(प्रख्यात जैन संत परमपूज्य पंकजप्रभु महाराज का चातुर्मास 17 जुलाई से एक अज्ञात स्थान पर अपने आश्रम में शुरू हुआ। पंकजप्रभु अपने चातुर्मास के दौरान चार माह तक एक ही स्थान पर विराजमान होकर अपने चैतन्य से अवचेतन को मथने में लगे रहेंगे। वे और संतों की तरह प्रवचन नहीं देते। उन्हें जो भी पात्र व्यक्ति लगता है उसे वे मानसिक तरंगों के जरिए प्रवचन देते हैं। उनके पास ऐसी विशिष्ट सिद्धियां है जिससे वे मानव मात्र के हृदय की बात जान लेते हैं और उनसे संवाद करने लगते हैं। उनका मन से मन का कनेक्शन जुड़ जाता है और वे अपनी बात रखते हैं। वे किसी प्रकार का दिखावा नहीं करते। उनका असली स्वरूप आज तक किसी ने नहीं देखा। उनके शिष्यों ने भी उन्हें आज तक देखा नहीं है। क्योंकि वे अपने सारे शिष्यों को मानसिक संदेश के जरिए ही ज्ञान का झरना नि:सृत करते हैं। उनकी अंतिम बार जो तस्वीर हमें मिली थी उसी का हम बार-बार उपयोग कर रहे हैं क्योंकि स्वामीजी अपना परिचय जगत को फिलहाल देना नहीं चाहते। उनका कहना है कि जब उचित समय आएगा तब वे जगत को अपना स्वरूप दिखाएंगे। वे शिष्यों से घिरे नहीं रहते। वे साधना भी बिलकुल एकांत में करते हैं। वे क्या खाते हैं? क्या पीते हैं? किसी को नहीं पता। उनकी आयु कितनी है? उनका आश्रम कहां है? उनके गुरु कौन है? ऐसे कई सवाल हैं जो अभी तक रहस्य बने हुए हैं। जो तस्वीर हम इस आलेख के साथ प्रकाशित कर रहे हैं और अब तक प्रकाशित करते आए हैं एक विश्वास है कि गुरुदेव का इस रूप में हमने दर्शन किया है। लेकिन हम दावे के साथ नहीं कह सकते हैं कि परम पूज्य पंकजप्रभु का यही स्वरूप हैं। बहरहाल गुरुदेव का हमसे मानसिक रूप से संपर्क जुड़ा है और वे जगत को जो प्रवचन देने जा रहे हैं उससे हूबहू रूबरू करवा रहे हैं। जैसा कि गुरुदेव ने कहा था कि वे चार महीने तक रोज एक शब्द को केंद्रित करते हुए प्रवचन देंगे। जैसा कि यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, पृथ्वी, अग्नि, वायु और जल…। तो आज आकाश तत्व पर स्वामीजी के प्रवचन केंद्रित हैं।)
गुरुदेव बोल रहे हैं-
आकाश। आकार में जो अनंत है। जिसका कोई छोर नहीं है। आकाश तत्व के बगैर सृष्टि का निर्माण संभव नहीं था। आकाश तत्व के बगैर शरीर का निर्माण भी संभव नहीं था। आकाश जो शरीर में सूक्ष्म तत्व में समाहित रहता है। मनुष्य शरीर ही नहीं जीव मात्र में आकाश तत्व की प्रधानता है। आकाश अपने आगोश में प्रश्रय देता है- इस जगत को। बाकी के सारे तत्व आकाश तत्व में विचरण करते हैं। आकाश तत्व ही मूल तत्व है और शेष तत्व पृथक अस्तित्व रखते हुए भी आकाश तत्व के अंश है। यह कह सकते हैं आकाश सत्ता है और शेष तत्व उसकी शाखाएं। ये पांचों तत्व मिलकर शरीर का निर्माण करते हैं। इसे ही जगत पंचभूत कहता है। शास्त्रों में जिसे शरीर निर्माण के पंच तत्व कहा गया है। आकाश को मापना संभव नहीं है। आकाश असीमित है। अनंत है। आकाश चांद, तारों और सूर्य का प्रश्रय दाता है। ग्रह नक्षत्र जहां रमण करते हैं। आकाश पिता है। आकाश संरक्षकदाता है। आकाश तत्व जब हम अपने गुणों में धारण करते हैं तो देवत्व जाग उठता है। दरअसल देवताओं में आकाश का गुण होता है। आकाश का विचार जब शरीर में स्वभाव के रूप में प्रवेश कर जाता है तो मनुष्य देवत्व की ओर बढ़ने लगता है। हर देवता आकाश है। मगर आकाश देवता नहीं है। क्योंकि देवता जिसे ईश्वर कहें आकाश से परे सत्ता है। आकाश के पार जो देख सकता है वही ईश्वर है। वही परमसत्ता है।
आकाश हमें जीवन का मकसद देता है। आकाश हमें उड़ान का विकल्प देता है। आकाश हमें स्वतंत्रता देता है। आकाश हमें हौसला देता है। आकाश हमें शक्ति देता है। आकाश हमें भक्ति देता है। आकाश हमें विरक्ति देता है। आकाश हमें साधना देता है। आकाश हमें साधन देता है। आकाश हमें चिंतन देता है। आकाश हमें चरित्र देता है। आकाश हमें उद्देश्य देता है। आकाश हमें परिदृश्य देता है। आकाश हमें अवकाश देता है। आकाश हमें गतिशीलता देता है। आकाश हमें निरंतरता देता है। आकाश हमें आकार देता है। आकाश हमें उदारता देता है। आकाश हमें विस्तार देता है। आकाश देता ही देता है। आकाश का गुण आकाश में ही समाहित है। आकाश कभी कभी भ्रम लगता है। क्योंकि आकाश के विस्तार को, आकाश की अनंतता को हम देख नहीं पाते। कहते हैं आशा पर आकाश टिका है। यही आशा आकाश है। मगर आकाश भ्रम क्यों लगता है? भ्रम वो है जो हम देख नहीं पाते या जिसके बारे में हम अंदाजा नहीं लगा सकते। लेकिन जिसका अंदाजा हम लगा नहीं पाते वो हमारी कमजोरी है, जरूरी नहीं कि जिसका हम अंदाजा नहीं लगा पाते वो भ्रम हो। इसलिए आकाश को भ्रम नहीं कह सकते। आकाश भ्रम लगता जरूर है। मगर आकाश तत्व अनंत है। बगैर आकाश के इस ब्रह्मांड और इस जगत का निर्माण संभव नहीं था। आकाश तत्व अपने आप में संपूर्ण ब्रह्मांड नहीं है। लेकिन आकाश तत्व इस ब्रह्मांड का एक पार्ट है। अक्सर आकाश को ही ब्रह्मांड कह दिया जाता है। जबकि ब्रह्मांड एक ऐसा तत्व है जो पंच महाभूत के साथ-साथ समूची सृष्टि को अपने में समाहित किए हुए है। मगर यही ब्रह्मांड ईश्वर में समाहित होता है। ब्रह्मांड जिसमें रमण करता है वही ईश्वर है। इसलिए आकाश, ब्रह्मांड और ईश्वर को समझना जरूरी है। बगैर आकाश के शरीर और ब्रह्मांड का निर्माण संभव नहीं था। मगर ईश्वर के बगैर आकाश और ब्रह्मांड का निर्माण संभव नहीं था।
आकाश हमेशा ऊंचाई की ओर हो यह जरूरी नहीं। हमारे आसपास भी आकाश है। आकाश हमारे भीतर है। यह शरीर आकाश तत्व को अपने भीतर धारण किए हुए होता है। आकाश कभी नष्ट नहीं होता। आकाश तत्व होते हुए भी इसमें नष्ट होने के गुण नहीं होते। क्योंकि आकाश तत्व में भी अत्यंत सूक्ष्म तत्व होता जिसे परमतत्व कह सकते हैं। और परमतत्व कभी नष्ट नहीं होता। इसलिए आकाश कभी नष्ट नहीं होगा। जब जगत नहीं रहेगा तब भी आकाश रहेगा। एक शून्य की तरह। कहते हैं जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था तो आकाश भी नहीं था। पानी, हवा, अग्नि, पृथ्वी कुछ नहीं था। लेकिन हम कहते हैं कि आकाश हर समय विद्वमान रहा है। आकाश आरंभ से ही रहा है। क्योंकि आकाश परमतत्व में से एक है। आकाश परफेक्ट है। आकाश अकेला तत्व होते हुए भी सभी तत्वों का प्रश्रयदाता है। इसलिए यह कहना कि सृष्टि के निर्माण से पहले आकाश नहीं था, गलत है, क्योंकि आकाश शुरू से ही था। किस रूप में था उसे परिभाषित करें तो कह सकते हैं कि आज के स्वरूप में बेशक ना हो क्योंकि तब प्रकाश नहीं था। इसलिए आकाश को देखना संभव नहीं था। मगर आकाश शुरू से ही था। आकाश के बाद ही सृष्टि ने आकार लिया। अगर आकाश नहीं होता तो इस जगत का और इस सृष्टि का निर्माण संभव नहीं था।
दरअसल आकाश विश्वास है। आकाश का विश्वास न होता तो सृजन की पौध अंकुरित नहीं होती। अब जब बात चली है तो बता दें कि इस सृष्टि का निर्माण बिंग बैंग थ्योरी से नहीं हुआ है। साइंस कहता है कि सूर्य में विस्फोट हुआ और जीवन का निर्माण हुआ। सृष्टि का निर्माण हुआ। हम यह कहते हैं कि सृष्टि का निर्माण बिंगबैंग थ्योरी से नहीं अंकुरण से हुआ है। बीज हमेशा अंकुरित होता है। मां हमेशा अपनी संतान को जन्म विस्फोट से नहीं देती। बीज ही अंकुरित होता है और संतान का जन्म होता है। इसलिए आकाश तत्व को जितना जानना जरूरी है उतना ही चलते-चलते यह भी जानना जरूरी है कि इस जगत में जीवन की शुरुआत विस्फोट से नहीं अंकुरण से हुई है। बीज हमेशा अंकुरित होता है। विस्फोट से कभी सृजन नहीं होता। सृजन के लिए हमेशा अंकुरण जरूरी है। इसलिए हम आज सारी साइंस की थ्योरी को चुनौती देते हैं और स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जीवन की शुरुआत सूर्य में विस्फोट से नहीं हुई बल्कि बीज के अंकुरण से हुई है। विस्फोट से तत्वों का बिखराव तो हो सकता है, मगर सृजन नहीं हो सकता। जीवन के लिए बीज तत्व का होना जरूरी है। इसी बीज तत्व में पांचों पंचभूत विद्यमान होते हैं। बीज तत्व में भी आकाश तत्व समाहित होता है। इसलिए बगैर आकाश के जीवन का निर्माण संभव ही नहीं था।
आकाश की कहानी आज हमने जानी। यही आकाश है तो हमारे जीवन में छत है। जीवन का विस्तार भी आकाश है और जीवन का विश्वास भी आकाश है। आकाश ने पंछियों को उड़ान दी है। आकाश ने हवाई जहाज को उड़ने का बहाना दिया है। आकाश ने साइंस को जीने का मकसद दिया है। आज की सारी साइंस की प्रगति आकाश के बगैर संभव ही नहीं थी। साइंस का सारा कचरा इसी आकाश में छुपा है और साइंस का सारा खजाना भी इसी आकाश में छिपा है। इसलिए आकाश जब चाहे साइंस को खत्म कर देगा, मगर साइंस कभी आकाश को खत्म नहीं कर पाएगा। इसलिए हे मनुष्य आकाश तत्व बनो। आकाश की गरिमा समझो। आकाश को अपने भीतर महसूस करो। आकाश ही हमारा हौसला है। आकाश है तो हमें रास्ता मिलता रहेगा। जब-जब संकट में आओ तो आकाश से हौसला प्राप्त कर आगे बढ़ो। आकाश की कभी उपेक्षा मत करो। आकाश हमारी आशाओं का सवेरा है। आकाश ही हमारी जिंदगी की सांझ है। जीवन की रात में भी आकाश हमारे आसपास है। आकाश के बारे में आज इतना ही।