दूरी सही ना जाए….
बहुत कुछ छुपा है दिल में मगर
अल्फाज़ समझ ना आए
कहना चाहते हैं लब बहुत कुछ
कैसे बयां करूँ समझ ना आए
गुमशुम सी हैं हसरतें अब
ख्वाब का महल भी टूट गया
झर्जर सी है ख्वाहिश पीड़ा
कहो किसे बतलायें
मन करता है लौट आओ तुम
फिर से कि दिल का गुलशन
हरा भरा हो जाए
करनी है बातें बहुत और
साँझा करोड़ों ज़ज्बात
तोड़ खामोशी की ज़ंजीर
आज तुम्हें बतलाये
ना होना फिर जुदा कभी
ना ओझल इन नज़रों से
दूर रहकर तुमसे अब समझे
अपने प्रिय की दूरी सही ना जाए
हाँ समझना हूँ कलियुग की मीरां
जो मोहन की छवि मन में बिठाये
भक्ति तो उतनी नहीं कर पाऊँगी
प्रीत के गीत गुनगुनाउंगी
तेरी बांसुरी की सुन धुन
दूरी बस सह ना पाऊँगी
प्राण पखेरू उड़े जब
आत्मा से हो परमात्मा का मिलन
यही भाव जताउंगी
हाँ अब दूरी सह ना पाऊँगी…
