डॉ. मुखर्जी अपने संकल्प को पूरा करने के लिये 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी थी। जेल में उनकी मृत्यु ने देश को हिलाकर रख दिया और परमिट सिस्टम समाप्त हो गया। उन्होंने कश्मीर को लेकर एक नारा दिया था, “नहीं चलेगा एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान”

1953 में उन्होंने अवैध रूप से राज्य का दौरा करने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सीमा पर गिरफ्तार कर लिया गया।  23 जून 1953 को श्रीनगर में जम्मू और कश्मीर पुलिस की हिरासत में रहते हुए मुखर्जी की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी। जिसका 71 साल बाद खुलासा हुआ है। दरअसल वह समान्य मौत नहीं वरन मर्डर था। एक क्रांतिकारी की मौत को आज तक रहस्य बनाए रखा गया। अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात डॉ. मुखर्जी की माता योग माया देबी ने कहा था-”मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है”

भारत माता के इस वीर पुत्र का जन्म 6 जुलाई 1901 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल में एक शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी के रूप में प्रसिद्ध थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के पश्चात मुखर्जी 1923 में सेनेट के सदस्य बने। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात 1924 में उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। 1926 में उन्होंने इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया जहां लिंकन्स इन से 1927 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए और विश्व का सबसे युवा कुलपति होने का सम्मान प्राप्त किया। मुखर्जी 1938 तक इस पद को सुशोभित करते रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक रचनात्मक सुधार किये तथा इस दौरान ‘कोर्ट एंड काउंसिल ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बैंगलोर’ तथा इंटर यूनिवर्सिटी बोर्ड के सक्रिय सदस्य भी रहे।

कांग्रेस प्रत्याशी और कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें बंगाल विधान परिषद का सदस्य चुना गया, किन्तु कांग्रेस द्वारा विधायिका के बहिष्कार का निर्णय लेने के पश्चात उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया। बाद में डॉ. मुखर्जी स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और निर्वाचित हुए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल किया। नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए समझौते के पश्चात 6 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर से परामर्श लेकर मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की। 1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक डॉ. मुखर्जी भी थे। तत्पश्चात उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। डॉ. मुखर्जी भारत की अखंडता और कश्मीर के विलय के दृढ़ समर्थक थे। उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को भारत के बाल्कनीकरण की संज्ञा दी थी। अनुच्छेद 370 के राष्ट्रघातक प्रावधानों को हटाने के लिए भारतीय जनसंघ ने हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद के साथ सत्याग्रह आरंभ किया। डॉ. मुखर्जी 11 मई 1953 को कुख्यात परमिट सिस्टम का उलंघन करके कश्मीर में प्रवेश करते हुए गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के दौरान ही विषम परिस्थितियों में 23 जून 1953 को उनका स्वर्गवास हो गया था। उनकी मौत नहीं हत्या की गई थी और आज तक यह रहस्य रहस्य ही रहा। एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप में वे अपने मित्रों और शत्रुओं द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे। एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में भारत उन्हें सम्मान के साथ याद करता है। 1937 में मुखर्जी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर बंगाल में विपक्ष के नेता बने। बाद में वे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करके कृषक प्रजा पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बनाई, जिसके तहत उन्हें राज्य का वित्त मंत्री नियुक्त किया गया।

मुखर्जी ने 1942 में बंगाल गठबंधन सरकार में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, उन्होंने प्रांत के गवर्नर को पत्र लिखकर भारतीयों के लिए स्वशासन की मांग की थी। इसके बाद, उन्होंने बंगाल के अकाल से निपटने के लिए किए गए मानवीय प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में वे मुस्लिम लीग के सबसे बड़े विरोधियों में से एक के रूप में उभरे और उन्होंने विभाजन की परियोजना के खिलाफ तथा एकीकृत भारत के समर्थन में कई जोशीले भाषण दिए। मुखर्जी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर पश्चिम बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने अल्पसंख्यकों, क्षेत्रीय भाषाओं और विधानसभा से मुस्लिम लीग की अनुपस्थिति के प्रभाव सहित कई बहसों में हस्तक्षेप किया। स्वतंत्रता के बाद मुखर्जी विपक्ष के एक प्रमुख सदस्य बन गए। 1951 में उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जिसने  अगले वर्ष के संसदीय चुनाव में तीन सीटें जीती और स्वतंत्र भारत में अपनी तरह का पहला मामला था। पार्टी के लक्ष्यों में आर्थिक उदारीकरण और विकेंद्रीकरण, सभी की समानता, हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता देना और भारत का पुनः एकीकरण शामिल था। संसद में अपने कार्यकाल के दौरान मुखर्जी अनुच्छेद 370 के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने  जम्मू और कश्मीर राज्य में केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में भूख हड़ताल की थी। मुखर्जी एक प्रखर शिक्षाविद थे जिन्होंने भारतीय इतिहास और शिक्षा प्रणाली पर लिखा। उनकी उल्लेखनीय कृतियों में आत्मकथात्मक पुस्तक लीव्स फ्रॉम ए डायरी, ब्रिटिश भारत में शिक्षा पर उनका ग्रंथ और भारतीय संघर्ष का एक चरण शामिल है, जिसे अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। 

Rising Bhaskar
Author: Rising Bhaskar


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